Ragini Pathak

Abstract

4.5  

Ragini Pathak

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जेठानीजी पहले पढ़ना सीख लीजिए

जेठानीजी पहले पढ़ना सीख लीजिए

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"अरे,क्या बताऊँ यार मेरी जेठानी तो हिंदी मीडियम से पढ़ी है रहन सहन भी बिल्कुल बहन जी टाइप। दिनभर घर के काम करके मेरे सास ससुर को मस्का लगाती रहती है और वो भी उन्ही के गुणगान करते रहते है जब देखो तब हमारी बड़ी बहू रमा साक्षात लक्ष्मी स्वरूप है कहकर सबसे उनकी तारीफ करते रहते है। मुझे तो डर है कि कही वो अपनी चिकनी चुपड़ी बातों से सारी प्रॉपर्टी अपने नाम ना करा लें क्योंकि वो तो उनके साथ ही रहती है" सोनिया ने अपनी सहेली से फोन पर बात करते हुए कहा

" अच्छा ये क्या बात हुई भला? तू नौकरी करती है। जब भी आती है सबके लिए महंगे तोहफे लेकर आती है। उससे ज्यादा सुंदर नौकरी करने वाली बहू है। क्या उन्हें ये सब नहीं दिखता।" सहेली ने कहा

"नहीं यार! ये सब नहीं दिखता उन्हें बैंगलोर अपने साथ लेकर आई थी एक बार लेकिन कहते है उनका मन ही नहीं लगता। जाने दे जो उनकी मर्जी करे वो करे चल रखती हूं फोन" सोनिया ने कहा

रमा और सोनिया दोनों जेठानी देवरानी है। रमा को अंग्रेजी बोलनी नहीं आती थी लेकिन थोड़ा बहुत समझ और पढ़ लेती थी इधर सोनिया अंग्रेज़ी मीडियम से पढ़ी है नौकरी करती थी तो वो हर बार रमा को ये जताती की अंग्रेजी में बोलना और पढ़ा होना जैसे कोई बहुत बड़ी बात है। इसलिए वो हर बार रमा का मजाक बनाती। जिसके लिए उसके पति रंजन ने भी उसको बहुत बार समझाया। लेकिन वो किसी की सुनने वाली कहा थी

सोनिया का यू रमा को बात बात में व्यंग्य करना उसके सास उमाजी ससुर दीनानाथ जी को बिल्कुल नहीं पसन्द था। क्योंकि रमा स्वभाव से मधुर और व्यवहारिक थी। संस्कृत से आचार्य की पढ़ाई पूरी करने वाली रमा को सोनिया फूटी आंख भी पसंद नहीं करती थी

सोनिया कुछ दिनों के लिए ससुराल आयी हुई थी।एक दिन शाम को घर में सभी मौजूद थे उसकी बड़ी ननद रूप भी उससे मिलने घर आयी हुई थी।

तभी सोनिया ने देखा रमा के हाथ में अंग्रेजी की किताब है। उसने सबके सामने रमा के हाथ से किताब लेते हुए कहा "भाभी आप के हाथ मे अंग्रेजी की किताब"

तब रमा ने कहा "हाँ वो कुहू(रमा की बेटी) की है वो कुछ पूछने आयी थी मुझसे उसी को पढ़ाने जा रही थी।"

तभी सोनिया ने व्यंग करते हुए कहा "भाभी पहले खुद तो पढ़ना सीख लीजिए अंग्रेजी तब तो पढ़ा पाएंगी वरना बेचारी बच्ची भी आपकी तरह ही संस्कृत से आचार्य ही होगी।"

सोनिया की बात सुनते वहाँ मौजूद सभी को बहुत गुस्सा आया। तभी रूप ने कहा "सोनिया ये क्या तरीका है घर के बड़ो से बात करने का"

तब सोनिया ने बात बनाते हुए कहा " अरे दीदी आप तो खामखा नाराज हो गयी। वो क्या है कि हिंदी मीडियम से पढ़े बच्चो को अंग्रेजी का उतना अच्छा ज्ञान नहीं होता है जितना मोंटेसरी के बच्चो को होता है मैंने तो सिर्फ इसलिए कहा।"

रूप ने कहा "अच्छा तब तुम्हारी सामान्य जानकारी के लिए बता दूँ कि मैं और बड़े भैया दोनो ही हिंदी मीडियम से पढ़े है। लेकिन हम दोनो ही अंग्रेजी में बोलना और पढ़ना लिखना बहुत अच्छे से जानते है। अंग्रेजी जानने के लिए अंग्रेजी मीडियम से पढ़े होना जरूरी नहीं समझी।"

तब दीनानाथ जी ने कहा " सोनिया किसी भी भाषा का ज्ञान होने का अर्थ ये नहीं की आप उसके घमण्ड में संस्कार भूल जाओ। जो भी ऐसा करता है वो पढ़ा लिखा मूर्ख कहलाता हैं अंग्रेज़ी बोलना कोई बहुत बड़ी क़ाबलियत की बात नहीं है बुद्धि किसी भाषा की मोहताज होती ही नहीं है। चार दिन कोई अनपढ़ भी किसी अंग्रेज़ के संग रहेगा न तो वह भी अंग्रेजी में बात करने लगेगा। और हमारा देश तो हिंदी भाषी है हमारे देश में किसी को अंग्रेजी कम समझ में आए तब कोई भी उतनी बात नहीं बनाता हाँ हिन्दी नहीं आए या वह हिंदी को बोलने वाले को अनपढ गंवार समझे गलत तो उस व्यक्ति की सोच है।"

"लेकिन पापा बुरा मत मानियेगा लेकिन आज हर बड़े स्टेंडर्ड का और ऊंचे पद पर आसीन व्यक्ति अंग्रेजी ही बोलता है कहना बहुत आसान है लेकिन अपनाना बहुत मुश्किल और आप तो वैसे भी हमेशा भाभी की ही तरफदारी करते है। कितने मन से आप दोनो को बंगलौर लेकर गयी थी अपने साथ रखने के लिए लेकिन आप लोगोंं का तो वहाँ मन ही नहीं लगा पता नहीं क्या जादू किया है भाभी ने आप लोगों पर" सोनिया ने कहा तो दीनानाथ जी और उमा जी एक दूसरे की तरफ देखने लगे।

तब उमा जी ने कहा "सोनिया तुमने बहुत बोल लिया अब तुम सच जान लो कि हम वहां से क्यों चले आये थे?

 ये बात हमने कभी किसी को भी बताने की नहीं सोची थी लेकिन तुम हर बार इस बात का ताना देती रहती हो तो अब ये सच तुम्हारे साथ साथ सबको पता चल जाएगा।


दीनानाथ जी ने आंखों के इशारे से बात ना बताने का आग्रह किया। क्योंकि रंजन को दुख ना हो सच जानकर और दोनो पति पत्नी के बीच कोई खटास ना आ जाए।लेकिन उमा जी आज चुप नहीं रहने वाली थी उन्होंने कहा "नहीं जी आज बोलने दीजिए| ताकि ये हमेशा का ताना तो बंद हो।"

बहू तुम हमें लेकर तो जरूर गयी थी लेकिन तुमने क्या किया था तुम दोनो बच्चो को हमसे दूर रखती थी ताकि वो हिंदी बोलना ना सीख जाए। लाखो बार कहने पर भी तुमने बाबूजी के लिए हिंदी का अखबार घर नहीं आने दिया क्यों? क्योंकि हिंदी अब कोई नहीं पढ़ता।

कोई मेहमान जब घर आता तब तो हम कमरे में ही बंद कर दिए जाते थे। क्योंकि हम उन मेहमानों के सामने जाने लायक नहीं थे। जब भी तुम्हारे बाबूजी टहलने जाने की बात करते तुम हमे सबसे पहले यही कहती। कि बाहर जा तो रहे है लेकिन किसी से बात मत कीजिएगा।

और उस दिन जब रंजन ने घर मे पार्टी रखी थी तब तुमने उससे झूठ कहा "की हमारी तबियत ठीक नहीं और जब मैं पानी लेने बाहर निकल रही थी तब तुमने दरवाजे पर अपनी नौकरानी बिठा रखी थी कि कही मैं बाहर ना आ जाऊ। क्योंकि तुम्हें हमारा बोल चाल रहन सहन पसंद नही था"

उस दिन तुम्हारी नौकरानी ने जब कहा "माँजी आप क्यों मेमसाब का मूड खराब करना चाहती है। आपके बेटा बहू ने घर से निकाल दिया था तो साहब और मेमसाब ने आपको शरण दी। आप उन्ही की इज्ज़त खराब करना चाहती है।"

मैं तो आश्चर्य चकित हो सुनती ही रह गयी। फिर मैंने उससे कहा "कि ये बात तुझे किसने बतायी।"

तो उसने कहा "मेमसाब ने"

मैंने पूछा "और क्या बताया? उन्होंने तुझे"

तो उसने कहा "बस यही की आप उनकी दूर की रिश्तेदार हो साहब आप दोनो को प्यार से माँ बाबूजी कहते है। आपको रहने के लिए छत नहीं थी इसलिए यहाँ लेकर आ गए।"

ये सब सुनकर हम दोनों ने तय किया कि हम अब यहाँ नहीं रुकेंगे और ना कभी आएंगे। लेकिन साथ ही जब इन्होंने मुझ से कहा "की ये बात भी हम खुद तक ही रखेंगे वरना भाई बहन के साथ साथ पति पत्नी के भी रिश्ते ना बिखर जाए। और अगर रंजन ने गुस्से में कुछ भी किया तो उसका असर सब पर होगा। इससे अच्छा हम चुप रहकर सब बचाएं रखे। और हम दो दिन बाद रंजन से बहाना बनाकर यहाँ आ गए"

लेकिन उस समय हमें रमा की अहमियत पता चल गयी। हम तुम्हे जब शादी से पहले देखने गए थे तब हमने सोचा कि चलो अब हमें सर्वगुणसम्पन्न पढ़ी लिखी होशियार बहू मिल गयी। रमा के अंग्रेजी के कम ज्ञान और नौकरी ना करने को मैं भी उसकी कमी ही समझती थी। लेकिन मेरी आँखें तुमने खोल दी।


रमा ने कभी हमारे साथ ऐसा कुछ नहीं किया। इसलिए वो अब हमारे दिल में बसती है। और हम दोनो उसे कभी नहीं छोड़ सकते। ना उसका अपमान बर्दाश्त कर सकते है। तुम रमा का जादू जानना चाहती हो ना तो हमें उसने अपने प्यार अपनेपन और सम्मान के जादू से अपना बना रखा है जो वो हमारी छोटी से छोटी जरूरत का ध्यान रखती है। हमारे दिल का हल भी बिना हमारे कुछ कहे जान लेती है।सब सच जानकर आवक रह गए। खासतौर से रंजन

उसने सोनिया से कहा "सोनिया तुम्हारी माँ भी अंग्रेजी नहीं जानती फिर तुम उनके साथ ऐसा व्यवहार क्यों नहीं करती। काश मैं भी तुम्हारी तरह तुम्हारे मातापिता के साथ व्यवहार करता तो शायद तुमको समझ आता। कि अपने माता पिता के साथ कोई गलत व्यवहार करे तो कैसा लगता है? तुम्हारी इतनी हिम्मत की तुम मेरे ही घर मे मेरे मातापिता का अपमान करती रही। जब मैंने हिंदी अखबार बाबूजी के लिए पेपर वाले को कहा था देने के लिए तो तुमने मना क्यों किया?"

"ओह्ह मैं तुमसे क्यों कुछ कह रहा हूं मुझे तो खुद से पूछना चाहिए कि क्यों मैं अपने माँ बाबूजी के चेहरे की उदासी नहीं देख पाया। क्यों मैंने तुम पर विश्वास किया। क्यों क्यों" कहते कहते उसने अपने दोनों हाथों को गुस्से में दीवाल पर मारने लगा।

तब सोनिया ने हाथ जोड़ते हुए कहा " मुझे माफ़ कर दीजिए आप सब आप सब का बहुत दिल दुखाया है मैंने अब आगे से ऐसा कभी नहीं होगा।"

लेकिन सब चुप रहे। क्योंकि कुछ घाव और अपमान कभी नहीं माफ किए जा सकते।



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