जब सब थम सा गया(दिन-25)
जब सब थम सा गया(दिन-25)
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प्रिय डायरी,
रात के बाद सुबह मुसीबत या परेशानी के बाद उम्मीद की किरण होती हैं।अक्सर लोग कहते हैं कि अंधेरी रात के बाद ही चमकदार सवेरा होता हैं।लेकिन सच मानिए यदि आप परेशान हैं और ख़ुशी की चाह है तो प्रकृति की सुंदरता से बढ़कर कुछ भी नहीं हैं।सुबह उठने के बाद अब नियमित योग और सूर्यनमस्कार मेरी दिनचर्या में जुड़ चुका था।सुबह की सुंदरता देखने में अब और भी अनन्द आ रहा था।क्योंकि न कोई चिंता और न ही कहीं जाने की जल्दी बस घर पे रहो।
योग प्राणायाम के बाद मैं नीचे आकर कुर्सी पर बैठ कर भजन सुन रहा था और अपने छात्र जीवन के बारे में सोचने लगा।मेरे जीवन का सबसे स्वर्णिम पल छात्र जीवन का ही था।स्नान कर नास्ते के बाद में समाचार देखने लगा अब संख्या लगभग 15000 पर कर चुकी थी।इसी बीच खबर मिलती हैं कि इंदौर में एक जाबाज़ पुलिस अधिकारी की मृत्यु कोरोना संक्रमण के चलते अरबिंदो अस्पताल इंदौर में हो गयी हैं।उनके परिवार के लोग अभी कॉरोटिन में हैं।ये खबर सुनकर बहुत दुख हुआ और मैं सोचने लगा की हमारे रक्षा के लिए किस तरह ये कोरोना योद्धा अपने जीवन का बलिदान दे रहे हैं।
ईश्वर से प्रार्थना करते हुए कहाँ की इनकी आत्मा को शान्ति प्रदान करे।दुखी मन से टीवी बंद करके में कमरे में आकर अपनी किताबों को अलमारी पर सही से रखने लगा।मेरे पास लगभग 500 से ज्यादा किताबो का संग्रह है और मैं अक्सर नई किताब खरीदता हूँ।ये कार्य मुझे बहुत प्रिय हैं।अलमारी की सफाई के बाद मेरे एक मित्र ने मेरा हाल चाल लेने के लिए फ़ोन किया।मित्र रोहन आर्मी में कार्यरत थे लेकिन कोरोना संक्रमण के चलते अपनी यूनिट में रिपोर्ट नहीं कर पा रहे थे।सच में इस संक्रमण ने सबको एक ही स्थान पर कैदी बना दिया है।
दोपहर के भोजन के बाद मैं अपने कमरे में आकर कंप्यूटर स्टार्ट करके पुरानी फोटो देखने लगा फिर एक सिनेमा देखने का मन किया तो मैं एनिमेटेड सिनेमा में कुं फु पांडा जो की मेरी प्रिय सिनेमा हैं देखने लगा।सिनेमा देखने के बाद मैं कुछ देर के आराम करने के बाद बैठ गया और एक कहानी लिखने बैठ गया।कहानी लंबी थी इसलिए कब 5 बज गए पता ही नहीं चला।मैं कहानी आधी छोड़कर नीचे चला गया।आगे की कहानी के लिए मैं अकेले में बैठ कर सोचने लगा।सच बताऊ तो कहानी लिखने से अच्छा कोई काम नहीं हो सकता हैं और अगर आपको अच्छी कहानी लिखनी हैं तो आपको बहुत अच्छे से सोचना आना चाहिए।स्टोरी मिरर ने इस लॉक डाउन के दौरान मेरे अंदर के लेखक और कवि को बाहर निकलने में बहुत मदद की है क्योंकि मैं हमेशा से कोई ऐसा माध्यम चाहता था जिससे में अपने अनुभवों को साझा करके सबके समक्ष प्रस्तुत कर सकूँ।रोजाना की तरह मैं अपने पेड़ पौधों की देख रेख के बाद बैठा था।शाम की आरती का समय हो चूका था।कुछ कार्य मेरे जीवन की दिनचर्या में हमेशा रहते हैं।इसलिए चाहे कुछ भी हो ये नियम जरूर पालन होते रहते हैं।शाम की आरती के बाद बहन प्रियांशी मोबाइल में लूडो का खेल खेलने के लिए मेरे पास आई।मैं कभी भी किसी को मना नहीं कर पाता हूँ और जीवन में सबको खुश रखना मेरे जीवन का अहम हिस्सा है।
रात्रि भोजन के लिए माताजी और चाची माँ दाल और बाटी बना रही थी।वैसे ये भोजन गर्मी के मौसम में मुझे अच्छा नहीं लगता लेकिन घर वालो को पसंद हैं।ये एक प्रकार का देसी भोजन हैं जो गैस पर नहीं कंड़ो के आग पर बनाया जाता हैं।गर्मी के मौसम में दोनों लोग बड़ी मेहनत से भोजन बना रही थी।जीवन संगिनी जी लॉक डाउन के चलते अपने मायके में ही हैं इसलिए माताजी और चाची माँ को ही भोजन की व्यवस्था करनी पड़ती हैं।रात्रि भोजन के बाद मैं छत पर टहलने लगा क्योंकि दाल बाटी को पचाना बहुत भारी काम हैं और इसको खाने के बाद प्यास भी बहुत लगती हैं।
टहलने के बाद मैं नीचे आया और जो कहानी में दोपहर में लिख रहा था उसी को आगे लिखना चालु रखा।आँखे भारी हो रही थी तो मैंने कहानी लिखना बंद करके बिस्तर पर जाकर लेट गया।कुछ देर आँखे बंद करने पर मुझे आराम मिला और कब नींद लग गयी पता ही नहीं चला।
इस तरह लॉक डाउन का आज का भी दिन समाप्त हो गया।अब तो रोज बस कल क्या करना है ये सोचते हुए ही नींद आ जाती हैं।लेकिन कहानी अभी अगले भाग में जारी है।