जब सब थम सा गया (बारहवाँ दिन)
जब सब थम सा गया (बारहवाँ दिन)


प्रिय डायरी,
इस संसार की सबसे सुंदर वस्तु ये प्रकृति हैं। वैसे तो ये सभी को मालूम हैं लेकिन इसकी फ़िक्र करता ही कौन हैं। आज कल इन विषयों पर मैं कविता भी लिख रहा था। सुबह सुबह उठकर मैं छत पर जाकर यही देख रहा था। वैसे तो मैं अपना खाली समय प्रकृति की सुंदरता के बीच ही निकलता हूँ। छात्र जीवन में जब मैं काशी हिंदू विश्वविद्यालय का छात्र था तो मैं अक्सर वहां की प्रकृति की सुंदरता का आंनद लेने का मौका कभी नहीं छोड़ता था।
पंडित मदनमोहन मालवीय जी,जो काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक थे। उन्होंने इस विश्वविद्यालय में पेड पोधो और पर्यावरण संरक्षण का अद्भुत उदाहरण युवाओं ये लिए उपहार स्वरूप दिया हैं। जिसको आज भी सभी लोग संभाल के रखे हैं।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय का जीवन मेरे जीवन का स्वर्णिम काल हैं। इसलिए मैं कभी वह जाने का मौका कभी नहीं छोड़ता हूँ। इन पुरानी बातों को मैं छत पर टहलते टहलते सोच रहा था। इतने सूर्योदय का अद्भुत नजारा देख कर मन प्रसन्न हो गया,मैं अपने आप को बहुत ही ऊर्जावान महसूस कर रहा था। वाराणसी में भी मैं गंगा घाट किनारे सूर्योदय और सूर्यास्त के साथ साथ गंगा आरती का मौका नहीं छोड़ता था। मैं एक चीज़ तो अवश्य बताना चाहूँगा। यदि कोई भी निरास हो या नकारात्मक महसूस कर रहा हो ,वो गंगा घाट पर बैठ कर सब भूल सकता हैं। बस इन्ही यादो के साथ मैं नीचे आ गया। आज वास्तविकता में वाराणसी की बहुत याद आ रही थी। ग्रीष्मकालीन अवकाश मैं वह जाने का कार्यक्रम तो बना हैं क्योंकि जीवन संगिनी जी को भी तो मायके से लाना है।
देखते हैं कब सब सही होता हैं और मैं फिर से काशी दर्शन कर पाऊंगा। आज का दिन वास्तव में अच्छा लग रहा था। दैनिक नित्य क्रिया करके मैं नीचे नाश्ते के लिए पहुँचा। लेकिन आज नाश्ते की बिलकुल इच्छा नहीं कर रही थी। तो मैंने नाश्ते के लिए मना कर दिया। फिर मैं समाचार देखने लगा। कोरोना संक्रमितों की संख्या बढ़ती ही जा रही थी। ये चिंता का विषय जरूर था,पर इसे अभी भी कण्ट्रोल किया जा रहा था। आज माननीय प्रधानमंत्री जी द्वारा भारत की जनता से रात 9 बजे 9 मिनट तक दिया जलने का अनुरोध किया गया हैं। भारत की जनता इस समय प्रधानमंत्री जी के सभी आदेशों को पालन कर रही हैं केवल कुछ मूर्खो को छोड़कर। हमारे घर भी सभी ने रात की तैयारी सुबह से ही कर रहे थे। मैं सोचने लगा भारत आज दिवाली बनाने की तैयारी में लगा हैं,कही ऐसा न हों की आतिशबाजियां भी करने लगे।
जो होगा वो तो रात में ही पता चलेगा। टीवी बंद करके में बहार निकला तो मेरा भाई रूपेश मुझसे कहने लगा,"भैया गाय के लिए भूसा लेकर आना हैं क्योंकि लॉक डाउन के चलते अभी कोई साधन नहीं चल रहा हैं।
आगे कब तक भूसा मिले पता नहीं। "मैंने कहा तो क्या करना हैं",भाई बोला पास मैं ही एक खेत हैं वही से कुछ भूसा लेकर आना हैं क्योंकि मजदूर अभी नहीं मिल रहे हैं। "मैंने कहा कोई बात नहीं तुम और मैं लेकर आ जाएंगे।
बस फ
िर क्या था उठाया गमछा और बाँधा सर पे जो की बनारसी स्टाइल था और चल दिया खेत पे। लगभग दोपहर तक हम दोनों ने मिलकर भूसा भर दिया और घर पर लेकर आ गए। दरहसल हमारे दादाजी ने हम सभी को अच्छा प्रशिक्षण दिया हैं ताकि हम सब कोई भी काम कर ले। भूसा रखकर मैं नहाने लगा और दोपहर का भोजन करके अपने कमरे में आ गया।
वास्तविकता बताऊँ तो मैं और भाई रूपेश थक गए थे। मैं बिस्तर पर लेटा तो नींद लग गयी,और जब नींद खुली तब शाम हो रही थी। मैं मोबाइल में समय देखा तो 4:30 हो रहा था। पानी पीने के लिए मैं नीचे आया तो चाचीमाँ सबके लिए शाम के लिए कुछ नाश्ता बना रही थी। मैं नाश्ता करके बैठा था कि पुलिस के साईरन की आवाज़ आने लगी। दरहसल कुछ शरारती तत्त्व जगह जगह पर पुलिस वालों को परेशान कर रहे थे। मेरे समझ नहीं आता ये सब ऐसा क्यों करते हैं?
पुलिस की गाड़ी सभी से घरों के रहने की अपील करते हुए निकल गईं। इतने मैं मेने देखा की आस पास पत्तो का ढेर बिखरा हुआ हैं। मैं झाड़ू उठा कर साफ़ करने निकल गया। चारो तरफ झाड़ू मारकर मैं सब पत्तो को इकठ्ठा करके जलने का सोचा,लेकिन आज पास मैं गेहू की फसल थी और ऐसे में कोई अनहोनी के कारण पूरी फसल बर्बाद हो सकती हैं। मैंने पत्तो को पास के एक गड्ढे में डाल दिया। शाम हो चुकी थी और आरती का समय हो चूका था। मैं भी ऊपर अपने कमरे में गया और इतने मैं मित्र राकेश का फ़ोन आ गया।
मैंने पूछा,"भाई दिया जलाने की तैयारी हो गयी?"राकेश ने जवाब दिया,"भाई तैयारी तो हैं,पर हमारे यहाँ तेज आंधी और ओलावृष्टि हो रही हैं। "फैसले ख़राब हो रही हैं। मैं सोचने लगा की भगवान् ये सब क्या हो रहा हैं? राकेश और मेरी कुछ देर तक बात हुई और फिर हम सब खाने के लिए एकत्रित हो गए। 8:30 बजे तक सब खाना खा कर छत पर एकत्रित हो गए। माँ और चाचीमाँ ने पुरी तैयारी कर रखी थी।
दिये और मोमबत्ती लग रहा था मानो दिवाली मानाने वाले हैं। छत का माहौल देखने लायक था। सभी ऐसे तैयारी कर रहे थे मानो आज दिवाली हैं। 8:55 के लगभग सबने लाइट बंद कर दी पर दियो और मोबाइल और टोर्च की रोशनी से सब जगमग हो गया था। अधबुत नजारा था। लेकिन एक चीज़ पर मुझे गुस्सा आ रहा था। कुछ लोग पटाखे और आतिशबाजी करने लगी। जिसका मुझे पहले से अनुमान था। ये गलत था क्योंकि प्रधानमंत्री जी ने दिया जलाने को कहा था पर लोग ज्यादा समझदार बनते हैं। ये चीज़ लगभग आधे घंटे तक चला। वास्तव में लोग इसे उत्सव की तरह बना रहे थे। इसके बाद सब कोई अपने घरों में चले गए और हम सब भी अपने कमरो में चले गए।
कमरे में पहुचने के बाद मैं किताब पढ़ने लगा और कुछ देर बाद अपनी कहानी पूरी करने लगा। इस दौरान मेरे अंदर का लेखक और कवि बाहर आ चुका हैं और जो समझ में आ रहा हैं बस लिखे जा रहा हूँ।
इस तरह लॉक डाउन का आज का दिन भी समाप्त हो गया। लेकिन अन्य दिनों की अपेक्षा आज का दिन बहुत संतोषजनक और नयी उम्मीद भरा दिखा रहा था।
कहानी अभी अगले भाग में जारी हैं......।