इंसानियत
इंसानियत


सभी प्रवासी मजदूर सामान की गठरी के साथ गाड़ी का इंतज़ार कर रहे थे ,घंटे दो घंटे बीत गए कोई गाड़ी नही आयी।बच्चे भूख से कुलबुलाने लगे उन्हें घर-बाहर का फर्क क्या पता था?सब मजदूर बच्चों को समझा रहे थे थोड़ी देर सब्र करो गाड़ी आएगी फिर कुछ खा लेना कुछ बच्चें माँ-बाबू के समझाने पर समझ गये,कुछ भूख में सो गए और कुछ भूख में बिलख ही रहे थे।
शंकर ने डब्बे से से चार रोटी निकालकर दो अपने बेटे को दिया और दो रोटी पास में ही भूख से रोते अंजान बच्चे को दिया,उस बच्चे की माँ कृतज्ञता से शंकर को देख रही थी,शंकर उसके भाव समझ गया और मुस्कुराते हुए कहा बहन गाड़ी में बैठते ही हम राजनीति के शिकार होकर धर्म और जाति के बंधन में बंधकर इंसानियत के धर्म को भूल जाएंगे।