सौ का नोट और मिश्राजी
सौ का नोट और मिश्राजी


सिविल लाइन में मिश्राजी अपनी बेबाकी और कंजूसी के लिए जाने जाते थे।सब जानते थे कि मिश्राजी किसी को दो पैसा भी दस बार सोच विचार कर देते लेकिन लेने की बारी में सूद सहित वसूल करते।राह चलते अगर कागज का टुकड़ा दो की नोट की तरह दिखे तो पूरा मुआयना करने के बाद ही वहाँ से हटते, कभी-कभी थूक दस पैसे के आकार में हो तो किनारे सायकल रोककर पक्का करते है थूक है या पैसा फिर आगे बढ़ते।होली में मसखरे लड़को ने मिश्राजी को सबक सिखाने की योजना बनाई,होली के दिन सौ रुपये के नोट को धागे से बांधकर मिश्राजी के निकलने के समय बीच रोड में रख दिया।मिश्राजी आदतानुसार रोड को ध्यान से देखते हुये हाथ मे गुलाल का पैकेट लेकर निकले।बीच रोड में सौ का नोट देखकर गदगद हो गये मन ही मन सोचे आज तो मेरी दीवाली हो गई कनखी से चारो ओर नजर दौडाकर देख रहे थे कि कोई देख तो नही रहा है और कदम आहिस्ते-आहिस्ते नोट की ओर बढ़ रहे थे।
ये क्या मिश्राजी नोट उठाने झुके कि नोट आगे सरक गया मिश्राजी भी आगे बढे और नोट उठाने की नाकाम कोशिश की क्योंकि नोट फिर आगे सरक चुका था सौ का नोट देखकर मिश्राजी ये बात भूल गये थे कि आज होली है वो इस बार नोट को पकड़ने के लिये तेजी से झुके की नोट फिर आगे सरक गया। खिसियाते हुये मिश्राजी आगे बढ़े तो लड़को की टोली सामने आकर उन्हें गुलाल लगाकर बोली "अंकलजी होली है वो सौ का नोट आप पकड़ पाये या नही?" बनावटी हंसी के साथ मिश्राजी ने कहा "अरे कौन सा नोट मैं तो अपना सिक्का ढूंढ रहा था भाई हैप्पी होली।"लड़को ने धागे से सौ का नोट उनके सामने लहराते हुये कहा बुरा ना मानो होली है झेंपते हुये मिश्राजी ने सुर मिलाया होली है भई होली है।