मदद
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शीला दुर्ग से रायपुर हमेशा अपनी कार से आना-जाना करती थी,पहली बार अचानक जरूरी काम की वजह से अपने दो साल के बेटे के साथ लोकल ट्रेन से जा रही थी वह ट्रेन का इंतजार कर रही थी,ट्रेन के आते ही उसे धकेलते हुए लोग ट्रेन में चढ़ने लगे शीला रुआँसी सी चढ़ने के जदोजहद में पीछे होते जा रही थी कि अचानक एक सब्जीवाली महिला शीला का हाथ पकड़कर उसके बेटे को गोद में लेकर ट्रेन में चढ़ाते हुये बोली-
मैडम यहाँ कोई मदद नहीं करता दुसरो से मदद की अपेक्षा ना कर खुद अपनी मदद करनी होती है नही तो लोग आपको पीछे छोड़कर आगे बढ़ जायेगे शीला उसे धन्यवाद देते हुए सोच रही थी सच ही तो है आजकल प्रतिस्पर्धा के युग मे सब सिर्फ अपने आगे बढ़ने की बात सोचते है कोई दूसरे की मदद नहीं करता इंसानीयत तो अब किताब तक सीमित है।