Dippriya Mishra

Romance Classics Inspirational

4.5  

Dippriya Mishra

Romance Classics Inspirational

इम्तहानभाग 2

इम्तहानभाग 2

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क्या बताऊं यार.... ? हम प्यार में बहुत आगे निकल गए थे। हम कई प्रतियोगिता परीक्षाएं देने के लिए, एक शहर से दूसरे शहर साथ -साथ गए। हमने रूम शेयर किया है। हमारे प्यार में उसका खुसट बाप आप आ गया, वरना आज वह मेरी होती ‌‌।बोलते -बोलते उसकी आंखों से आंसू की दो बूंदे गालों पर ढ़लक गई ।देवांश... हतप्रभ था कामिनी की त्रियाचरित्र जानकर।

सोचा, मैं उस कामिनी के लिए रो रहा था ?मैं उसका कामिनी के लिए दुखी था ? उसने कामिनी के बारे में, अजय को कुछ भी नहीं बताया ‌। अजय के कंधे पर हाथ रखा और समझाया, जो हुआ उसे भूल जाओ ।जिंदगी में सुख- दुख लगे रहते हैं ।खोना -पाना चलता रहता है‌, आज से नया जीवन शुरू करो। तभी कामिनी का कॉल आया। देवांश अपना मोबाइल अजय की ओर बढ़ा दिया.... तुम्हारी कामिनी का फोन... मोबाइल लेकर अजय ने कहा हेलो...

कामिनी अजय की आवाज सुनकर घबरा गई, वह अपना मोबाइल चेक करने लगी, कहीं गलती से कॉल अजय को तो नहीं लगाया है ? कॉल तो देवांश को ही लगा है फिर अजय की आवाज कैसे ?

हेलो, हेलो कामिनी ! मैं अजय मैं अजय....

हां अजय! कहां हो ?देवांश का मोबाइल तुमने कैसे उठाया ?

मैं ट्रेन में हूं ?

क्यों ? कहां जा रहे हो ?

मन बहुत दुखी है इसलिए घर जा रहा हूं।

देवांश भी ट्रेन में है ?

हां देवांश भी ट्रेन में है, उसकी मां को रात हार्टअटैक आया है ।बहुत दुखी है बेचारा।

ओह! कैसे ? उसकी मां पहले से बीमार थी क्या ?

पता नहीं यार ।लो तुम ही बात कर लो।

वह मोबाइल देवांश को दे दिया..

हेलो...

कामिनी तुम मेरी फिक्र मत करो, न मेरी, न मां की, तुम नये जीवन की शुरुवात सच्चाई की नींव पर करो। शादी की बहुत बधाई! कामिनी उधर से कुछ बोलने ही रही थी ...पर देवांश ने कॉल काट दिया।

देवांश स्टेशन से सीधे जीवन-ज्योति हॉस्पिटल पहुंचा। उसके पिता आई.सी.यू .के बाहर बेंच पर, बड़े उदास और थके से बैठे थे। बेटे को देखते भावुक हो उठे। आंखें छलक आईं। देवांश ने चरण स्पर्श किया और उन्हें ढांढ़स बंधाया,‌ तभी वार्डबॉय बाहर आया, बेड नंबर 3 को होश आ गया है... उनके साथ कौन है ? दोनों एक साथ खड़े हुए, हम दोनों..... डॉक्टर ने कहा है, कोई एक व्यक्ति पेशेंट से मिल सकता है। पिता ने देवांश को ही पहले भेज दिया। वह बेड नंबर 3 देखता आगे बढ़ रहा था। तभी डॉक्टर ने अपनी ओर इशारे से बुलाया और कुछ हिदायत दी, पेशेंट से कोई ऐसी बात ना कहिएगा, जिससे उन्हें दुख पहुंचे, उन्हें खुश रखने की कोशिश कीजिए और ज्यादा बात भी ना कीजिएगा। वह स्वीकृति में सिर हिला कर आगे बढ़ गया। वह बेड के करीब जाकर खड़ा हो गया, सिस्टर कोई इंजेक्शन, चढ़ते पानी वाले बोतल में मिला रही थी उसने कहा- सुमित्रा ! देखो कौन आया है, तुमसे मिलने ? मां धीरे- धीरे पूरी ताकत लगाकर आंखें खोली, उस पीड़ा में भी हल्का सा मुस्कुरा दी। देवांश की आंखें छलक गई ।उसने मां का हाथ अपने हाथों में ले लिया, और चेयर करीब करके बैठ गया। मां ने कहा क्यों रोता है रे ?

जल्दी से ठीक हो जा माँ!बोलते बोलते वह रो पड़ा|

चुप -चुप बिल्कुल चुप हो जा बेटा ...अभी मैं जिंदा हूं। सुन देबू मेरी एक बात मानेगा ?

हां मां तुम्हारी सब बात मानूंगा तू जल्दी ठीक हो जा।

इस जिंदगी का क्या भरोसा बेटा मैं तुम्हारी दुल्हन देखना चाहती हूं।

ऐसे कैसे देखेगी दुल्हन पहले ठीक हो जाओ घर चल।

यानी तेरी हां समझूं ? हां मां तू जो कहेगी वही होगा।

सुन देबू !मैंने तेरे लिए एक परी ढूंढ रखी हूं। ठीक है मैं तुम्हारी परी को ही ब्याह लाऊंगा।

मां के चेहरे पर सुकून और खुशी की चमक आ गई।

जा बेटा अपने पापा को भी बुला ले।

एक बार में पेशेंट से एक ही व्यक्ति मिल सकता है मां.....

यह हॉस्पिटल वाले भी ना, गजब हैं।

पापा से मिलना चाहती हो ? मैं अभी भेज दे रहा हूं।

देवांश बाहर आ गया और अपने पिता को मां से मिलने भेज दिया।

गिरिजा शंकर जी ने पत्नी सुमित्रा से पूछा कैसी हो सुमित्रा ?

अच्छी हूं और बहुत खुश भी....

बीमार हो कि खुश हो ?

हटो जी !आपको भी हमेशा मजाक सूझता है.. .. खुश इसलिए हूं कि मेरे बेटे ने शादी के लिए हां कर दी।

अच्छा, अच्छा ! तो मां-बेटे में यह बातें हो रही थी ?

हां, आप आज ही प्रकाश कुमार जी को बुला लीजिए मैं उनकी बेटी सुचिता का हाथ मांग लेती हूं।

ठीक हो जाओ फिर यह सब करते हैं।

नहीं जी जिंदगी का क्या भरोसा ?

शायद बहू के भाग्य से जी जाऊं ?

अंततः गिरिजा शंकर जी को सुमित्रा की बात माननी पड़ी।

उन्होंने प्रकाश कुमार जी से कहा - 'सुमित्रा काफी बीमार है और वह आपसे मिलना चाहती है।', वह आने को राजी हो गए।

शाम होते वह सुमित्रा के सामने हाजिर थे। सुमित्रा ने कहा- " भाई साहब, हम दोनों का परिवार एक दूसरे को शुरू से ही जानता है । मेरी जिंदगी का कोई भरोसा नहीं। मैं चाहती हूं सुचिता मेरे घर में बहू बनकर आ जाए।"

भाभी जी यह तो मेरे लिए अहोभाग्य है कि देवांश जैसा होनहार, पढ़ा -लिखा, उच्च -पदस्थ अधिकारी से मेरी बेटी का विवाह हो।

सुनिए भाई साहब, यह विवाह इसी सप्ताह हो जाना चाहिए।

इतनी जल्दी कैसे होगा भाभी जी ? तैयारी करने का मौका तो दीजिए।

नहीं भाई साहब, आप एक जोड़ी में सुचिता को लेकर लक्ष्मी नारायण मंदिर में आ आाइए, वही दोनों का विवाह कर देते हैं क्योंकि इस सप्ताह के बाद फिर कोई लग्न नहीं है। फिर आप जब चाहे मेहमानों को बुलाकर उत्सव मना लेगें| मेरा भी एक ही बेटा है हमारे भी बहुत अरमान है। सब पूरा कर लेंगे।

एक सप्ताह में सुमित्रा ठीक हो गई। लक्ष्मी नारायण मंदिर में देवांश और सुचिता का विवाह सादे समारोह में संपन्न हो गया। विवाह में गिने चुने मेहमान ही शामिल हो पाये थे| विवाह के पश्चात दोनों ने मां का आशीर्वाद लिया|

बेटे और बहू को साथ देख कर सुमित्रा की आंखों में चमक आ गई। मैरून सिल्क की स्टोन वर्क की साड़ी, गले में मंगलसूत्र, कान में सोने के झुमके, नाक में हीरे का लौंग, माथे पर लाल सुहाग टीका, मांग में भाखरा ऑरेंज सिंदूर, बड़ी-बड़ी कजरारी आंखों में लहराता अपनत्व का सागर. ‌... सुचिता ने जब सासू मां के चरण छुए तो वह पुलकित हो गई। उसे गले से लगा लिया और कहां मेरे बरसों का सपना पूरा हुआ शुचि! मैंने तेरी मां को वचन दिया था, तुम्हें बहू बनाकर अपने घर ले जाऊंगी । आज वह वचन पूरा हुआ।देवांश ने चरण स्पर्श किया तो सुमित्रा ने बेटे को देखा...लाइट पिंक शर्ट स्काई ब्लू सूट, मैचिंग टाई,माथे पर चंदन रोली पीला अक्षत सटा तिलक... मेरा राजकुमार! उसने बेटे का माथा चुम लिया...दोनो युग- युग जियो!दूधों नहाओं पूतो फलो!दुनिया की हर खुशी तुम्हें मिले!ढ़ेरों आशीर्वाद दिए| तत्पश्चात दोनो ने पिता और सभी बड़ों का आशीर्वाद लिया|

मंदिर घर लौटते शाम हो गई थी,बेटे बहू को कार में ही रूकने का आदेश दे, सुमित्रा घर के अंदर गई|

लोटे में पानी, आरती का थाल ले कर बाहर आई|गाँव की महिलाएं गीत गा रही थी.....बहुआ धीरे धीरे चलिहे ससुर गलियाँ....ससुर गलियां हो भैसूर गलियां बहूआ सासू से बोलिह मधुर बोलिया .....कार के दोनो ओर जलढ़ार देर कर बेटे बहू की आरती की| आगे बढ़ कर बोली..दरवाजे पर रखा चावल का कलश, बांये पांव से गिरा कर गृह प्रवेश करो शुचि !ये महावर की थाल में दोनों पांव डालो, अब तुम दोनों कुलदेवी घर में चलो..आशीर्वाद लो| पडोस की मंगला चाची अंगूठी ढूढ़ने का कार्यक्रम करवाने लगीं..."देख बेटा देवांश अंगूठी पाँच बार दूध पानी की कठौत में जावेगी...पांचों बार ढूढ़ लिहो...आज हार गयो तो जिंदगी भर बहू से हारो को पड़ोगे"

पहली बार अंगूठी शुचि के हाथों में आ गई पर उसने पति की कर के छोड़ दिया.....काकी बोली -"मारों देबू जीत गयो"...

तीन बार लगातार वो पति की ओर अंगूठी बढा रही...देवांश समझ गया उसे हराना नही चाहती...

इसलिए तीसरी बार उसने पानी के अंदर ही शुचि की हथेली में अंगूठी दे कर हाथ ऊपर कर दिया....वह तीन बार शुचि को जीता दिया....काकी जरा उदास हुई....बेटा तेरे ऊपर राज चलावेगी जान लो....वह जरा सा मुस्कुरा दिया|

मंगला काकी सुमित्रा से बोली -'दही गुड़ साग मंगवाले....बहू दोनों को मुँहजूठी कर दे सुमित्रा.. ....'

रात होते होते सारे मेहमान चले गये थे|

शुचि देर तक सुमित्रा के पांव दबाती रही....

अब छोड़ दो शुचि...तुम भी आराम करो बेटा|

आपके पास ही रहने का मन कर रहा है माँ.....आपके रूप में मैंने वर्षो बाद, अपनी माँ को पा लिया है|सुमित्रा की आँखें खुशी से छलक गई|

सुन बेटा ..तूने मुझे माँ जी, नही माँ कहा है....तुम्हारे रूप में मैंने बेटी पा लिया...

दोनों देर तक बातें करती रहीं....फिर सुमित्रा बोली...अब जा अपने कमरे में ....और किचन में दूध रखा है, दो गिलास लेती जाना बेटा.....शुचि कमरे की ओर जिस मंद गति से बढ़ रही थी, धड़कनें उतनी ही तीव्र गति से धड़क रहीं थीं।

क्रमशः


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