Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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Dr Jogender Singh(jogi)

Abstract

3.5  

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इलायची दाना

इलायची दाना

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दो रुपए दे दो माँ ? चाचा से ले लो अपने! 

पर माँ तुम्हारे पास भी तो होंगे ? मेरे पास नहीं है, बुड्डा तेरे चाचा को दे के गया, उसी से लो। चाचा दो रुपए, अरे मैंने सब के पैसे रीता को दे दिए हैं, वो सबको दिला देगी। चाचा वो इकट्ठे खरीद लेती है, मुझे अलग चाहिए। एक साथ ठीक रहेगा। पर मुझे अलग से बांटना है। ठीक है यह ले दो रुपए। पूरी दुनिया का खज़ाना मिल गया। उछलते हुए रीता दीदी के पास आया, यह देखो मेरे दो रुपए, अपना अलग से लेना, मैं अपने से नहीं दूंगी। ठीक है। मेरे पास दस रुपए है, दीदी ने बताया। कोई नहीं। मैं खुश था, अलग से रुपए मिले थे।

आज रिज़ल्ट का दिन था। इकतीस मार्च। हर साल इकतीस मार्च को रिज़ल्ट आता था। तैयार होकर स्कूल जल्दी पहुंच गए। आठ बहुत देर में बजे उस दिन। सब बच्चों को लाइन में खड़ा कर दिया। प्रार्थना हुई। फिर हेडमास्टर का भाषण। कई सारे अभिभावक भी आए थे। सीढ़ियां और सड़क अभिभावकों से भर गई थी। पहली कक्षा से रिज़ल्ट बताना शुरू किया गया, जो बच्चे पास हो गए, उनके नाम लिए गए। फिर फर्स्ट, सेकंड और थर्ड बताए गए। मेरी कक्षा पांचवीं थी। पास होने वालों के नाम बता दिए गए थे। फिर फर्स्ट मेरा नाम था, पूरे सेंटर में फर्स्ट आया।(सेंटर) दस/बारह स्कूलों के बीच होता था। राजमोहन सेकंड था और नित्यानंद थर्ड। अब जेब में रखे दो रुपए कम लगने लगे।

रिज़ल्ट के बाद, स्कूल के बगल के लाला से दो रुपए का इलायची दाना लिया। रीता दीदी ने दस रुपए का इलायची दाना लिया। अपना, छोटी बहन का और चाचा के लड़के का। सभी पास हो गए थे। रीता दीदी भी फर्स्ट आई थी। 

स्कूल से घर तक हर मिलने वाले को इलायची दाना खिलाना पड़ता। कागज़ के उस लिफ़ाफे से धीरे धीरे सारा इलायची दाना ख़तम होने लगा। जब किसी को बताता कि मैं सेंटर में फर्स्ट आया हूं वो और इलायची दाना मांगता। घर आते आते मेरा लिफ़ाफा खाली हो गया था। माँ ने जब रिज़ल्ट पूछा। तब उनको देने के लिए कुछ नहीं बचा था। दीदी ने अपना लिफ़ाफा दे दिया। फिर कभी भी अपना इलायची दाना अलग से नहीं खरीदा।


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