Ramdev Royl

Action Others Children

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Ramdev Royl

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ईयरफोन (कर्ण संवाद यंत्र)

ईयरफोन (कर्ण संवाद यंत्र)

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आज के युग में वास्तव में बढ़ती टेक्नोलॉजी के चलते मानव जीवन में काफी बदलाव आ गया है! लोग अपने जीवन को प्रौद्योगिकी के अनुसार डाल चुके हैं।इसमें जीवन का बड़ा हिस्सा बन चुका है मोबाइल (दूरभाष) घर से निकलते समय सब कुछ भूल जाते हैं पर मोबाइल नहीं इसके साथ सफर अधिक शोर में अधिकतर व्यक्ति इयरफोन (कर्ण संवाद यंत्र) का उपयोग करते हैं। जब सफर में जाते हैं तो इयरफोन को संभाल कर अपने साथ रखते हैं और जब कहीं सफर तय करना हो और इयरफोन (कर्ण संवाद यंत्र) ना हो तो सफर आसान नहीं होता है ऐसे एक दिन कॉलेज और स्कूल शिक्षा के काम से हनुमानगढ़ जाना हुआ तो में सुबह 17 जनवरी 2022 को 6 बजे जल्दबाजी में गया और उसे पहले दिन ही मैंने नया फोन खरीदा था तो उस खुशी में बिना इयरफोन ही घर से निकल गया तो जैसे ही बस में बैठा तो बैग में इयरफोन के बॉक्स को देखा तो वो खाली मिला तो याद आया की आज तो इयरफोन घर पे ही रह गया है, बिना इयरफोन के मोबाइल (दूरभाष) का उपयोग करना उतना अच्छा न लगा तो मोबाइल को बैग में रख दिया और बस अपने राह पर चल रही थी तो इस क्षेत्र का दृश्य शानदार था परंतु सर्दी का मौसम था इसलिए चारों ओर कोहरा छाया था जैसे जैसे बस आगे बढ़ रही वैसे थोड़ा बहुत उजाला नजर आता और जब बस किसी बस स्टैंड पर रुकती तो पता चलता की ये स्टैंड कोई आया है कौन सा इसका पता नहीं चल रहा था क्योंकि अधिक कोहरे में कुछ नहीं दिखाई नहीं दे रहा था तो बस में बैठा सोच रहा था कि कब हनुमानगढ़ आए और कितना समय लगेगा अलग अलग विचार मन आ रहे थे वैसे तो कई बार हनुमानगढ़ आना जाना लगा रहता है लेकिन उस समय इयरफोन पास में होता है तो 3 घंटे का रास्ता बहुत कम समय में ही सफर आसानी से हो जाता था इस बार इयरफोन के कारण सफर इतना कठिन लग रहा था जैसे में कोई 10 12 घंटे से सफर में चल रहा हूँफिर वो साथ में कोहरे के कारण सफर और भी मुश्किल लगा तब पता चला की बिना इयरफोन और बीमा मोबाइल के सफर अधूरा सा ही लगता है आज के युग में प्रत्येक व्यक्ति सफर के दौरान इयरफोन का उपयोग करते है जहां इयरफोन न मिले तो सफर का मजा ही नहीं है फिर वो सर्दी के दिन कैसे जैसे करके मैंने वो सफर तय किया और अपना काम समाप्त कर वापस रवाना हुआ तो फिर से वो इयरफोन याद आ गया लेकिन उस समय हल्की बारिश भी हो रही थी इस कारण इयरफोन की जितनी दुकानें मेरे रास्ते में आती वो सब बंद मिली तो एक निराशा के साथ वापस बस में बैठ गया, लेकिन उस लंबे सफर को कुछ छोटा करने के लिए मैंने हनुमानगढ़ से सरदारशहर के बीच एक गांव है केलनिया रुकने का सोचा और वहाँ तक टिकिट ले ली और बस में बैठ गया सफर वैसे ही बिना इयरफोन के मुश्किल कट रहा था फिर केलनिया पहुंच गया एक रात वहाँ रुका ओर सुबह सुबह वही जल्दी गांव आने की चाह जिसमें वहाँ भी इयरफोन भूल गया तब बस में बैठे तो याद आया कि फिर इयरफोन नहीं लाया तो वो दिन वास्तव में निराशजनक रहा वही दूसरे दिन भी वही कोहरा वही समय तब बैठे बैठे विचार किया किया की एक समय था कुछ नहीं था ना मोबाइल फोन ना ही इयरफोन तो भी लोग आसानी से जिंदगी जीते थे कहाँ आज टेक्नोलॉजी ने मनुष्य को अपने जाल में जैसे जकड़ लिया हो जिसमें से चाहा कर भी बाहर नहीं निकल सकते वर्तमान में प्रौद्योगिकी का इतना विकाश हुआ है कि मनुष्य पूर्णतया उस पर अपनी सुविधाएं ले रहे है इनके कुछ नुकसान भी है लेकिन सफर में हो और इयरफोन न हो तो सफर अधूरा अधूरा सा लगता है।            



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