ईर्ष्या
ईर्ष्या
ईर्ष्या एक ऐसी चीज है जिससे कोई भी इंसान अछूता नहीं है। हम सब जीवन में एक ना एक बार किसी से ईर्ष्या जरूर करते है। इस बात को कितना भी नकार ले परन्तु एक ईर्ष्या ही है जो हमें बताती है कि हमारे पास क्या है और क्या क्या हो सकता है भविष्य में। मुझे भी ईर्ष्या हुई थी, जब मेरी उम्र कोई 21- 22 वर्ष थी। मेरी स्नातक स्तर की पढ़ाई खत्म होने में थी और एक एक करके मेरे सारे मित्रो की नौकरी लगती जा रही थी। ये बहुत स्वाभाविक सा एहसास है कि आपके मित्र जब कुछ अच्छा मुकाम हासिल करते है तो आपको खुशी होती है परन्तु यह भी मन में लगता है कि मुझे क्यों नहीं मिला ये सब या इसमें ऐसा कुछ नहीं था जो इसे ये सब हासिल हो गया। ऊपर से तो हम खुश
नजर आते है परन्तु मन ही मन ईर्ष्या भी होती है।
जब एक एक करके मेरे सारे मित्र तरक्की कर रहे थे तो कॉलेज में खुशी का माहौल था। सभी जश्न माना रहे थे, अपने माता पिता को कॉल करके खबर दे रहे थे और मैं अकेले चुप चाप एक कोने में बैठी हुई थी और सोच रही थी कि इन सब को कुछ ना कुछ मिल गया परन्तु मुझमें ऐसी क्या कमी है जो मैं पीछे रह गई। उस वक़्त मैं अपने आप को बहुत कोसती थी। सभी लोग जश्न में शामिल होने के लिए ज़िद्द भी करते थे परन्तु अंदर से मेरा मन उत्साहित नहीं था क्योंकि मैंने अपने आप को नाकाबिल समझ लिया था। यह वो वक़्त था जब मुझे किसी की प्रेरणा की बहुत जरूरत थी। उस वक़्त मेरे पिता ने मेरी हौसला अफजाई की थी।