पहली रचना

पहली रचना

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मुझे याद है मेरी पहली रचना मैंने अपने स्नातक स्तर की पढ़ाई के वक़्त लिखी थी। मेरी उम्र उस वक़्त कुछ 19 वर्ष रही होगी। 2008 की बात है, कॉलेज से लौटते वक़्त मेरे मित्र ने मुझसे कहा कि आज शहर में कवि सम्मेलन है और बड़े बड़े कवि आज आने वाले है। मेरी रुचि नहीं थी उसमें इसलिए मैंने उसे मना कर दिया। उसने मुझे मनाने की बहुत कोशिश की परंतु मैंने बहाने बना दिए। मुझे लगा रविवार है और मुश्किल से तो अवकाश मिलता है, उसे मैं अपनी तरह से खर्च करना चाहती थी।


शाम हो चली थी और मेरे हॉस्टल की सभी सखियां अपने अपने काम में मग्न थी। कोई अपने मित्रो के साथ बाहर था, तो कोई पढ़ने में व्यस्त था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि अकेले क्या करना चाहिए। थोड़ी देर बाद मैं अपने उस मित्र से मिलने निकल पड़ी जिसने कवि सम्मेलन में जाने का जिक्र किया था। उसके हॉस्टल पहुंच कर मैंने उससे आग्रह किया वहा चलने का क्यूंकि मुझे वाकई में कोई काम नहीं था और मैं अकेले अपने कमरे में रविवार बर्बाद नहीं करना चाहती थी। यह बात सुनकर मेरा मित्र खिल खिलाकर हस दिया और साथ चलने के लिए तैयार हो गया।


उस दिन बहुत ट्रैफिक था। किसी तरह हम भारत सदन में पहुंचे। वहा पहुंच कर मैंने देखा कि भारी मात्रा में लोग वहा आए हुए थे और सभी में एक अलग ही प्रकार का उल्लास था। मुझे पहले तो यकीन नहीं हुआ कि कविताओं के भी लोग इतने शौकीन है और इतना उत्साहित हो सकते है। खैर, पीछे थोड़ी जगह मिली हमे खड़े होने के लिए, उतना ही काफी था। सम्मेलन शुरू हुआ और एक से बढ़ कर एक कवियों ने समा बांध दिया।


हर थोड़ी देर में तालियां बज उठती और लोग सिटिया बजाते हुए नजर आए। मैंने ध्यान से सब कवियों को सुना और पाया कि इन सभी लोगो ने अपने अपने शब्दों में अपनी ज़िन्दगी के अनुभव को हमारे साथ साझा किया है। सम्मेलन खत्म होने के बाद जब हम लौट रहे थे तब मैंने अपने मित्र को बताया कि मुझे बहुत अच्छा लगा वहा जाकर और मैं बहुत प्रेरित हुई हूं। मैं भी कुछ लिखना चाहती हूं। यह बात सुनकर मेरे मित्र ने मेरा हौसला बढ़ाया और बोला कि जरूर लिखना और सबसे पहले मुझे बताना। अपने कमरे में जाकर मैंने लिखना शुरू किया।


शायद उतना अच्छा नहीं था परन्तु वो पहली बार कुछ ऐसा हुआ कि मुझे लिखने का मन हुआ और अंदर से प्रसन्नता भी हुई। लिखते वक्त कवि हेमा शुक्ला जी मेरे मस्तिष्क में थी और उन्हीं कि पंक्तियों को सोच सोच कर मैं लिखती जा रही थी। इसके लिए मैं अपने मित्र की भी शुक्रगुजार हूं।


एक वो दिन था और आज ये दिन है कि मैंने लिखना कभी बंद नहीं किया। अब ये मेरे जीवन की तरह है जिससे मैं दूर नहीं रह सकती।


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