निर्णय

निर्णय

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हम सब की ज़िन्दगी में कोई ना कोई पल या कोई परिस्थिति ऐसी आती है जब हमें कोई महत्वपूर्ण निर्णय लेना होता है। ये निर्णय पूरी तरह से हमारी ज़िन्दगी बदल कर रख देता है। कुछ ऐसा ही हुआ मेरे साथ भी जब मुझे स्वयं की ज़िन्दगी के लिए एक निर्णय लेना पड़ा। बहुत मुश्किल था पर जरूरी भी था। 


घर के हालात कुछ ठीक नहीं थे।बाबू जी का काम भी रुक गया था और माॅं ज्यादा पढ़ी-लिखी नही थी पर घर का चूल्हा-चौका संभालती थी। एक छोटा भाई भी है मेरा जो अभी पढ़ाई कर रहा है। सरकारी नौकरी पाने की चाह रखता है। ऐसे में मेरे माता-पिता को बस मेरी शादी की चिंता सताती थी।


सच कहूं घर की ये परिस्थिति देख कर मेरा मन शादी करने को तो नहीं करता था। स्वाभाविक है कि कोई भी लड़की इस तरह अपने परिवार को नहीं देख सकती। गाना गाने का शौक मुझे बचपन से था और मोहल्ले के सभी लोग सरहना भी करते थे। मेरे दोस्त अक्सर मुझसे कहा करते थे कि मुझे इस गांव से निकल कर शहर जाना चाहिए और किसी अच्छी जगह अपनी गायकी का प्रमाण देना चाहिए।


नई दिल्ली मेरे गांव से कुछ ही मिलो की दूरी पर है और मैने विज्ञापन देखा, वहा पर एक गायकी प्रतियोगिता आयोजित होने को है और जीतने वाले को ईनाम स्वरूप ढेरो राशि मिलेगी। बस फिर क्या था मैने तरह तरह के सपने देखने शुरू कर दिए और जा कर बापू से कहा कि दिल्ली जाना है प्रतियोगिता में हिस्सा लेने के लिए।


मेरे बापू थोड़ा गरम मिज़ाज के है, ये बात सुन कर बौखला गए और बोले - “दिमाग तो ठीक है ना तेरा? दिल्ली जाएगी प्रतियोगिता में हिस्सा लेने।अब यही बचा है क्या की घर की बहू बेटियां ये सब करे बाहर जाकर। कोई जरूरत नहीं है और हम लड़का देख रहे है, जल्द ब्याह हो जाएगा तुम्हारा। जाओ अंदर अब।”


बापू की बाते सुन कर मैं मायूस हो गई और खेत की तरफ रोते रोते चली गई। शाम ढलने तक वहीं बैठी रही और सोचती रही कि अब क्या करू, क्यूंकि दिल्ली तो मुझे जाना ही है। बाला मेरा अच्छा मित्र है और उसे मैने सारी बात बता दी। उसने मुझसे कहा कल सुबह ४ बजे मुझे बरगद के पेड़ के पास मिलना सामान के साथ। मैं समझ गई थी उसका इशारा। अगली सुबह अपने मित्र के साथ चुपके से सामान बांध कर मैं दिल्ली की तरफ निकल पड़ी।


यहां घर पर अब तक बवाल मच चुका था। बापू का गुस्सा सातवे आसमान पर था। परन्तु अपने सपने की ओर जाने से मुझे अब कोई नहीं रोक सकता था। प्रतियोगिता जीत कर मैने जब इनामी धन राशि बापू को दी तो उन्होंने भीगी आंखो से मुझे गले लगा लिया। सच कहूं, नहीं जानती ये निर्णय कितना सही था और कितना गलत, पर महत्वपूर्ण था क्यूंकि इस विश्वास ने मुझे मेरे पिता के प्यार से मिलवाया था।


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