हम तो खेलेंगे !
हम तो खेलेंगे !
कह नहीं सकता कि आम तोड़ने के लिए या क्रिकेट खेलने के मैदान के लिए झगड़ा हुआ।इस झगड़े ने हिंसक रूप ले लिया। बच्चों के झगड़े में बड़े उलझ गए। एक पक्ष ने दूसरे पक्ष पर गोली चला दी। चार लोगों को गोली लगी और तीन ने दम तोड़ दिया। अरुण जी की डूबती राजनीति को संजीवनी मिल गयी। बहुत भटके हैं अरुण जी। कहाँ नहीं गए, पहले नीतीश, फिर कुशवाहा, कभी नक्सलियों के पास, कभी मोदी- शाह, लेकिन कुछ अनुकूल परिणाम नहीं मिला। हार गए चुनाव। बुरी तरह से हार गए। बिलकुल चित कर दिया इन्हें।
जमानत जब्त हो गयी। जब सिन्दुआरी शोकाकुल था, तभी पहुँच गए। कुछ दिया नहीं कैसे ? आश्वासन दिया, भाषण दिया, नीतीश से खार खाए बैठे थे, मढ़ दिया आरोप। सुशील बाबू भी पहुंचे। कैसे नहीं पहुँचते । वोट का मामला है। इनकी पार्टी की सरकार है। एक खत लिख दिया गृह मंत्री के नाम, चलो पीछा छुटा। साँप भी मर गया और लाठी भी नहीं टूटा। अब आशुतोष भैया भी पहुँच गए। पीला झण्डा है इनका।
आते ही इन्होने एक लंबा-चौड़ा भाषण दिया। बड़े ही आक्रामक तेवर हैं इनके। बस घोषणा कर दी - चल के झण्डा गाड़ देते हैं इनकी जमीन पर। गाँववालों ने सोचा - भैया आशुतोष, आप तो झण्डा गड़वा कर चले जाओगे और बाद मे हम सबका क्या होगा? जल में रहकर मगर से वैर। पिछली बार जब बारा नरसंहार हुआ था, क्या कर लिया था आपने। हत्यारे तो आज भी मजे कर रहे हैं। सरकार और राष्ट्रपति का अपना अधिकार है, हत्यारों को जीवन दान देने का । आपके तो मुखिया को भी मार डाला और यह भी प्रचारित करवा दिया कि उनकी हत्या आपके अपने लोगों ने ही की है । गाँववालों ने बड़े ही संयम से काम लिया। इस गाँव ने समय समय पर इस क्षेत्र को जिला परिषद का अध्यक्ष और एम.एल.ए. दिया है । बड़ा प्रतिष्ठित गाँव है। प्रतिष्ठा में ही तो तीन को प्राण गवांने पड़े। यहाँ झगड़े भी ऐसे ही होते हैं।
गलियों, नालियों , खेत की आल काटने को लेकर, कभी एक जाति अथवा गाँव विशेष को लेकर तो कभी झूठी प्रतिष्ठा को लेकर। अभी ये सब जो लौट रहे हैं, पता नहीं, ठीक से नहीं कह सकता कि ये कोरोना कैरियर हैं या नहीं, लेकिन इतना तो निश्चित रूप से कह सकता हूँ कि अब अपराध बढ़ेंगे। अब कोई काम तो मिलेगा नहीं तो फिर से चोरी-छिनारी, छिनतई की घटनाएँ बढ़ेंगी। गया से किसी योगी नाम के व्यक्ति का वीडियो वायरल हो रहा है।
पुरानी घटनाओं को दुहराने की धमकी दी जा रही है। उसने तो यहाँ तक कह दिया कि आशुतोष अगर हमारे लोग भड़क गए तो आप लोग बर्बाद हो जाओगे। समूल नाश कर देंगे। हाँ, मेरे मानस पटल पर उन दिनों की कुछ घटनाएँ अंकित हैं, जाति के नाम खून की होली, जाति के नाम स्कूल और कॉलेज में पढ़नेवाली लड़कियों से छेड़ छाड़, जाति विशेष के लोगों के एम. आई. जी फ्लैट पर अवैध कब्जा करना, विदेशी पर्यटकों से स्टेशन पर लूट पाट (ठीक आज के सिंध प्रांत के हिंदुओं वाली स्थिति) । सब कुछ देखा तो है ही न । मामला थोड़ा शांत होनेवाला था कि ई भाई साहब आ टपके। सच कहें तो ये एक थप्पड़ भी बर्दाश्त न कर पाएँ, सौ मीटर दौड़ भी न सकें, लेकिन जहर फैलाने का काम वखूबी कर लेते हैं।
ये मरने मारने की बात करनेवाले भूल जाते हैं कि उसकी मार सबसे भयंकर होती है। उसकी संख्या की सही गिनती कठिन है। हाँ, तो बच्चों ने फिर से क्रिकेट खेलना शुरू कर दिया हैं- ये चौकाने वाली खबर है। अभी श्राद्ध का काम समाप्त नहीं हुआ है। अभी लोग आएंगे अपनी राजनीति चमकाने, मरी हुई राजनीति को जिंदा करने। सारे देश में लोक डाउन चल रहा है और सिन्दुआरी और आस पास के गाँव में लोक डाउन की धज्जियाँ उड रही है।
लोग जातीय समूह में एकत्रित हो रहे हैं। यहाँ का जातीय समूह भी बड़ा अजीब है। एक ही गाँव में रहनेवाले एक ही जाति के सभी लोगों का डी. एन. ए. एक नहीं है अर्थात अलग-अलग है। कौन समझाए इनको कि भ्रम है ये जातिवाद। अवैज्ञानिक है ये जातिवाद। गाँव में स्कूल पर सी. आर. पी. एफ. वाले आ गए हैं ताकि निकट भविष्य में कोई दुर्घटना न हो । ये दिन में लोगों को घर से बाहर नहीं निकलने दे रहे हैं।
बच्चे जल्दी उठ गए हैं। साढ़े चार बजे सुबह खेल के मैदान में पहुँच जाते हैं । 6 बजे वापस घर के अंदर। शत्रु पक्ष वाले के बच्चे भी । अगर वे न आयें तो टीम ही पूरी न हो। लेकिन आज एक दुर्घटना घट गयी। सारे बच्चे घेर लिए गए। सी. आर. पी. एफ. वालों ने इन्हें सुबह पाँच बजे ही घेर लिया। सारे बच्चों ने सफाई दी - सर हमलोग अलग अलग खड़े होते है। साफ सफाई का ध्यान रखते हैं और समय का पालन करते हैं। सी ओ साहब ने व्यंग्य और धमकी के लहजे में कहा - सोशल डिस्टेन्शिंग मैंटेन करियों।