हीरो
हीरो


"बरसात की दो महीने की छुटियाँ 04जुलाई से 31अगस्त तक होती है हर साल "सिरमौर बोला ! पिछले साल तो तीन जुलाई से ही हो गयी थी मैं बोला ! "तीन तारीख़ को इतवार था पागल "हँसते हुये ज़वाब दिया उसने !
"चलो चलते हैं घर" !
"अरे आज आखिरी दिन है, आराम से चलेंगें !"
महेंद्र, यशवंत, लाजिंदर, सुनील सभी चहके चहके घूम रहे है !" चलो भाई" लाजिंदर बोला !छुटियों का काम (होम वर्क )बहुत ज़्यादा मिला है, इस बार !बहुत दिन लग जायेंगे !
"अरे कॉपी पेन तो ख़रीद लें "!यशवंत बोला
"पैसे लाये हो क्या ?" "चाचा नाहन से लायेंगे, यह ईश्वरदत्त और ब्रम्हदत्त दोनों बहुत मंहगा देते है सामान, जमटा में और दुकान भी नहीं है !" मैं बोला !
"मैं तो ख़रीद रहा हूँ, जल्दी से होम वर्क खत्म कर दूंगा, फिर बाकी दिन मौज", यशवंत बोला !
"चलपार्क की स्याही भी नहीं मिलेगी, कॉपी भी घटिया !"
"कौन सा नंबर मिल रहे हैं, काम पूरा करना है बस !"
"चलो ले लो जल्दी से, देख रहे हो बादल आसमान में, रूप सिंह बोला ! रूप सिंह हमारे गावं का उम्र में सबसे बड़ा लड़का है ! "
यशवंत और राजू ने स्टेशनरी का सामान खरीदा !सभी लोग तीन चार के ग्रुप में, अगल बगल बातें करते चल रहे है !कुल मिला कर बीस बाइस, लड़के लड़कियां !ठंडी हवा चलने लगी, हम सभी पहाड़ी की चढ़ाई वाले हिस्से में चल रहें हैं, तभी बारिश शुरू हो गई ! सभी आगे पीछे होकर
तेज़ी से चलने लगे !
रूपसिंह अपने बड़े होने की जिम्मेदारी निभाते हुये सभी से तेज़ चलने को कह रहा है ! जल्दी चलो सब !चढ़ाई ख़त्म होने को है, ज़्यादातर बच्चे ऊपर पंहुच गए, दो तीन सुस्तराम को छोड़ कर ! यह क्या ?ओले गिरने लगे !आसपास पेड़ की ओट लेने दौड़े ! नहीं पेड़ के नीचे नहीं, पेड़ पर बिजली गिरती है, रूप सिंह चिल्लाया !"सब अपनी अपनी तख्ती निकाल लो ! सर पर लगा लो ! इकट्ठे होकर बैठो !"
सभी तख्ती सिर पर लगाए पास -पास झुण्ड बना कर बैठ गए ! पीछे छूट गए बच्चे रोने लगे ! रूपसिंह वापिस उतरकर सभी को ले आया !
लगभग पंद्रह मिनट बाद ओले गिरना बंद हुये ! बारिश भी हलकी हो गयी ! सभी तेज़ी से चलने लगे !पंडित रामदत्त का घर सब से पहले पड़ता है,
चोटिल बच्चे सीधे उनके आँगन में, फिर लगे कमरे में घुसने, पंडताईंन चिल्ला रही है अंदर नहीं अंदर नहीं !पर ओलों की मार खाये सारे बच्चे घर के अंदर ! कच्चा फर्श कीचड़ हो गया !"सत्यनाश कर दिया !" पंडिताइन बड़बड़ाई !कांता( पंडित जी की लड़की, )ने बोरे फर्श पर डाल दिये !
बारिश बंद होने तक सभी वंही खड़े रहे ! पंडिताइन की गालियां सुनते हुए !ओलों की कुटाई और रूप सिंह के जिम्मेदारी भरे व्यवहार की सालों चर्चा होती रही ! आपस में चिढ़ाने के लिए ओलों की कुटाई से भिन्न भिन्न प्रकार से रोने की आवाज़े भी एक शस्त्र की तरह उपयोग होती रही !खासकर लाजिंदर हम सब को खूब चिढ़ाता !पर उस दिन के हीरो रूपसिंह चाचा थे !