Sonia Goyal

Abstract Tragedy Fantasy

4.5  

Sonia Goyal

Abstract Tragedy Fantasy

घर आजा परदेसी

घर आजा परदेसी

7 mins
317


लता जी आज सुबह से ही काफ़ी उदास थी। अपने कमरे में बैठी अपने पति प्रकाश जी, बेटे सूरज, बहू पूजा और पोते रमेश की तस्वीर को ही निहारे जा रही थी। इतने में ही बाहर गेट पर डोर बेल बजने की आवाज़ आई। डोर बेल की आवाज़ सुनकर लता जी अपनी जगह से उठी और तस्वीर को उसकी जगह पर रखकर दरवाजा खोलने गई।

बाहर दरवाज़े पर लता जी की नौकरानी शांति खड़ी थी। लता जी उसको देखकर बोली,"अरे शांति तू, क्या बात आज जल्दी आ गई??"

शांति,"जी मालकिन, आज दूसरे घरों का काम जल्दी ख़त्म हो गया था, तो जल्दी आ गई, सोचा कि आज आपके साथ ज्यादा समय बिता लूंगी।"

लता जी,"आजा अंदर चल और पहले घर का काम ख़त्म कर ले, फिर बातें करते हैं, सारा घर अस्त-व्यस्त हो रखा है।"

शांति लता जी की बात मानकर पहले घर का काम ख़त्म करने में लग गई और लता जी फिर से अपने कमरे में जाकर अपने परिवार की तस्वीर को निहारने लगी। शांति सारा काम ख़त्म करके चाय नाश्ता लेकर लता जी के कमरे में आ गई।

नाश्ते को देखकर लता जी शांति से बोली,"अरे शांति ये चाय नाश्ता...."

"मालकिन ये आपके लिए है। आपने आज नाश्ता नहीं किया ना, तो मैंने आपके लिए नाश्ता बनाया है, अब जल्दी से खा लीजिए वरना ठंडा हो जाएगा।" शांति ने जवाब देते हुए कहा।

लता जी,"तुम्हें कैसे पता शांति कि मैंने नाश्ता नहीं किया??"

शांति,"मालकिन आपके यहां मैं पिछले पांच वर्षों से काम कर रही हूं और मुझे पता है कि जब आप ज्यादा उदास होती है, तो आपको कुछ भी खाने-पीने की सुध नहीं रहती।"

लता जी,"शांति तू मुझे कितने अच्छे से समझती है। सूरज के पापा के स्वर्ग सिधारने के कुछ ही महीनों के बाद सूरज अपनी बीवी और बेटे को लेकर विदेश चला गया। उन्हें गए हुए तीन वर्ष बीत गए हैं, पर वो एक बार भी वापिस लौटकर नहीं आएं। तबसे मुझे बस एक तेरा ही आसरा है, तू कितने अच्छे से मेरा ख्याल रखती है।"

शांति,"जब आप मुझे अपना समझती है और कभी यह अहसास नहीं होने देती कि मैं यहां की नौकरानी हूं, तो मेरा भी तो फर्ज बनता है ना आपकी निस्वार्थ सेवा करने का।"

लता जी मायूस होते हुए,"काश मेरा बेटा भी यह बात समझता और ज्यादा पैसे कमाने के लालच में मुझे यहां अकेले छोड़कर न जाता।"

"आप देखना कि छोटे मालिक को बहुत जल्द ही अपनी गलती का अहसास होगा और वो सब कुछ छोड़कर अपने परिवार के साथ यहां वापिस आ जाएंगे।" शांति ने लता जी को सांत्वना देते हुए कहा।

लता जी,"काश तेरी बात सच हो जाए शांति और ये बूढ़ी आंखें बंद होने से पहले अपने बेटे बहू और पोते का मुंह देख सकें। सूरज के पापा ने इस घर को हर सुख सुविधा के अनुकूल बनवाया था, ताकि उनके बच्चे को कोई तकलीफ़ न हो। अब तो यह घर भी उन्हें बुला रहा है।"

शांति काफ़ी देर तक लता जी को सांत्वना देती रही और उनके लिए रात का खाना बनाकर अपने घर चली गई।

उधर विदेश में पूजा का मन बिल्कुल भी नहीं लगता था। सूरज पैसे कमाने के लिए सारा दिन मशीन की तरह काम करता रहता था। पूजा ने सोच लिया था कि वो सूरज से बात करेगी कि अपना देश अपना ही होता है, इसलिए हमें अपने देश वापिस चले जाना चाहिए।

आज जैसे ही सूरज घर वापिस आया तो पूजा ने उससे कहा,"इन तीन सालों में आपने बहुत पैसे कमा लिए, चलिए ना अब अपने देश वापिस चलते हैं, वहां मां जी भी अकेली है और यहां पर मेरा और रमेश का बिल्कुल भी मन नहीं लगता।"

सूरज कुछ कहता इससे पहले ही वहां उनका पड़ोसी माइकल आ गया। अगले दिन माइकल के बेटे का जन्मदिन था, तो वह उन्हें अपने बेटे के जन्मदिन की पार्टी का न्योता देने आया था। माइकल के जाने के बाद पूजा ने सूरज से कहा,"मैं किसी भी पार्टी में नहीं जाऊंगी। पार्टी के नाम पर ये अंग्रेज़ शराब के नशे में धुत्त अलग-अलग कोने में पड़े रहते हैं, कोई किसी से बात नहीं करता।"

सूरज,"ये तुम क्या कह रही हो, वो हमारे पड़ोसी हैं, अगर हम नहीं गए, तो उन्हें बुरा लगेगा। इसलिए हम सब कल पार्टी में जाएंगे और अब मुझे इस बारे में कोई बात नहीं करनी।"

पूजा को बोलकर सूरज अपने कमरे में सोने के लिए चला जाता है। पूजा के पास अब कोई रास्ता नहीं बचता, तो वह अगले दिन पार्टी में जाने के लिए तैयार हो जाती है। पार्टी में वैसा ही माहौल होता है, जैसा पूजा ने कहा था। सभी हाथ में शराब का गिलास लिए, एक-एक कोना पकड़े बैठे थे। कोई किसी से बात नहीं कर रहा था।

यह सब देखकर पूजा को गुस्सा आ जाता है और वो बिना कुछ बोले वहां से अपने घर चली जाती है। सूरज उसकी इस हरकत के लिए माइकल से माफ़ी मांगता है और वो भी अपने घर आ जाता है। घर आने के बाद वह गुस्से से पूजा से कहता है,"ये क्या तरीका है तुम्हारा वहां से वापिस आने का, एक बार भी नहीं सोचा कि माइकल को कितना बुरा लगेगा।"

सूरज की बात सुनकर पूजा का गुस्सा भी बढ़ गया। वह गुस्से में सूरज से बोल पड़ी,"बुरा लगता है तो लगने दो, मैंने तो पहले ही कहा था कि मैंने इस पार्टी में नहीं जाना। पार्टी में तो क्या मुझे इस देश में ही नहीं जाना, बस बहुत हो गया।"

सूरज,"पूजा ये तुम क्या कह रही हो??"

पूजा हंसते हुए कहती है,"इस देश ने मुझे पूजा रहने ही कहा दिया। यहां आते ही मैं पूजा से पू हो गई, आप सूरज से सू और रमेश रैम हो गया। इस देश ने तो हमसे हमारे असली नाम तक छीन लिए। मां जी सही कहती थी कि पराये देश में आप पैसे तो कमा लोगे, पर रिश्ते खो दोगे। आपको पता है कि ये अंग्रेज़ों के बच्चे हमारे बेटे के साथ कैसा व्यवहार करते हैं, अलग नस्ल का होने के कारण हमेशा उसका मज़ाक उड़ाते हैं, कभी उसे साथ नहीं खेलने देते।"

अपनी मम्मी पापा के झगड़े की आवाज़ सुनकर रमेश भी वहां आ गया और अपने पापा से कहने लगा,"मम्मी बिल्कुल ठीक कह रही है पापा। सैम, एलिना, जैक सब मेरा मज़ाक उड़ाते हैं। मुझे भी यहां नहीं रहना, मुझे दादी के पास जाना है। वहां मेरे कितने सारे दोस्त हैं, जो मेरे साथ खेलते हैं और कभी मेरा मज़ाक नहीं उड़ाते।"

पूजा,"सुन लिया आपने, बस मैंने फैसला कर लिया है कि कल के कल मैं और रमेश हमेशा के लिए यहां से जा रहे हैं। आपको साथ चलना है तो ठीक, नहीं तो आप रहिए यहां अकेले और पैसों से ही रिश्ते निभाइए।"

पूजा और रमेश की बातें सुनकर सूरज को अहसास होता है कि उसने अपना देश छोड़कर कितनी बड़ी गलती कर दी। अपनी गलती पर पछताते हुए उसके आंसू निकल आते हैं और वो पूजा और रमेश से कहता है,"तुम दोनों बिल्कुल ठीक कह रहे हों, हमारा अपना देश ही सबसे अच्छा है और हम सब हमेशा के लिए इस देश को छोड़कर अपने देश चले जाएंगे। पूजा हम कल के कल नहीं जा सकते, मुझे कुछ दिन दो, फिर चलेंगे और हां तुम दोनों में से कोई भी मां को इस बारे में कुछ नहीं बताएगा। हम उन्हें सरप्राइज देंगे।"

सूरज की बात सुनकर पूजा और रमेश खुश हो जाते हैं और सूरज को गले लगा लेते हैं। कुछ दिनों बाद सूरज अपने परिवार के साथ हमेशा के लिए भारत वापिस आ जाता है। घर पहुंच कर जब वो डोर बेल बजाता है, तो अंदर से लता जी आकर दरवाज़ा खोलते हुए कहती है,"अरे शांति, तू आज फिर से जल्दी आ गई।"

पर जैसे ही लता जी सामने सूरज, पूजा और रमेश को खड़े देखती है, तो उनकी आंखें छलक जाती है और वह उनसे कहती है,"मेरे बच्चों आ गए तुम। भगवान ने आज मेरी सुन ही ली और मेरी आंखें बंद होने से पहले तुम्हें यहां भेज ही दिया। इतने वर्षों बाद आए हो, तो अब मैं तुम्हें जल्दी वापिस नहीं जाने दूंगी।"

सूरज,"मां हम वापिस जाने के लिए नहीं आएं। अब से हम सब यहीं रहेंगे, आपके साथ और वो भी हमेशा के लिए।"

सूरज की बात सुनकर लता जी पूजा की तरफ देखती है, तो वो भी सहमति में अपना सिर हिला देती है। फिर लता जी खुश होकर सबको गले लगा लेती है और उनको अंदर ले जाती है। इतने में शांति भी वहां आ जाती है। सबको वहां देखकर वो भी बहुत खुश होती है और लता जी से कहती है,"मैंने आपसे कहा था ना मालकिन कि छोटे मालिक अपने परिवार के साथ बहुत जल्द वापिस आएंगे।"

लता जी हंसते हुए उससे कहती है,"तू बिल्कुल ठीक कह रही है शांति। चल अब जल्दी से सबके लिए चाय नाश्ता बना दे।"

उनकी बात सुनकर शांति चाय नाश्ता बनाकर ले आती है। चाय नाश्ता करने के बाद सूरज कहता है,"सच में अपना देश अपना ही होता है।"

सब सूरज की बात से सहमत होकर हंस देते हैं। लता जी भी मन में अपने पति से कहती है, "देख रहे हैं आप, आज हमारा परिवार फिर से एक हो गया।"


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Abstract