sushant mukhi

Abstract Romance Inspirational

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sushant mukhi

Abstract Romance Inspirational

एक तरफा इंतज़ार

एक तरफा इंतज़ार

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यार बात सुन मैं कब से गौर कर रहा हूँ उस आदमी को,, वो हवा में हाथ हिलाकर कुछ बड़बड़ाए जा रहा है,, जबकि उसके सामने कोई नही है।दिलनाज़ कैफ़े के काउंटर पर खड़े शेखर ने बिल वसूलने वाले आदमी(कर्मचारी) से पूछा।

काउंटर वाला : कौन?शेखर : अरे वो उधर सफेद शर्ट पहना हुआ आदमी।

काउंटर वाला : ओह अच्छा वो.. रोमियों साहब।शेखर : रोमियो साहब?

काउंटर वाला: उसको हम सभी रोमियों के नाम से ही पुकारते है लेकिन उसका असली नाम 'रमन' है।

शेखर : लेकिन वो ऐसी हरकते क्यों कर रहा है पागल वागल है क्या?काउंटर वाला : पागल का पता नही मगर दीवाना है।

शेखर : क्या मतलब?

काउंटर वाला : वो अक्सर यंहा कॉफ़ी पीने आया करता था। शायद तब से जब से ये कॉफी शॉप यंहा बना था। यंही उसकी मुलाकात एक लड़की से हुई थी जिसका नाम ह्म्म्म याद नही आ रहा क्या था हां,, शायद जेनी ! यही नाम था। पहले नज़रे मिली फिर बातचीत शुरू हुई और फिर दोस्ती।

हम सभी उन्हें रोमियो जुलियट कहते थे।

एक दिन रोमियो ने जूलियट यानी रमन ने जैनी से प्यार का इज़हार करने का नक्की किया। उसने तय किया कि अगले इतवार के दिन सबके सामने यंही जैनी को वो प्रोपोज़ करेगा। बल्कि रिंग , फूलों से सजा गुलदस्ता और हमारे कॉफी हाउस का सबसे स्पेशल हार्ट शेप वाला कॉफी सब तैयार किया था उसने।मगर..

शेखर : मगर ?

काउंटर वाला : मगर , जैनी नही आयी..।

शेखर : ओह..

काउंटर वाला : ऐसा किसी रोज़ नही होता जब 'रमन' यानी अपना ये रोमियों यंहा नही आता। वो हर शाम यंहा आता है ,, सज-सवर कर , हाथ में गुलाब , और एक रिंग लेकर। हमारा कैफ़े बन्द होने तक बैठा रहता है। अपनी 'जैनी' को प्रोपोज़ करने की प्रैक्टिस करता रहता है हवा में हाथ हिलाते हुए,,खुद में ही बड़बड़ाते हुए। फिर उठकर खामोशी से चला जाता है अपना गुलाब वंही टेबल पर रख कर। अगली शाम फिर वैसे ही आता है। ये सिलसिला पिछले कई महीनों से चला आ रहा है। न कोई दोस्त यार , न परिवार है। जब भी देखा है अकेले ही देखा है हमने।

बेचारा.. मोहब्बत का मारा।

शेखर : लेकिन जैनी के नही आने की वज़ह?काउंटर वाला : पता नही,, क्या हुआ,, क्यों नही आयी ये तो हम में से किसी को भी मालूम नही।शेखर : हम्म.. बेचारा। शेखर उस टेबल पर बैठे आदमी को देखते हुए कहा।

काउंटर वाला : लेकिन साहब आप इतनी दिलचस्पी क्यों ले रहे है इसमे?शेखर : कुछ नही ,, असल मे मैं एक लेखक हूँ। मुझे आस पास के माहौल को , लोगो को ऑब्सर्व करना अच्छा लगता है।

काउंटर वाला : ओह अच्छा। वैसे आपको इससे पहले यंहा कभी नही देखा होगा मैंने।शेखर : जी हां। मैं यंहा का नही हूँ। दरसअल ये शहर मेरी पत्नी का माइका है। कुछ दिन के लिए पत्नी को लिए आया हूँ। वो पेनार रोड के वंहा आशियाना अपार्टमेंट है न,,वंही मेरी पत्नी का माइका है। कमरे में बोर हो रहा था तो थोड़ा घूमने निकला। कॉफी शॉप दिखा तो कॉफी की तलब हुई।

काउंटर वाला : ओह ऐसा है। आपसे मिल कर अच्छा लगा। आते रहिएगा।  

उसने मुस्कुराते हुए कहा।

शेखर अपना कॉफी का बिल चुकता कर वंहा से चला गया।

टिंगतोग।दरवाजा खुला।सामने शेखर की पत्नी 'रीमा' थी।

" आ गए आप.. कंहा घूमने गए थे वैसे? "

" कंही नही बस यंही आस पास। "

शेखर मुह हाथ धोकर कमरे में आ गया।

कॉफी लेंगे ?

" कॉफी .. अर्रे अभी तो कॉफी पी कर आ रहा हूँ इसलिए रहने दो। "

" अच्छा , कंहा से ? "

" दिलनाज़ कैफ़े। "

वो जो उधर मार्केट से बाहर निकलते ही मौजूद है ,,वो ?

" हम्म। " शेखर ने लैपटॉप ऑन करते हुए हामी भरी।

" सासु माँ और बाबा कंहा है ? "

माँ पड़ोसन के घर गयी है और बाबा पता नही बाजार तरफ ही गए है शायद। कह रहे थे बेटी और दामाद आए है साथ ही आज इतवार है,, कुछ स्पेशल बनना चाहिए खाने पर।

" अर्रे मुझसे कहते तो साथ चलता। " शेखर ने लैपटॉप में उंगली करते हुए कहा।

हम्म..

और आप क्या आते ही बस लैपटॉप खोल कर बैठ गए।

"अर्रे कुछ नही बस थोड़ा सा राइटिंग नोट लिख रहा हूँ। "

अब क्या दिख गया ? कौन मिल गया ? किसको ऑब्सर्व कर के आए है साहब आप ?

"वंही कैफ़े में मैंने एक आदमी को देखा जो हवा में हाथ हिला कर कुछ हरकते कर रहा था।"

कोई पागल को देख कर आए है लगता आप।

"सुनो तो पहले। मैंने काउंटर वाले से पूछा तब उसने मुझे उस आदमी के बारे में कुछ बताया।दरअसल उसकी एक लव स्टोरी है या यूं कहो कि अधूरी लव स्टोरी है। "

मतलब?

" वो आदमी असल मे रोज गुलाब लिए अपनी प्रेमिका का इंतज़ार करता है। मगर उसकी प्रेमिका उससे मिलने का वादा कर कभी मिलने ही नही आयी।सोच सकती हो। वो आज भी उसके आने के इंतेज़ार में है यानी कितना चाहता होगा उसे। ऐसे पागल प्रेमी कंहा मिलते है आज के तारीख़ में।"

"मगर कम्भख्त वो लड़की ,, हम्म,, हाँ जैनी नाम था उसका ,, उस काउंटर वाले ने बताया था। 'जैनी' क्यों उससे मिलने नही आयी। आखिर क्या वज़ह थी। " शेखर लैपटॉप में देखते हुए बुदबुदाया।

रीमा अपने पति शेखर की बाते सुन स्तब्ध थी। जब उसने 'जैनी' कहा तब ही जैसे रीमा को एक धक्का सा लगा।

वो,,आदमी दिखने में कैसा था ? रीमा ने पूछा।

"हम्म,, दिखने में ठीक ही था। सफेद शर्ट , जीन्स पैंट , करीब 5 फ़ीट 4 इंच कद , रंग गोरा और चहरे पर हल्की हल्की दाढ़ी थी। उसके दाए हाथ की कलाई पर एक बहुत मोटा सा कड़ा था जब वो हरकते कर रहा था तब मैंने गोर किया था।" शेखर ने लैपटॉप में नज़रे गड़ाए हुए कहा।

अब तक रीमा की सांसे तेज़ हो चली थी और उसकी आंखें बड़ी हो गयी थी। 

" किसी को मिलने का कहकर कभी मिलने न जाना कोई ऐसा क्यों करेगा भला। आखिर उस लड़की ने ऐसा किया क्यों। इससे अच्छा तो साफ साफ इनकार कर देती बेचारा आज भी इंतेज़ार में है वो। " शेखर बड़बड़ाया।

शेखर ने जैसे ही रीमा की तरफ नज़र किया तो उसने रीमा को एक दम शांत किसी ख्याल में डूबा हुआ पाया। उसने रीमा के कंधे पर हाथ रखा।"अरे कंहा खो गई ? क्या हो गया? "शेखर के सवालों का वो कोई जवाब न दे सकी। 

कंही नही बस ..रीमा कुछ कहती इतने में किचन से कुकर की सिटी बज उठी। रीमा किचन की तरह चल दी।

शेखर को समझ न आया मगर उसने ज्यादा गौर न किया और वापस अपने काम ने लग गया।

 रात में डिनर पर परिवार एक साथ भोजन कर रहा था। रीमा थोड़ी सुस्त और ख़ामोश सी थी।

 " वाह आज बिरयानी काफी लजीज बनी है। थोड़ा और मिलेगा,, " रीमा के बाबा महेश जी ने कहा।

"आहो, आप को ज्यादा चिकन खाने का डॉक्टर ने मना किया है। " उनकी पत्नी सुनीता जी ने उनकी सेहत का ख्याल कर खाने को याद दिलाया।

"अर्रे आज तो खाने दो। कौन सा रोज रोज खाता हूं।"

"शेखर बेटा मैं तो कहता हूँ तुमलोग महीने में दो बार आया करो ,, इसी बहाने मुझको स्वादिष्ट खाने का मौका मिल पाएगा। वरना हम तो बस दाल रोटी , सब्जी भाजी पे ही चल रहे है। " महेश जी ने मुह बनाते हुए कहा।

आहो , बस भी करो अब आप।

" सच मे सासु माँ आपके हाथों का जवाब नही। रीमा भी कभी इतनी स्वादिष्ट बिरयानी नही बना पाई। " शेखर ने भी दिल खोल कर तारीफ की खाने के स्वाद की। 

रीमा के पिता की नज़र रीमा पर पड़ी जो खाने के प्लेट पर बड़ी मुश्किल से हाथ चला रही थी ।" रीमा कंहा खोई हुई हो ? मैं देख रहा हूँ तुम ठीक से खाना नही खा रही हो। क्या बात है बेटा ? तुम्हे पसंद नही आ रहा स्वाद? "

"नही ,, बाबा ऐसा कुछ नही है। बिरयानी बहुत टेस्टी है। वो शाम से ही पेट भारी सा लग रहा था इसलिए थोड़ा सा खा कर ही पेट भर गया। आप लोग खाइए न मेरा हो गया।" रीमा प्लेट लेकर वॉश बेसिन के तरफ चल दी।

देर रात में भी रीमा को नींद नही आ रही थी। वो बिस्तर पर करवट बदल रही थी। फिर अचानक उठ कर बालकनी की तरफ चल दी।

थोड़ी देर बाद शेखर की आंख खुली वो पानी पीने के लिए उठा तो उसने पाया कि रीमा उसके बगल में नही है। उसने घड़ी की तरफ देखा तो रात के 1 बज रहे थे।

"ये रीमा कंहा चली गयी? बाथरूम गयी है क्या?" शेखर खुद में बुदबुदाया।मगर रीमा तो बालकनी में थी।

शेखर भी उसे तलासते हुए बालकनी तक आ पहुंचा।" अरे रीमा , तुम यंहा क्या कर रही हो ? "पीछे से शेखर की आवाज़ ने अचानक से रीमा को चौंका दिया।

" अरे मैं हूँ। " शेखर ने कहा।

ओह.. 

"हां तुम यंहा क्या रही हो इस वक़्त? "शेखर ने हैरानी में फिर पूछा।

" वो,,मैं बस ऐसे ही। मुझे नींद नही आ रही थी,, थोड़ी सी बेचैनी सी हो रही थी,, तो यंहा बालकनी के पास आ गयी। आप सो रहे थे आपको जगाना सही नही लगा। " रीमा ने जवाब दिया।

"बेचैनी.. क्या हुआ तुम्हारी तबियत तो ठीक है न?" शेखर ने रीमा के माथे पर अपनी उल्टी हथेली को रखते हुए पूछा।

" डॉक्टर को फ़ोन करू क्या अगर कुछ ज्यादा खराब लग रहा है तो? "

नही,,नही ऐसी कोई जरूरत नही है। मैं ठीक हूँ।

"रीमा,, तुम सुबह से ही बदली बदली लग रही हो। डिनर में भी तुम खोई हुई थी। बात क्या है ? "

कोई बात नही है।

" रीमा प्लीज। कुछ है तो बताओ,, मुझसे क्यों छुपा रही हो? कोई बात है जो तुमको चिंता दे रही है तो तुम मुझसे नही कहोगी तो किस से कहोगी?? हम सुखः दुःख के साथी है जीवन साथी है रीमा। बताओ बात क्या है?" शेखर ने रीमा के गाल पर हाथ रखते हुए बहुत विनम्र भाव से पूछा।

रीमा अब और ख़ामोश न रह सकी। 

"शेखर दरसअल बात ये है कि आज सुबह जब आप घर आए और फिर जो आपने मुझे किसी शख्स के बारे में कहानी बताई उस कहानी में वो लड़की जिसका नाम जैनी बताया था ..वो कोई और नही मैं ही हूँ..।। मैं जैनी।। "

इतना कहकर रीमा के आँख में दो बूंद आँसू उतर आए।

शेखर 2 कदम पीछे हट बस रीमा को एक टक देखता रहा।

"रीमा ,, ये तुम क्या कह रही हो? तुम ,,जैनी,, मतलब कैसे ,, क्या ??" शेखर को कुछ समझ नही आ रहा था।

"शेखर आपने तो मुझसे शादी करने से पहले ही ये कह दिया था कि आपको मेरे बीते हुए कल में कोई दिलचस्पी नही है तो मैंने भी कभी कुछ भी नही बताया ,,लेकिन आज अतीत अचानक से मेरे वर्तमान से आ टकराएगा मुझे अंदाज़ा नही था। "

रीमा मुझे सच बताओ।

"दरसअल बात लगभग 2 साल पहले की है। तब मैं अपनी पढ़ाई के आखरी साल में थी। मेरी ज्यादा सहेलियां भी नही थी सिर्फ 2-3 कॉलेज की दोस्त थी। उनमें से एक दोस्त थी जेनिफर जिसने फेसबुक में अपनी एक एक्स्ट्रा प्रोफाइल बना रखी थी। जैनी नाम से। मुझे तो ये सब नही आता था। माँ बाबा की एक लौती बेटी थी मगर बाबा ने कभी मुझे इतना छूट नही दिया कि मैं मोबाइल में फेसबुक जैसे एप्प चलाऊं। मुझे भी ऐसी कोई खास दिलचस्पी नही थी मगर एक बार बातो बातो में ऐसे ही मैंने जेनिफर से कहा कि वो मुझे अपना प्रोफाइल इस्तेमाल करने दे मैं बस यूँही थोड़ा चलाना चाहती हूँ जरा देखूं तो आखिर होता क्या है ये सब। क्योंकि ये जेनिफर की असली प्रोफाइल नही थी और इसमे कोई असली फ़ोटो और जानकारी भी नही थी तो उसने मुझे खुशी खुशी दे दिया।फिर एक रात मैंने फेसबुक खोला और जैनी की प्रोफाइल आईडी को इस्तेमाल किया। कुछ ही दिनों में मुझे मज़ा आने लगा। फिर मैं अक्सर जब भी वक़्त होता था फेसबुक में व्यस्त हो जाती थी। मैंने फिर प्रोफाइल को अपने हिसाब से फेर बदल किया। दुनिया भर के लाइक्स , कमैंट्स , मेसेज और फ़्रेंड रिक्वेस्ट आते। इन्हीं फ़्रेंड रिक्वेस्ट में से एक रिक्वेस्ट था 'रमन' का। मैंने वो प्रोफाइल देखा उसमे उसकी असली तस्वीर लगी थी और लोकल बॉय था तो मैंने स्वीकार कर लिया। मेरे फेसबुक दोस्तो की लिस्ट में बहुत कम लोग शामिल थे जो रियल लगते थे केवल उन्ही को एक्सेप्ट करती थी।

अगले ही दिन से रमन की तरफ से मैसेज आने लगे।हाई , हेलो , हाऊ आर यु।

इस तरह से हमारी बाते शुरू हुई। धीरे धीरे हम बाते करते गए। लगभग हर रोज़ थोड़ी थोड़ी बातें होती रही। रमन अपने बारे में कई बातें करता था , फोटोज भी भेज देता था। उसने कभी कोई ऐसी वैसी बात नही की। इसलिए मुझे उससे बात करने में कोई हर्ज नही लगता था। कभी फनी इमेजेज , तो कभी फनी जोक्स भेजता। धीरे धीरे गुड मॉर्निंग गुड नाईट तक का भी सिलसिला शुरू हो गया यानी हर सुबह और हर रात एक दूसरे को मैसेज करते ही थे।

हमारे बीच दोस्ती सी हो गई थी। वो मेरे बारे में ज्यादा कुछ पूछता नही था। लेकिन एक दिन अचानक बोला कि"क्या तुम मिल सकती हो ?"

क्यों ? किस लिए मिलना है?

"बस ऐसे ही। मैं चाहता हूँ कि हम सिर्फ फेसबुक में दोस्त न रहे बल्कि असल जिंदगी में दोस्त बने। मगर कोई जबरदस्ती नही है तुम्हारी खुशी है अगर तो।"

"क्या तुम मुझे देखना चाहते हो ? मैं कैसी दिखती हूँ ,, गोरी हूँ काली हूँ ,, मोटी हूँ पतली हूँ ??"

"नही ऐसी कोई बात नही है। अगर मुझे तुम्हे सिर्फ देखना होता तो मैं तुमसे फ़ोटो की फरमाइश करता। मगर मैं तुमसे मिलना चाहता हूँ। "

ठीक है मिलूंगी कभी। फिलहाल कुछ कह नही सकती।

उसके बाद भी हमारे बीच रोज़ की तरह बाते जारी रही। हमे ये तो मालूम था कि हम दोनों एक ही शहर से है। मगर उसे मेरा असली शख्सियत और पता मालूम न था।

रमन ने मुझसे इस बीच कई दफ़ा कंही मिलने की गुजारिश की।आखिर कार मैं राज़ी हुई।एक शाम मैं उससे मिलने दिलनाज़ कैफ़े गयी उसने मुझे वंही बुलाया था। हमारी पहली मुलाकात थी ये। मुझे रमन से मिलकर वाकई अच्छा लगा था। वो जैसी बातें करता था असल मे वैसा ही था। मुझे उसमे किसी तरफ का कोई दिखावा या झूटापन नज़र नही आया था। नीले जीन्स के ऊपर एक सफेद टीशर्ट और एक ब्लैक ब्लेजर में वो बहुत संजीदा शख्शियत मालूम पड़ रहा था।ये मेरी जिंदगी में पहली बार था जब मैं किसी लड़के से मिलने के लिए इस तरह आयी थी। इससे पहले मैंने कभी किसी लड़के से दोस्ती तक नही किया था।

हमारे बीच बाते हुई। हमने कॉफी पिया। मगर मैंने उसे अपना असली नाम नही बताया था शायद मुझे उसके मुह से खुद के लिए जैनी सुनना अच्छा लगने लगा था। मुझे जैनी नाम पसंद आने लगा था।उसने मुझे मेरे घर पते के बारे में कोई सवाल नही किया बस इतना कहा कि "अगर तुम्हें ऐतराज़ न हो तो अपना मोबाइल नंबर दे दो ,,बेफिक्र रहो फ़ोन कर के परेशान नही करूँगा।"

मैंने उसे अपना नंबर दे दिया।

उसके बाद फ़ोन पर भी कभी कभार बाते हो जाया करती थी। हम अब तक 4-5 बार मिल चुके थे। दिलनाज़ कैफ़े में अक्सर कॉफी पर मिलते थे। मगर रमन अब भी मेरे बारे में कुछ खास जानकारी नही रखता था क्योंकि मैंने उसे सब कुछ बताया ही नही था। मैंने सोचा कि बाद में कभी बताऊंगी। वंहा के वेटर्स और वर्कर्स भी हमे जानने लगे थे। क्योंकि उस कॉफी शॉप के एक कांटेस्ट में हमने साथ मे पार्टिसिपेट किया था और जीता भी था। जिसमे हमे एक महीने के लिए फ्री कॉफी ऑर्डर्स का गिफ्ट मिला था। यानी हम दोनों फ्री में कॉफी ले सकते थे एक महीने के लिए।

सबकुछ अच्छा ही चल रहा था। मुझे रमन से दोस्ती कर अच्छा लगने लगा था।

लेकिन इस बीच अचानक बाबा को एक शाम छाती में बहुत तेज़ दर्द उठा । वो टी वी देखते हुए सोफे पर ही ढेर हो गए। मैं घर पर ही थी। मैं और माँ दोनो भाग कर बाबा के पास गए लेकिन समझ नही आया कि क्या हुआ।

बाबा एक हाथ अपने छाती पर दबाए हुए दर्द में कराह रहे थे। मैंने तुरन्त पड़ोस के सुनील चाचा जो ऑटो रिक्शा चलाते है उनको फोन किया तो वो तुरन्त आ गए। बाबा को होस्पिल लेकर गए वंहा इमरजेंसी वार्ड में डॉक्टर ने चेक किया फिर कहा कि "मरीज़ को हार्ट अटैक आया है। फिलहाल इंजेक्शन और मेडिसिन देकर किसी तरह परिस्थिति पर काबू पाया गया है लेकिन एक दो दिन के भीतर ही बाबा को किसी बड़े दिल के अस्पताल में इलाज कराने को कहा गया। वरना अगली बार अटैक आएगा तो शायद जान भी चली जाए।"

ये सब सुन कर माँ और मैं आंसुओ से तर बदर हो गए।

हमने 2 दिन के भीतर ही बाबा को बड़े अस्पताल में इलाज कराने का नक्की किया और इसीलिए हम कोलकाता के एक बड़े नामी हॉस्पिटल में चले गए। कोलकाता में विनोद मामा रहते थे उनकी सहायता से हम उस मुश्किल घड़ी में हिम्मत जुटा सके।

बाबा के हार्ट में ब्लॉकेज ज्यादा हो गया था इसलिए ऑपरेशन जरूरी था। लाखो रुपये खर्च हुए मगर अच्छी बात थी कि ऑपरेशन ठीक से हो गया। दो हफ्ते तक बाबा हॉस्पिटल में रहे और मैं और माँ विनोद मामा के यंहा रुक कर सारा कुछ कर रहे थे।बाबा को ट्रेवल करना मना था साथ ही उन्हें एक टेंशन फ्री माहौल में रहना जरूरी था कुछ वक़्त के लिए ही सही। ऐसे में विनोद मामा ने ही खुद से कहा कि कुछ महीनों के लिए यंही कोलकाता में उनके यंहा ही रह जाए। मामा , मेरी माँ और बाबा को बहुत ज्यादा मानते थे। और क्योंकि घर मे केवल मामा , मामी , और दो बच्चे थे तो रहने का कोई दिक्कत नही था क्योंकि घर बड़ा था।

हम वंही रुक गए। लगभग दो महीने हमने वंही बिताए।

"तुमने रमन को कुछ नही बताया इन सब के बारे में ?" शेखर ने बीच मे पूछा।

कैसे बताती। जब बाबा को हॉस्पिटल ले जा रहे थे तब कम्भख्त मेरा मोबाइल मुझसे हड़बड़ी और भागदौड़ में पता नही कंहा गिर गया। मुझे उसका नंबर याद नही था शायद उसने मुझे कॉल भी किया होगा मगर मेरा मोबाइल मेरे पास था ही नही। इसके अलावा मैं बाबा को लेकर इतनी चिंता में थी कि मुझे रमन का कोई ख्याल ही नही आया था। शायद इसलिए भी क्योंकि वो मेरे लिए इतना जरूरी भी नही था। हमारे बीच दोस्ती था मगर मेरे तरफ से वैसा कुछ नही था।

इसी दौरान एक दिन मामा के दोस्त श्याम जी आए यानी तुम्हारे चाचा।

फिर पता नही क्या हुआ अचानक रात के डिनर के वक़्त मामा ने मेरी शादी की बात छेड़ी।

" अरे दीदी और जीजाजी अपनी रीमू बड़ी हो गई है कॉलेज भी खत्म होने को आया है इसके हाथ पीले करने का कुछ सोचा है कि नही। " 

मामा मुझे रीमू बुलाते है प्यार से।

" हां,, बड़ी तो हो गई है। कोई सही लड़का मिले तो कर देंगे। आजकल अच्छे लड़के मिलते कंहा है। " बाबा ने गहरी आवाज़ में कहा।

अगर ऐतराज न हो तो मैं एक सुझाव दे सकता हूँ।

सुझाव? कैसा सुझाव?

"एक लड़का है मेरी नज़र में बिल्कुल अपनी रीमू के लिए जचेगा। अरे सुबह जो मेरा दोस्त श्याम आया था न उसके बड़े भाई साहब का एक बेटा है।हां.. पढ़ा लिखा है ,समझदार है , फैमिली बिज़नेस है मिठाई की दुकान का और लड़का भी किसी ऑफिस में आर्टिकल राइटर है। एक लौता बेटा है। घर मे माँ , बाप और ये लड़का बस तीन सदस्य।" मामा ने कहा।

अच्छा,,? क्या नाम है लड़के का और वो लोग कंहा रहते है।

"शेखर नाम है। यंही कोलकाता में रहते है वो भी अपना खुद का मकान है।"

अरे वाह। ये तो अच्छी बात है। लेकिन क्या वो लोग मांनेंगे?

"अरे मानेंगे क्यों नही। वो भी अपने बेटे के लिए एक घरेलू , शुशील कन्या की तलाश में है। श्याम ने आज हमारी बिटिया को देखा तो उसने ही मुझसे इसकी और अपने भतीजे की शादी की बात छेड़ी। अपनी बिटिया पढ़ी लिखी भी है , घरेलू भी है , संस्कारी है , काम काज जानती है और क्या चाहिए उन्हें। "

वो सब तो ठीक है लेकिन वो लोग दहेज़ ...

"जीजा जी आप बेफिक्र रहिए। वो लोग बहुत अच्छे सोच वाले लोग है वो दहेज़ के खिलाफ है।"

ये सारी बाते सुन माँ और बाबा खुश हो गए थे। बाबा अपनी सेहत को देखते हुए समझ चुके थे कि बेटी को जल्द से जल्द एक अच्छे घर मे विदा कर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो जाना बहुत जरूरी है। और जब मामा ने सारा कुछ जान रखा था तो बाबा को और माँ को इस रिश्ते में कोई कमी नज़र नही आई।

फिर आप आए अपने परिवार के साथ मुझे देखने के लिए। हम दोनों मिले। बैठ कर बाते किया। मुझे आप अच्छे लगे। परिवार भी अच्छा लगा। मां बाबा भी खुश थे। मुझे लगा मैं आपको अपना जीवन साथी चुन सकती हूं। ऐसे भी मेरी ज़िन्दगी में कोई और शख्स था ही नही। जंहा तक रमन की बात है तो उससे अब तक प्यार मोहब्बत का रिश्ता बना ही कंहा था। मुझे लगा कि जब सब कुछ सही है तो इस रिश्ते को हां कर देने में भलाई है। 

इस तरह मेरा और आपका रिश्ता फटाफट तय हो गया शादी की तारीख भी तय हो गई।

इसके बाद आप से रोज़ नए फ़ोन पर बाते होने लगी। धीरे धीरे मैं आपको आप मुझको जानने समझने लगे। हम एक दूसरे के करीब होने लगे। सब कुछ तो तय हो चुका था फिर किसी और के बारे में सोचने का मौका ही कंहा था। बाबा , माँ और मैं वापस अपने शहर आ गए थे। शादी की तारीख नजदीक थी। माँ बाबा शादी के इंतज़ाम में बिजी होने लगे थे।

" और तुम इस बीच रमन से मिली नही? " शेखर ने पूछा।

"यंहा आने के बाद मुझे उसका ख्याल आया मगर मुझे न तो उसका नंबर याद था और न ही जैनी वाली प्रोफाइल का पासवर्ड। मैंने ही पासवर्ड बदले थे और भूल भी गई थी। पुराना फ़ोन होता तो शायद मैं उससे दुबारा बात कर पाई होती। लेकिन मैं एक बार उससे जरूर मिलना चाहती थी ,,उसे सब कुछ बताने के लिए कि मैं जैनी नही रीमा हूँ और मेरी शादी तय हो गयी है। मैं कंही न कंही इस बात से थोड़ा सा वाकिफ थी कि शायद रमन के मन मे मेरे लिए कुछ है क्योंकि उसकी बातो में अक्सर ऐसा झलकता था जैसे वो मुझे पसंद करने लगा है।"

"लगातार दो शाम मैं दिलनाज़ कैफ़े गयी कि शायद मुलाकात हो लेकिन इक्ताफाक से न तो रमन से मेरी कोई मुलाकात हुई न ही उस काउंटर मैन और उस वेटर्स से जो मुझे थोड़ा बहुत पहचानते थे। किसी ने कहा कि कॉउंटेर मैन कुछ दिन के लिए छुट्टी पर है और वो वेटर काम छोड़ गया है। इस तरह मेरी मुलाकात रमन से दुबारा हुई ही नही। मुझे लगा इतने दिन गुजर गए शायद वो भी अब मुझे भूल गया होगा और यंहा आता जाता नही होगा। इसलिए मैंने भी दुबारा उससे मिलने की फिर कोशिश नही की। उसके बाद घर से निकलना बना भी नही क्योंकि शादी की तारीख नजदीक थी।"

"क्या पता एक रिश्ता दोस्ती से प्यार तक जाता मगर इससे पहले ही हमारे बीच दूरी आ गई। मुझे एहसास था कि रमन मुझे पसंद करने लगा है और बहुत जल्द शायद कभी मुझसे अपने प्यार का इजहार भी कर देगा। यदि ऐसा हुआ होता और मैंने हाँ किया होता तो बात कुछ और होती। मगर सब होने से पहले ही मेरा रिश्ता तुमसे तय हो गया और फिर वैसा कुछ होने का सवाल ही नही रह गया। सोलह साल के बाद से ही हमें साथी की तमन्ना होने लगती है। खासकर हम लड़कियों को कोई प्यार करने वाला , परवाह करने वाला , सुरक्षा करने वाला चाहिए होता है।

और मैंने अपना साथी चुन लिया था।

इसके बाद मैंने उन सब बातों को और रमन को याद करना जरूरी नही समझा। हमारे बीच प्यार मोहब्बत का इजहार नही हुआ था। मैं अपने आज में लीन हो गई। मैंने वो सब बस मामूली वाक्ये की तरह भुला दिया। जो प्यार का रिश्ता शुरू ही नही हुआ था उसके खत्म होने का कोई दर्द नही था मुझे। मैंने अपनी पूरी खुशी के साथ तुमसे शादी के रिश्ते को रजामंदी दी थी।"

"मुझे नही मालूम था कि रमन मेरा इंतेज़ार कर रहा होगा। मुझे दुख है कि वो आज भी मेरा इंतज़ार कर रहा है। अगर मैं किसी तरह से उससे मिली होती और सब कुछ बता दी होती तो आज वो यूँ मेरा इंतज़ार नही कर रहा होता।"

"मैं रमन से प्यार नही करती थी और न ही करती हूँ पर मुझे उसके इस हालत का ख्याल कर बुरा लग रहा है क्योंकि इसकी वजह कंही न कंही मैं ही हूँ।"

रीमा के आंखों से आँसू रिसने लगे थे जो शायद जैनी के लिए रमन के इस इंतेज़ार के दर्द की वजह से थे। कंही न कंही उसे रमन से दुबारा मुलाकात न हो पाने का अफसोस था क्योंकि अगर वो मिली होती तो सब कुछ साफ साफ हो गया होता।

शेखर ने रीमा के कंधे पर हाथ रखा। उसके बहते हुए आंसुओ को साफ किया।

"रीमा, मैं जानता हूँ तुम आज भी उतनी ही साफ मन हो जितना उस वक़्त थी जब मैं पहली बार तुमसे मिला था। मैं जानता हूँ कि तुम्हारे मन मे सिर्फ मैं ही हूँ।मगर उस इंसान के इंतज़ार को खत्म करना होगा रीमा। वो तो बेचारा एक ऐसी लड़की का इंतज़ार कर रहा है जो अब शादीशुदा है। जो अब एक पत्नी है , एक बहु है। रमन को इस अंतहीन इंतज़ार से बाहर लाना होगा।

तुम्हे उससे मिलना चाहिए। उससे मिलो और सच से रूबरू कराओ। " शेखर ने उसे समझाया।

"आप ठीक कह रहे है मुझे एक बार उससे मिलना ही चाहिए लेकिन शेखर मुझे डर है कि मुझे ऐसे देख कर वो कंही गमगीन न हो जाए। "

नही रीमा। भरोशा रखो।

हम कल ही चलेंगे।

...अगली शाम रीमा और शेखर दिलनाज़ कैफ़े जा पहुँचे।

उन्होंने देखा कि रमन वंहा एक कोने के टेबल पर विराजमान था। शेखर ने रीमा को अकेले जा कर उससे मिलने और बात करने को कहा। 

रीमा ने रमन के कंधे पर दस्तक दिया।

रमन हमेशा की तरह आज भी शर्ट और जीन्स में था और उसके हाथ मे एक गुलाब का फूल था जो जैनी के लिए था।जब रीमा अचानक रमन के आंखों के आगे आई तो रमन कुछ पल के लिए अचल हो गया था फिर एक झटके में उसे पहचान गया।

"जैनी ..जैनी..तुम आ गयी। तुम.. आ गयी। मुझे मालूम था। मुझे मालूम था कि एक न एक दिन तुम जरूर आओगी।। तुमने वादा किया था मैं जानता था। मेरा दिल जानता था तुम जरूर आओगी।।"रमन जैसे खुशी के मारे हकपका सा गया था। उसके मुह से शब्द भी लड़खड़ाकर निकल रहे थे।

कैफ़े के काउंटर वाले की नज़र जब दूर इन पर पड़ी तो कुछ पल के लिए वो भी देखते ही रहा।लड़की का चेहरा जाना पहचाना सा लगा और कुछ ही पल में वो भी पहचान गया कि ये तो जैनी ही है।

काउंटर पर बैठा आदमी जो रमन और जैनी के बारे में जानता था वो दूर से ही इन दोनों को देख तसल्ली भर रहा था।

"हेलो रमन। कैसे हो तुम? "

"अब तक तो ठीक नही था मगर तुमसे दुबारा मिलकर बिल्कुल जान दौड़ गयी है मेरे शरीर मे।बैठो न जैनी। बैठो।"

रमन ने वेटर को बुलवाया और अति उत्साह अंदाज़ में दो स्पेशल वाली कॉफी बोल दी।

"जैनी तुम्हे पता है मैं तुमसे मिलने को कितना बेकरार था। बहुत इंतज़ार कराया तुमने मुझे। लगभग ड़ेढ साल।मैं बहुत नाराज़ हूँ तुमसे। तुम्हारा फ़ोन भी नही लगता था न कभी तुम्हारा फोन आता था। तुम्हारा घर पता भी मालूम न था। आखिर तुम कंहा चली गयी थी। "रमन बस एकाएक बोले जा रहा था।

रीमा उर्फ जैनी के पास कुछ भी जवाब देने का साहस न था। उसे समझ नही आ रहा था कि वो कुछ कहे भी तो कैसे कहे।

"खैर कोई बात नही। अब तुम आ गयी हो। अब तो तुम ऐसे छोड़ कर गायब नही हो जाओगी न।अब मैं और देर नही करूँगा उस दिन जिस वजह से मैंने तुम्हें यंहा बुलाया था और जो कहना चाहता था वो अब तक दिल मे लिए घूम रहा हूँ।

जैनी। मैं तुमसे .. मैं तुमसे .. "

इससे पहले की रमन अपनी दिल की बात कहता रीमा ने बोल दिया" रमन ,,मेरी शादी हो गई है। "

रमन का हँसता हुआ चेहरा एक बार फिर ख़ामोश हो गया।

रीमा के मांग पर सिंदूर और गले मे मंगल सूत्र को इतने देर से रमन ने गोर ही नही किया था। जब उसे गोर हुआ तो वह दंग रह गया।

जैनी तुम..ये

जैनी नही रमन ,, मेरा असली नाम रीमा है। जैनी फेसबुक प्रोफाइल का नाम था जो मेरी सहेली का था मगर जिसे मैं इस्तेमाल कर रही थी।

रमन असंजस्य में पड़ गया था।

रीमा ने एक एक कर सारी बाते बताई। फेसबुक प्रोफाइल से लेकर दोस्ती तक फिर बाबा के तबियत बिगड़ने , मोबाइल के गुम होने और कोलकाता में मामा के यंहा रुकने साथ ही शादी तक की बात भी रीमा ने बताई। रीमा ने ये भी बताया कि वो रमन की तलाश में यंहा दिलनाज़ कैफ़े भी आयी थी मगर उससे मुलाकात हुई ही नही।

" रमन तुम मुझे अच्छे लगे थे लेकिन एक दोस्त की तरह। मेरे मन मे तुम्हारे लिए प्यार का कोई बीज नही था। अगर हम कुछ वक़्त और बिताए होते या हमारी मुलाकाते जारी रहती तो शायद कुछ हुआ होता। मगर किस्मत में कुछ और लिखा था। मेरी शादी तय हो गयी और सब बहुत खुश थे। मेरे मन में तुम्हारे लिए प्यार नही था। हमारे बीच प्यार का कोई रिश्ता बना ही नही था इसलिए मैंने उस रिश्ते को हाँ कह दिया जिसमें सबकी खुशी और रज़ा थी। मुझे न कहने का कोई कारण ही नही मिला।

किस्मत में यही लिखा था और मैंने इसे पूरे हंसी खुशी अपनाया। मैं सिर्फ अपने पति से प्यार करती हूँ। तुम्हारे और मेरे बीच मोहब्बत का रिश्ता बनने से पहले ही दूरी आ गयी। मुझे लगा तुम भी आगे बढ़ गए होगे।

मुझे नही मालूम था कि तुम मुझे उस दिन प्रोपोज़ करने वाले थे। मैने कभी सोचा भी नही था कि तुम मेरे लिए इतना इंतज़ार करोगे इस तरह से।मुझे किसी बात का कोई अफसोस नही केवल इस बात का अफसोस है कि तुम मेरे इंतज़ार में अब तक रहे।मुझे माफ़ कर दो रमन लेकिन अब तुम सच जान चुके हो। मेरे मन मे तुम्हारे लिए प्यार नही है। न उस वक़्त था न आज। हमारी कहानी सिर्फ दोस्ती तक ही लिखी थी। मेरे लिए अपनी ज़िन्दगी को यूं खराब मत करो। इस इंतज़ार को खत्म कर दो और जीवन मे आगे बढ़ो यही सही है। "

रमन की आँखे नम हो चुकी थी। वो अपने चहरे को अपने हथेलियों में छुपा कर कुछ देर यूँही बैठा रहा। रीमा को भी बहुत दुख हो रहा था उसे अफसोस था इस बात का कि जाने अनजाने में वो रमन के दर्द का कारण बन गई।

रमन ने होश संभाला। अपने आंसुओं को पोछ लिया।

" रीमा ,, मेरी ही गलती थी मैंने तुम्हारी दोस्ती को प्यार समझ लिया। दरअसल मुझे तुमसे उसी दिन प्यार हो गया था जिस दिन मैं तुमसे मिला था। तुमसे बाते करने के बाद तुम मुझे बहुत पसंद आई। न जाने कब मैं तुम्हे चाहने लगा। जो कुछ हुआ सो हुआ। अब और किया ही क्या जा सकता है। खैर तुम्हे तुम्हारी शादी शुदा जीवन की ढेर सारी शुभकामनाएं। " रमन भारी मन से कह रहा था।

इतने में शेखर जो अब तक दूर से सब कुछ देख रहा था वो रीमा के पास आ खड़ा हुआ।

रीमा ने रमन और शेखर को एक दूसरे से रूबरू कराया।

शेखर इनसे मिलो ये रमन है मेरा दोस्त। 

दोनो ने आपस मे हाथ मिलाकर हेलो कहा। रमन ने शादी की एक बार फिर बधाई दी। इतने में कॉफ़ी आ गयी।रमन उठ कर जाने को हुआ। उसके हाथ मे जो गुलाब था उसने उसे शेखर को थमा दिया और कुर्सी से उठ खड़ा हुआ। दो कप स्पेशल कॉफी टेबल पर रख दी गयी थी।

रमन ने आंखों पर एक काला चश्मा चढ़ा लिया। एक हारी हुई मुश्कान को चहरे पर सजाए रमन वंहा से चला गया।इस तरह उसके एक तरफा इंतज़ार का आज अंत हुआ।दिलनाज़ कैफ़े के काउंटर मेन ये नज़ारा देखते रह गया।

रीमा की आंखों से दो आँसू टपक पड़े। वो खुद को रमन के दर्द का अपराधी महसूस कर रही थी। शेखर ने रीमा को तसल्ली दिया कि सब ठीक है रीमा,, रमन अब तुम्हारे इंतज़ार से आज़ाद है,, जरा सोचो यदि आज हम उससे नही मिले होते तो क्या पता वो आगे कितने वक़्त तक इंतज़ार करता रहता। वक़्त के साथ सब ठीक हो जाता है। तुम खुद को अपराधी समझना बन्द करो। सब ठीक है।

रमन दिलनाज़ कैफ़े से बाहर निकल आया।अपनी बाइक पर बैठने से पहले उसने अपने मोबाइल पर एक नंबर डायल किया।

सामने प्रिया की आवाज़ थी।

हेलो ,,प्रिया।

हां रमन,, बोलो। क्या हुआ ?

शादी करोगी मुझसे ?

क्या.. !!??

हां या न ?

लेकिन तुमने तो मुझे न कह दिया था !

अब हां कह रहा हूँ!

पर ऐसे अचानक तुम्हारा मन कैसे बदल गया?जब कोई किसी को चाहता है मगर उसे पा नही सकता तो बहुत तकलीफ होता है ,, मुझे लगता है सच्चे प्यार करने वालो को प्यार मिलना ही चाहिए।तुम मेरे इनकार के बाद भी मुझसे प्यार करती हो शायद इसलिए आज तक तुम मेरा इंतज़ार कर रही हो। इतना प्यार करने वाली मुझे शायद कोई और नही मिलेगी।

बोलो हां या न ?

उधर फोन के दूसरी तरफ प्रिया की आंखे खुशी से नम थी। उसने भरी हुई आवाज में हां कहा।

रमन के चहरे पर एक हल्की सी मुस्कान आ गई। इस बार इस मुस्कान में खुशी और सुकून था।

बस यंही तक थी ये कहानी।

"अगर आप किसी से सच मे प्यार करते है तो देर मत करो तुरन्त इज़हार करो और यदि आपसे कोई सच्चा प्यार करता है तो भी देर मत करो उसे तुरंत अपना बना लोवरना आप इंतज़ार करते रह जाएंगे और जिंदगी गुजर जाएगी..."


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