STORYMIRROR

sushant mukhi

Drama Inspirational

3  

sushant mukhi

Drama Inspirational

वो घूर रहा था..

वो घूर रहा था..

9 mins
271


हाँ माँ मैंने नाश्ता कर लिया है और थोड़ी ही देर में मैं ऑफिस के लिए निकल जाऊँगी। तुम इतना टेंशन क्यों लेती हो?

माँ हूँ फिक्र तो होगी ही न। एक अनजान शहर में पहली बार तू अकेली रह रही है टेंशन तो होगा ही न।

नेहा की माँ जानकी ने फोन पर बात करते हुए कहा।

"इतनी दूर भी नही हूँ सिर्फ 5 घण्टे की दूरी पर हूँ। आप ज्यादा परेशान मत हो। अब मैं फ़ोन रखती हूँ मुझे ऑफिस जाना है आप अपना और बाबा का ख्याल रखना। लव यू। "

नेहा ने फ़ोन पर कहा।

ठीक है बेटा।

कहकर दोनो ने एक दूसरे से विदा लिया।

नेहा अपने शहर जमशेदपुर से राँची आ चुकी थी। एक आँफिस में मार्केटिंग एक्सीक्युटिव की वेकैंसी के लिए अप्लाई किया था और फिर इंटरव्यू में सेलेक्ट हो कर काम करने के लिए राँची आ चुकी थी। यहां एक छोटा सा कमरा किराए पर मिल गया था और बाकी सुविधाएँ भी ठीक ठाक थी।

आज ऑफ़िस का पहला दिन था। बॉस ने नेहा का अच्छा स्वागत किया और बाकी कॉलीग्स से भी परिचय कराया। नेहा खुश थी। आखिरकार वो अब अपने पैरों पर खड़ी होने लगी थी।

खैर कुछ दिन यूँही गुजर गए। धीरे धीरे नेहा ऑफिस में अपनी पहचान बनाने लगी। उसकी दोस्ती एक लड़की से हुई जिसका नाम सीमा था। सीमा और नेहा अच्छे दोस्त बन चुके थे। वो अक्सर साथ मे ही लंच किया करते और कामकाज़ी बातों के साथ साथ वो एक दूसरे से हर तरह की बातें शेयर करते थे। नेहा के लिए ये अच्छा था कि उसे सीमा जैसी एक दोस्त मिल गई थी। कभी कभार सीमा नेहा से मिलने उसके किराए के कमरे में भी आती थी और फिर दोनों कॉफी पीते हुए कई सारी बातें करते थे।

एक दिन हमेशा की तरह नेहा ऑफिस के लिए निकली। वो बस स्टॉप पर बस के आने का इंतज़ार कर रही थी।

उसने गौर किया कि तीन हाथ दूरी पर कोई शख्स खड़ा उसे घूर रहा है।

कोई 28 - 30 की उम्र का व्यक्ति थ। जिसके चेहरे पर हल्की हल्की दाड़ी थी आँखें पीली और नशीली प्रतीत हो रही थी। रंग गहरा काला। धारीदार कमीज और जीन्स पैंट में खड़ा था।

वो व्यक्ति नेहा को घूर रहा था। नेहा को बहुत अजीब लग रहा था साथ ही उसे थोड़ी थोड़ी घबराहट भी हो रही थी।

इतने में बस आ गयी और नेहा फटाफट बस में सवार हो गयी। नेहा ने तिरछी निगाह से खिड़की के बाहर झांका, वो व्यक्ति नेहा को देखता रहा। नेहा कुछ देर सोचती रही लेकिन फिर सामान्य हो गई।

अगले दिन नेहा ऑफिस के लिए निकली। बस स्टॉप पर बस का इंतज़ार कर रही थी। इतने में उसे फिर वही व्यक्ति अचानक से नज़र आया। वो आज भी उसे दूर से घूर रहा था। नेहा जब उसकी तरफ देखती वो अपनी निगाह दूसरी तरह कर देता। जैसे ही बस आयी नेहा बस में सवार हो गयी। और इस बार वो व्यक्ति भी उसके पीछे पीछे बस में सवार हो गया। नेहा सीट में बैठी थी और वो आदमी उसकी सीट के आगे खड़ा था। नज़रे घुमाता कभी नेहा को देखता तो कभी दूसरी तरफ देखता।

नेहा समझ चुकी थी कि वो व्यक्ति उसके पीछे पड़ रहा है। नेहा ऑफिस के पास उतर गयी। बस सीधी चली गयी वो आदमी नहीं उतरा। नेहा को थोड़ा सा सुकून मिला।

मगर ऑफिस में आज वो इस वाक्ये से थोड़ा परेशान सी रही। जब उसकी दोस्त सीमा ने उससे सवाल किया तो नेहा ने उसे सब बता दिया कि " एक आदमी पता नही कौन है मगर दो दिन से ऐसे लग रहा है जैसे वो मेरा पीछा कर रहा है या मेरे पीछे पड़ रहा है। मुझे अजीब निगाहों से घूरता है। कोई लफंगा जैसा दिखता है। "

ओह.. तू बोल तो मैं तेरे साथ कल से आना जाना करूंगी। सीमा ने नेहा से कहा।

"नही यार तुम को उल्टा रास्ता पड़ेगा। कोई बात नही मैं देख लूंगी उसे। यदि वो किसी भी तरह से मेरे साथ कोई छेड़छाड़ या बदतमीजी किया तो मैं सबक सीखा दूंगी। पुलिस में रिपोर्ट लिखा दूंगी। " 

नेहा ने मुट्ठी बांधते हुए हौसले से कहा।

नेहा इतनी डरपोक भी नही थी।

अगली सुबह नेहा फिर ऑफिस के लिए निकली। बस स्टॉप पर बस का इंतज़ार कर रही थी साथ ही इधर उधर नज़रें घूमा कर देख रही थी कि कहीं आज भी तो वो लफंगा आदमी नहीं है। मगर आज वो व्यक्ति वहां नहीं था। बस आयी नेहा बस में सवार हो गयी।

शाम में ऑफिस से निकलते वक़्त उसकी आँखें बड़ी हो गई। सामने उसे वही शख्स नज़र आया।

वो नेहा के करीब आ गया और इससे पहले की वो कुछ कहता नेहा बोल पड़ी।

तुम! आखिर कौन हो तुम! बस स्टॉप पर भी मुझे घूरते रहते हो! अब मेरा पीछा करते हुए यहां तक आ गए हो !

नेहा को किसी पर ऐसे चिल्लाते देख आस पास मौजूद लोग वहां जमा हो गए।

क्या हो गया ? भीड़ में से किसी ने पूछा।

"अरे ये लफंगा दो दिन से मेरे पीछे पड़ा है अक्सर घूरता रहता है और आज यहां तक आ गया मुझसे बात करने।" नेहा ने लोगो से कहा।

क्यों बे! लड़की छेड़ता है! कहते हुए लोग उसकी तरफ आगे बढ़े और उसे धक्का मारने लगे। 

वो व्यक्ति बोलने लगा कि नहीं ऐसा नहीं है सुनो मेरी बात ..

मगर लोग तो बस अपना हाथ साफ करने को जैसे बेताब रहते है हरदम। सब उसपर बरस पड़े। वो आदमी किसी तरह से अपनी सलामती लिए भाग निकला।

नेहा ने सोचा कि अच्छा सबक मिला है उसे।

लेकिन सबके जाते ही नेहा की नज़र वहां ज़मीन पर गिरे एक कागज़ के टुकड़े जैसे कु

छ पर गया जो कि उस शख्स के कमीज़ के जेब से गिरा था जब लोग उसके साथ हातापाई कर रहे थे।

नेहा गौर से देखती है ये एक फोटो था। उस फ़ोटो में दो शख्स थे। एक लड़का और एक लड़की।

नेहा ने ध्यान से देखा तो उसे लगा जैसे फ़ोटो में मौजूद लड़का कोई और नहीं बल्कि वही था जो उसे बस स्टॉप पर घूरता था और जिसे कुछ देर पहले ही नेहा ने पिटवाया था। सिर्फ दाढ़ी का फर्क था। लेकिन उसके होश तब उड़ गए जब उसने फ़ोटो में मौजूद लड़की की तरफ गौर किया। उसने पाया कि फ़ोटो में तो मानो वो खुद ही थी। सिर्फ कपड़ों और जुल्फे के स्टाइल का फर्क था बाकी चेहरा तो लगभग नेहा का ही था।

उसे समझ नहीं आया आखिर चक्कर क्या है। लेकिन उसके अंदर जानने की तीव्र इच्छा हुई। वो तुरंत उस और चल दी जिस तरफ उसने उस शख्स को भागते देखा था। वो उस शख्स के तलाश में घूमने लगी। थोड़ा इधर उधर घूमने के बाद अचानक उसे वो शख्स नज़र आया। नेहा चुपके चुपके उसके पीछे हो ली। अगले ही पल वो एक झोपड़पट्टियों और कच्चे मकानों की बस्ती में थी। वो शख्स एक घर मे घुस गया।

नेहा भी अब तक उसके पीछे पीछे उसके घर के दरवाज़े तक आ पहुंची थी।

ये सब क्या है राजू? कैसे हुआ ?

कमरे में एक बूढ़ी औरत मौजूद थी जो उस शख्स से सवाल कर रही थी उसकी हालत देख कर।

कुछ नहीं मौसी। हम तुमको बताए थे न कि उस दिन बस स्टॉप पर एक लड़की दिखी थी जो बिल्कुल मेरी छुटकी जैसी है दिख रही थी ..

हाँ..हाँ बोला था तूने। तो? मौसी ने पूछा।

तो बस उसी से मिलने गया था। उसको बताने गया था कि तुम मेरी बहन की तरह दिखती हो। उससे पूछने गया था कि कल रक्षा बंधन के दिन तुम मुझे भाई मानकर मेरी कलाई पर राखी बाँधोगी क्या।

मगर.. कुछ कहने से पहले ही..

राजू की आंखों में चंद आँसू थे। वो दीवार पर टंगी छुटकी की तस्वीर के पास खड़ा उसे निहार रहा था।

" हो सकता है कि वो अपनी छुटकी जैसी दिखती है मगर राजू वो अपनी छुटकी नही है। तू तो जानता है न सब कुछ।" मौसी ने कहा।

हाँ मौसी..जानता हूँ।

मैं जानता हूँ कि मेरी छुटकी मेरी प्यारी बहन अब इस दुनिया मे नहीं है। मैं जानता हूँ कि लगभग 2 साल पहले एक ट्रेन हादसे में उसकी जान चली गई। मैं जानता हूँ कि उसे पढ़ा लिखा कर डॉक्टर बनाने का सपना उसी हादसे में दबकर मर गया।

जब से छुटकी गयी है तब से मेरी जीने की उम्मीद खत्म हो गयी है। मन कभी मानने को तैयार ही नही होता है कि मेरी प्यारी बहन मुझे छोड़ कर चली गयी है। उस दिन उस बस स्टॉप पर उस लड़की को देख में अवाक् रह गया। लगा मुझे मेरी छुटकी मिल गई। 2 बार हिम्मत जुटा कर उससे बात करना चाहा मगर नही कर पाया। आज बड़ी मुश्किल से उसके पास गया था मगर...

नेहा ने दरवाज़े के पास से सब कुछ खामोशी से सुन लिया था और समझ भी लिया था।

उसे बेहद अफसोस हो रहा था और खुद पर गुस्सा भी आ रहा था कि ख़ामखा एक सीधे सादे शख्स को चोर उचक्का लफंगा समझ कर लोगो से पिटवा दिया।

ये बेचारा तो मुझमे अपनी मरहूम बहन को तलाशता मेरे पीछे पीछे आता था। नेहा अपनी आँसू रोक न सकी और वहां से लौट गयी।

अगली सुबह राजू अपनी मरहूम बहन की तस्वीर के आगे खड़े होकर कुछ बड़बड़ा रहा था।

काश तू होती। मुझे तुम्हारी कमी महसूस होती है छुटकी।

आज राखी के दिन फिर मेरी कलाई सूनी रह जाएगी।

नही रहेगी.. भैया। पीछे से आवाज़ आई।

राजू ने पीछे मुड़ कर देखा तो सामने नेहा खड़ी थी।

"आपकी कलाई अब कभी भी सूनी नही रहेगी। क्योंकि इस साल से हर बार मैं आपको राखी बाँधूँगी। " नेहा ने कहा।

राजू बिल्कुल मौन हो गया था मगर उसके चेहरे पर सवाल उभर आए थे।

कल मैंने आपकी और मौसी जी की बातें सुन ली थी। दरअसल कल मुझे ये फोटो मिला उस जगह पर और फिर मैं आपको ढूंढते हुए आपके घर तक आ पहुँची। और फिर मुझे समझ आया कि मैंने आपको गलत समझ कर आपके साथ बुरा बर्ताव किया और दूसरों से मार भी खिलवा दिया।

मुझे माफ़ कर दीजिए भैया।

राजू के चेहरे पर एक तसल्ली भरी मुस्कान दौड़ गई।

इतने में मौसी भी वहां हाजिर हो चुकी थी। मौसी ने भी नेहा को दो टूक देखा।

चलिए चलिए जल्दी से मुझे कोई थाली दीजिए ताकि मैं राखी के लिए थाली सजा संकू। नेहा ने खुश मिज़ाजी से कहा।

मौसी जी ने तुरंत एक गोल थाली नेहा के तरफ कर दी।

नेहा अपने साथ लेकर आई बैग से राखी, सिन्दूर, कपूर, माचिस, चावल की पुड़िया आदि एक एक कर बाहर निकल थाली पर अच्छे से सजा ली। और फिर रक्षाबंधन का पवित्र त्योहार मनाया गया। इस तरह राजू को नेहा के रूप में अपनी छुटकी वापस मिल गई और नेहा को इस अजनबी शहर में एक भाई मिल गया पूरी जिंदगी के लिए।


बाद में ये पूरी बात नेहा ने अपनी दोस्त सीमा को बताई। सीमा ये सब जानकर भावुक और हैरान हुई फिर आखिरकार खुश भी हुई कि नेहा को एक भाई मिल गया और राजू को अपनी बहन मिल गई। नेहा ने बाद में माँ बाबा को भी इस बारे में बताया। जिससे उनको भी अच्छा लगा।

धन्यवाद।

कभी कभी हम लोगो को उनके शक्ल सूरत रूप रंग से बहुत जल्दी जज करने लगते है बिना सच्चाई को जाने। कृपया ऐसा कभी न करे।


Rate this content
Log in

Similar hindi story from Drama