सीधा साधा प्यार

सीधा साधा प्यार

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" तुम कब तक यूँ अकेली रहोगी?", लोग उससे जब तब यह सवाल कर लेते हैं और वह मुस्कुरा कर कह देती है," आप सबके साथ मैं अकेली कैसे हो सकती हूं।"


उसकी शांत आंखों के पीछे हलचल होनी बन्द हो चुकी है। बहुत बोलने वाली वह लड़की अब सबके बीच चुप रह कर सबको सुनती है जैसे किसी अहम जबाब का इंतजार हो उसे।


जानकी ने दुनिया देखी थी उसकी अनुभवी आंखें समझ रहीं थीं कि कुछ तो हुआ है जिसने इस चंचल गुड़िया को संजीदा कर दिया है लेकिन क्या?


" संदली!, क्या मैं तुम्हारे पास बैठ सकती हूं?", प्यार भरे स्वर में उन्होंने पूछा।


" जरूर आंटी, यह भी कोई पूछने की बात है।", मुस्कुराती हुई संदली ने खिसक कर बैंच पर उनके बैठने के लिए जगह बना दी।


" कैसी हो ?क्या चल रहा है आजकल ? ", जानकी ने बात शुरू करते हुए पूछा।


" बस आंटी वही रूटीन, कॉलिज- पढ़ाई....", संदली ने जबाब दिया।" आप सुनाइये।"


" बस बेटा, सब बढ़िया है। आजकल कुछ न कुछ नया सीखने की कोशिश कर रही हूं।", चश्मे को नाक पर सही करते हुए जानकी ने कहा।


" अरे वाह! क्या सीख रही है इन दिनों?", संदली ने कृत्रिम उत्साह दिखाते हुए कहा जिसे जानकी समझ कर भी अनदेखा कर गई।


"ह्यूमन साइक्लोजी ।" जानकी ने कहा । 


"क्या ..?" संदली ने पूछा 


" हां .. लोगो के चेहरे को देख उनके हाव भाव से उनकी दिल और दिमाग मे चल रही हलचल या बातो का पता लगाना । आजकल इसी चीज़ में लगी हूं फिर शायद कुछ करीबी लोगों को परख सकू कि वो कितने करीब है मेरे ।"

जानकी ने कहा ।


संदली हल्के आंखों से जानकी को देख रही थी । 

जानकी ने आगे कहा , "मैं तुम्हारे चहरे के आव भाव को भी परख सकती हूँ कमसे कम कोशिश तो कर ही सकती हूँ.." जानकी ने संदली की तरफ नज़रे घुमाते हुए कहा । 

"अच्छा.. लेकिन मैं तो कुछ छुपाना जानती भी नही । और छुपाऊ भी क्या .. छुपाने लायक कुछ है ही नही ।" संदली ने बनावटी हंसी देते हुए अपनी नज़र सामने करते हुए कहा ।


आपनी खुवाहिशें ।। 


" ज़िंदगी से हम सब बहुत कुछ चाहते है मगर हमारी चाहतों के बीच क़िस्मत अक्सर धखल दे जाती है और हम अपनी मनचाही ख़य्वाहिशों से दूर हो जाते हैं.. लेकिन एक रास्ता बंद होता है तो दूसरा अपनेआप खुल जाता है । कुछ खो जाता है अगर तो कुछ मिलता भी है । भरोसा रखो सब ठीक होगा । "

जानकी ने अपना हाथ संदली के सर पर फेरते हुए उसके दर्द को बांटने की कोशिश करी। उसने आगे कहा , मैं पूरी तरह से तो नहीं जानती की क्या बात है मगर इतना जानती हूं कि जो भी है तुम्हे उससे बाहर निकलना चाहिए । इस बनावटी मुश्कुराहट से तुम कब तक काम चलाओगी ।" इतना कह जानकी उठ कर जाने लगती है ।। 

संदली खामोश अपनी नज़र एक दिशा में टिकाए बस सब कुछ सुनती रही । फिर नज़रें सामने करी तो सामने उसकी दोस्त रीमा अपने होने वाले पति के साथ मंच पर खड़ी थी । आस पास रिस्तेदार दोस्त यार फ़ोटो और सेल्फीज़ में बिजी थे । आज रीमा की मांगनी थी । 


संदली अपने बीते दिनों को याद करती है ।

इंटर कॉलेज डांस कॉम्पीटिन था जो शहर के सबसे बड़े सेंटर में आयोजित किया गया था । जिसमे मैने भी हिस्सा लिया था अपनी कॉलेज की तरफ से । मेरे सारे दोस्त और मेरी फैमिली मौजूद थी । मैंने अपनी परफॉर्मेंस दी । और अच्छी बात ये हुई कि उस कॉम्पीटिशन में मैने प्रथम प्राइज जीता ।

जब मुझे प्राइज दिया गया तब तालियों की गूंज होने लगी । उसी बीच जो सबसे ज्यादा तालियां बजा रहा था वो था सुरेंद्र मेरा क्लासमेट मेरा दोस्त । हां दोस्त । असल मे उसने तो एक आद बार मुझे अपने दिल की बात बताई थी मगर मैनें कभी उसे सीरिअसली नहीं लिया । मैं मदमस्त मनमौजी भला प्यार व्यार के चक्कर मे क्यों पडू । 


"सुरेंद्र मैंने हां नही कहा तो भी तुम मेरे पीछे क्यों रहते हो तुम्‍हें किसी और पर कोशिश करनी चाहिए । इसपर वो यही कहता था कि हाँ नहीं कहा पर न भी तो नहीं कहा ।"


दिखने में कुछ खास नहीं था सुरेंद्र । साँवला रंग ,पतला शरीर , आंखों पर चश्मा , कद में भी मुझसे एक इंच छोटा था । बस पढ़ाई में थोड़ा तेज़ था इसलिए अपने सारे सवालों का पिटारा मैं उसके सर पर रख देती थी । उसका मेरे घर आना जाना लगभग रोज़ ही हुआ करता था । मां बाबा सुरेंद्र को पसंद करते थे । सीधा साधा सरल लड़का हर पेरेंट्स को अच्छा लगता है । उसकी सेंस ऑफ हुमर अच्छी थी वो हमेशा ऐसी ऐसी बातें करता था कि मैं चाहे किसी भी मूड में रहूं सब भुला कर हस देती थी ।। 


कॉलेज के दूसरे दिन ही मुझे मालूम चल गया था कि क्लास का सबसे पढ़ाकू लड़का कौन है इसी लिए मैंने उससे दोस्ती की ताकि मुझे पढ़ाई में हेल्प होती रहे । क्योंकि मुझे पढ़ाई में कोई खास मन नहीं लगता था । घूमना फिरना , मस्ती मज़ा , डांस पार्टी यही मेरी असली दुनिया थी । 

सुरेंद्र मेरा बहुत अच्छा दोस्त था । उसके दिल मे मेरे लिए शायद दोस्ती से ज्यादा कुछ था मगर मेरे दिल मे उसके लिए ऐसी कोई फीलिंग नही थी । 


12वीं खत्म हो चुकी थी रिजल्ट आ चुके थे । मैं ठीक ठाक नंबरों से पास हो गयी थी । मैंने आगे की पढ़ाई जारी रखते हुए डिग्री कॉलेज में दाखिला लिया और एडिशनल विषय के तौर पर म्यूजिक एंड डांस को सेलेक्ट किया । मुझे डांस में रुचि रही थी और इसी में थोड़ा कुछ करना चाहती थी । सुरेंद्र ने भी मेरे साथ नए कॉलेज में एडमिशन लिया और अपनी बी ए की पढ़ाई जारी रखी । सुरेंद्र यंहा अपने मामा मामी के यंहा रहकर पढ़ाई करता था।  


कॉलेज शुरू हो चुका था । सुरेंद्र अपने मामा की स्कूटर पर कॉलेज आता था और उसके साथ मैं भी आती थी । मुझे बस दिक्कत ये थी कि अक्सर स्कूटर चलते चलते बीच मे बंद हो जाया करता था और फिर क्लास में देरी । 


संदली - "तुम कोई अच्छी सी बाइक ले लो न क्यों ये खटारा स्कूटर को लेकर आते हो इससे अच्छा तो मैं ऑटो कर लेती ।"


सुरेंद्र - "अर्रे अभी इसी से काम चला रहा हूँ लेकिन जल्द ही तुम्हारे लिए एक बाइक ले लूंगा ताकि तुम्हे कोई दिक्कत न हो ।" 


पढ़ाई जारी रही । क्लासेज चलते रहे । मेरी डांस की क्लासेज भी जारी रही । कुछ नई सहेलियां भी बनी । इसी बीच मेरी नज़र रॉकी से मिली जब एक दिन सीढ़ियों से उतरते वक्त हम अनजाने में एक दूसरे से टकरा गए । साइंस सेकंड ईयर का स्टूडेंट था जिसपर कई सारी लडकियां फिदा थीं। स्मार्ट हंक बिककुल रितिक की तरह बॉडी और हाइट । जब मेरी नज़रें उससे पहली दफा मिली थी तभी मुझे भी कुछ कुछ हुआ था लेकिन कभी आमने सामने बातचीत तो दूर इशारे बाज़ी भी नहीं हुई थी । सुरेंद्र कुछ दिनो के लिए अपने शहर गया था अपने मां-बाबा के पास । मैं कॉलेज सुरेंद्र के साथ आती थी लेकिन अब कुछ दिनो से लिए ऑटो में आना जाना कर रही थी । 


एक दिन मैं कैंटीन में बैठी कॉफी पी रही थी मेरी क्लासमेटस लेक्चर अटेंड कर रहे थे । मुझे बोरिंग लग रहा था इसलिए लेक्चर छोड़ मैं कॉफी पीने के लिए कैंटीन में बैठी थी कि अचानक रॉकी मेरे सामने वाले चेयर पर आकर बैठ गया । 

मैं चौंक गयी । उसने अपने लिए कॉफ़ी आर्डर की । 

"हेय , आई हॉप यू डोंट माइंड मैं यंहा बैठु अगर तो.."उसने मुझसे कहा । 

मैंने कुछ बोला नही मगर मेरी आँखों में चमक सी आ गयी पता नही क्यों । कुछ देर तक यूंही रहा । मैंने इधर उधर देखा तो पाया कि आस पास बैठी लडकियां मुझे अजीब निगाहों से देख रही थीं । 


"तुम कौन से सेक्शन की हो ? "उसने अपने स्मार्ट फ़ोन में उंगली करते हुए पूछा । 

"आर्ट फर्स्ट ईयर जनरल , म्यूजिक एडिशनल ।"मैंने संजीदा से जबाब दिया । 

"हम्म , म्यूजिक । तुम गाना गाती हो या कोई इंट्रूमेंट प्ले करती हो ।"

"आई डांस ।" मैंने रुबाबी से कहा ।


"कूल .. आई लाइक दैट।" उसने ठुड्डी पर हंसी चिपकाते हुए कहा । वैसे मुझे भी म्यूजिक पसंद है शौकिया तौर पर गिटार बजाता हूं । उसने इस बार संजीदापन से कहा । इस बीच उसकी कॉफी आ गयी । और इस तरह हमारी पहली बात चीत कॉलेज के कैंटीन में कॉफी पीते पीते हुई थी । 


छुट्टी हुई और मैं कॉलेज से निकल कुछ दूर पर ऑटो का वैट कर रही थी । इतने में एक बाइक सीधे मुझतक आकर रुकी कोई और नही रॉकी था बाइक पर।  

"किसका वैट कर रही हो ?" 

"ऑटो का।"  

"चलो मैं छोड़ देता हूँ । "

"नही । मैं ऑटो में चली जाऊंगी ।" 

" अरे चाहो तो ऑटो के पैसे मुझे दे देना एंड ट्रस्ट मी आई ड्राइव वेरी वेल । "


आखिरकार मैं मान गयी । मैं बाइक के पिछ्ले सीट पे बैठ गयी । सीट काफी ऊची थी तो मेरा शरीर आगे की तरफ रॉकी के पीट पर झुका हुआ था । मुझे थोड़ा अजीब महसूस हो रहा था । जब जब ब्रेक लगती मैं आगे की तरफ हो जाती जिससे मेरा शरीर रॉकी से कस जाता । पहली बार ऐसी बाइक पर सवार हुई थी वो भी एक अनजान दोस्त के साथ । हां अनजान ही तो था । अभी तक तो दोस्ती भी नहीं हुई थी फिर भी पता नहीं क्यों मैं बाइक पर बैठने को राजी हो गयी ।


उसके बाद अक्सर दोनो में कॉलेज की कैंटीन पर मुलाकाते होने लगी बातेंं होने लगी और रॉकी उसे रोज़ कॉलेज से घर छोड़ने भी लगा था अपनी फर्स्ट क्लास स्टाइलिश बाइक पर । संदली को भी अब रॉकी के साथ अच्छा लगने लगा था । उसे ये भी लगता था कि इतना स्मार्ट लड़का कॉलेज की दूसरी लड़कियों को छोड़ मुझसे दोस्ती करने का कैसे सोचा । जब वो दूसरे लड़कियों के चेहरे को देखती तो उसे अक्सर खुद के लिए अजीब निगाहों का सामना करना पड़ता था।  

यंहा तक कि उसकी क्लास की सहेलियां भी अक्सर कहती थी कि "यरर तू कितनी लक्की है रॉकी तेरे को लाइन दे रहा है काश हमे भी कोई ऐसा लिफ्ट देने वाला मिलता । " 


"चुप.. ऐसा कुछ नही है । वी आर जस्ट फ्रेंड " 


"वैसे बुरा लग रहा हमे सुरेंद्र के लिए बेचारा अब उसके स्कूटर पर कौन बैठेगी ? " सहेलियों ने टांग खिंचाई करते हुए हसने लगती । 

"तुम लोग दिमाग खराब मत करो .. । सुरेंद्र मेरा दोस्त है और रॉकी भी । " संदली अक्सर इन बातो से गुस्सा हो जाती थी । 


सुरेंद्र अपने शहर से यंहा लौट आया था । 

संदली ने सुरेंद्र और रॉकी की मुलाकात कराए । तीनो कैंटीन में मौजूद थे और एक टेबल पे कॉफ़ी पी रहे थे ।

"सो, सुरेंद्र क्या पढ़ रहे हो ? "रॉकी ने पूछा।  

"आर्ट्स । "

"आगे क्या सोचा है ? "

"नही । फिलहाल कुछ तय नही किया है । देखता हूँ । "सुरेंद्र ने कंफ्यूसन में कहा । 

"डुड । आगे का प्लान करना जरूरी होता है लाइफ में ।" 


"तुमने क्या सोचा रॉकी ?" बीच मे संदली ने पूछा ।

"मैंने तो सोच लिया है कि यंहा से निकलते ही एक आई टी कंपनी के लिए अप्लाई करूँगा । मेरे डैड के काफी कॉन्टेक्ट्स है आराम से एंट्री मिल जाएगी । आजकल आई टी में फ्यूचर है । इसके अलावा लाइफ में फुल एन्जॉयमेंट होना चाहिए । जो मन करे वो कर सके ऐसी लाइफ चाहिए । जेब मे पैसा होना जरूरी है लाइफ के हर मोमेंट को टेंशन फ्री होकर एन्जॉय करने के लिए । फिलहाल कॉलेज खत्म होने तक फुल मस्ती है । "


"अच्छा.. बहुत बढ़िया है तब तुम्हारे लिए ।" संदली ने कहा ।  

"तुमने क्या सोचा है बाताओ ?" रॉकी ने संदली की आंखों में झांकते हुए पूछा ।

" मैं तो बस मोज़ मस्ती चाहती हूँ । डांस के फील्ड में कुछ कर लूं थोड़ा नाम बना लूं और हाँ पैसे भी जैसा कि तुमने कहा मनी इस मस्ट ।। और बस अपनी तौर तरीके से लाइफ को जीना ।" संदली ने कहा ।

सुरेंद्र दोनो की बाते सुन और दोनों के बीच के नज़रोम को देख रहा था । सुरेंद्र न जाने क्यों रॉकी के आगे खुद को थोड़ा कम आँखने लगा था । 


वक़्त के साथ सुरेंद्र और संदली के बीच की दोस्ती फीकी पड़ती गयी । संदली के लिए अब रॉकी हर काम मे मौजूद था । सुरेंद्र को लगने लगा कि रॉकी मुझसे ज्यादा तेज और बेहतर है शायद । 

फिर एक दिन वैलेंटाइन डे वाले दिन सुरेंद्र ने एक बार फिर संदली के लिए गुलाब खरीदे । और एक प्यारा सा कार्ड भी लिया । जिसमें लिखा था बी माई लव फोरएवर .सुरेंद्र ने संदली को कॉल किया मगर उसका कॉल नही लगा । थोड़ी देर बाद कॉल लगा मगर उसने उठाया नही । 

सुरेंद्र ने संदली के घर मे कॉल किया तो पता चला कि संदली सन सेट पॉइंट गयी है अपने सहेलियों के साथ । सुरेंद्र भी सन सेट पॉइंट की तरफ चल दिया ।वंहा का नज़ारा बहुत खूबसूरत था । ज्यादातर कपल्स ही मौजूद थे । सुरेन्द ने संदली की तलाश की । इधर उधर देखते देखते सुरेंद्र की नज़रे एक जगह थम गई । 


उसने देखा संदली दूर पेड़ो के फूलो से भरे बगीचों में खड़ी है और उसके साथ कोई खड़ा है । उसने तुरंत उस और दौड़ लगाई । 

पीछे से खड़े होकर सुरेंद्र दोनो को देखने लगा । सामने संदली और रॉकी मौजूद थे । वो आपस में कुछ बात चीत कर रहे थे । सुरेंद्र ने कान लगाया । 


"संदली , मुझे लगता है कि मैं तुम्हे पसंद करता हूँ । कॉलेज के फर्स्ट मीटिंग से ही तुम्हारा चेहरा मेरी आँखों मे बस गया था । जैसे जैसे हम मिलते गए मुझे तुम और अच्छी लगने लगी, मैं तुमसे प्यार करने लगा हूं .. क्या तुम मेरी गर्ल फ्रेंड बनोगी ? "रॉकी ने गुलाबो से भरा एक बड़ा सा गुलदस्ता संदली की तरफ करते हुए पूछा । संदली कुछ पल के लिए बस रॉकी को देखती रही । 

उसे ये समझ नही आ रहा था कि रॉकी उसे प्रोपोज़ कर रहा है ये सच है या सपना । उसने हंसते हुए गुलदस्ते को ले लिया । 

"मुझे मंजूर है”।


पीछे पेड़ के आड़ में खड़ा सुरेंद्र दोनो की बातों को सुन कर यकीन नहीं कर पा रहा था । उसे तकलीफ होने लगी । ऐसा लगा जैसे उसके दिल को निकाल कर किसी ने कुचल दिया हो ।। 

सुरेंद्र वंहा से जाने लगा । रास्ते भर में उसके आंखों से आसुं बहते रहे । उसे एहसास हुआ कि संदली के मन मे न कभी प्यार था और अब न कभी होगा । संदली को जैसा पसंद था शायद रॉकी वैसा ही था । सुरेंद्र के मन मे एक टीस सी लग गयी । उसने ठान लिया कि वो दुबारा कभी संदली के बारे में नहीं सोचेगा । प्यार को भुला देगा ।उधर संदली और रॉकी एक दूसरे के बांहों में खो गए थे ।

"अर्रे संदली ,संदली ।"

किसी ने संदली के कंधों को हिला कर उसे उसके जागते हुए ख़ुवाब से बाहर निकाला ।अर्रे कंहा खोई हुई हो ।। चलो मंगनी की रसम हो रही है । चलो लड़का लड़की एक दूसरे को अंगूठी पहनाने वाले हैं ।संदली अपने पुरानी यादों की दुनिया से बाहर आई ।वो उठ कर जाने को थी कि अचानक उसका पर्स उसकी हाथ से छूट कर नीचे जमीन पर गिरा । इससे पहले की वो झुक कर पर्स उठती किसी और ने उसे पर्स को उठाकर संदली की और बढ़ा दिया ।संदली ने जबदेखा तो वो एक पल के लिए स्तंभ रह गयी । सामने सुरेंद्र खड़ा था ।


"सुरेंद्र .. तुम .. इतने साल बाद ।"


"हां । लड़के वाले की तरफ से हूँ । दरअसल जिसकी मंगनी हो रही है न वो मेरा दोस्त है ।"और बताओ घर मे सब कैसे है ?" सुरेंद्र ने पूछा ।

"बात मत करो मैं तुमसे बहुत खफा हूँ । तुम अचानक मुझसे कुछ बोले बगैर मां बाबा को कुछ बताए बगैर अपने शहर चले गए और कोई कॉल नहीं कुछ खबर नहीं और आज मिले ।। ऐसी कौन सी बात हो गयी थी जो तुम्हे मुझसे बताए बिना चले जाना पड़ा वो भी ऐसे ।"

संदली ने गुस्सा और नाराज़गी जाहिर करते हुए पूछा । संदली के चेहरे पर गुस्सा झलक रहा था ।

सुरेन्द ने कहा , " दो कारण थे मेरा घर लौटने का । दूसरी वजह थी बाबा की तबियत खराब होना । इसलिए मुझे तुरंत जाना पड़ा था । उनकी तबियत ऐसी नही रही थी कि वो घर का भार और जिम्मेदारी को जारी रखते इसलिए मैंने ही सब अपने जिम्मे लेना ठीक समझा । "

"तो बता के जा सकते थे न ।अब कैसे है ?" संदली ने चिंता भाव मे पूछा ।

"फिलहाल ठीक हैं ।" सुरेन्द्र ने बताया।

"और पहला कारण क्या था ?"संदली ने फिर पूछा ।

पहला कारण .. शायद तुम्हें मालूम होगा । सुरेंद्र ने गहरी आंखों से देखते हुए कहा ।

"माफ कर दो संदली उस वक़्त सब कुछ ऐसे हुआ कि मुझे बस जाना पड़ा और यही सही लगा । दोस्त समझकर माफ कर दो ।" सुरेन्द्र ने धीमे लफ्ज़ों में कहा ।


संदली कुछ हद तक जानती थी वो पहली वजह क्या थी । मगर कहती भी तो क्या ।

"खैर मेरा छोड़ो अपना बताओ ।क्या कर रही हो आजकल ? " सुरेन्द्र ने पूछा ।

"कुछ खास नही । बस एम ए खत्म होने को है आखरी साल है कुछ ही दिनों में परीक्षा भी शुरू हो जाएगी । सुबह कॉलेज में बिजी और शाम में घर पर ही डांस सिखाती हूँ कुछ स्टूडेंट्स है आस पास के और इधर उधर के ।"संदली ने चेहरे पर मुस्कान बनाते हुए जबाब दिया ।

"ओह अच्छा ।और रॉकी ? "सुरेंद्र ने अटकते हुए पूछा ।

रॉकी का नाम सुन कर संदली ने सुरेंद्र को एक तक देखा और फिर एक बनावटी मुस्कान के साथ बोली

"रॉकी और मैं अब साथ नहीं हैं। हमारा रिश्ता तो साल भर भी नहीं टिक पाया। शरू में सब ठीक था लेकिन धीरे धीरे मुझे रॉकी की आदतों और उसके गलत संगति का पता चलने लगा । हद तब हो गयी जब मुझे उसके दूसरे अफेयर्स का मालूम चला । उसके बाद से मैंने उससे रिश्ता तोड़ दिया । हमारा ब्रेकअप हुए काफ़ी वक़्त गुजर चुका है । अब वो कंहा है मुझे नहीं मालूम और न ही मुझे कुछ मालूम करना है। "संदली ने गहरी सांस भरते हुए कहा ।

"ओह । मुझे लगा था कि तुमने शादी भी कर ली होगी ।"सुरेंद्र ने कहा। 

संदली थोड़ा मुस्काई ।"मैंने तो नही की । पर तुमने की या नहीं ?"संदली ने पूछा। 

मां बाबा तो रट लगाए बैठे हैं शादी कर लो शादी कर लो । अब आमदनी भी ठीक ठाक हो गयी है कारोबार ठीक ठाक फल फूल रहा है ।मगर मैंने अब तक नहीं की शादी । सुरेन्द्र ने चाव से जबाब दिया ।

"क्यों कोई पसंद नही आई क्या अब तक "? संदली ने पूछा

"आई थी बहुत पहले मगर मैं ही उसे पसंद नहीं आ पाया कभी ।"

संदली ख़ामोश अपनी पलकों कुछ पल निहारने लगी।लगभग 4 साल गुजर चुके थे । मगर सुरेंद्र आज भी उतना ही सीधा सरल और सदाहरण था । उसके चेहरे में आज भी वही भाव थे ।संदली जानती थी कि सुरेंद्र किस की बात कर रहा है ।सुरेन्द्र संदली के हाथ को अपने हाथ मे लेकर बोला ,"बस एक ही तो लड़की पसंद आई थी मुझे जिसकी आंखों में चमक हुआ करती थी जो अपनी बातों से कान खा लेती थी जिसके कदम जब ताल पे थिरकते थे तो मेरा भी जी मचल जाया करता था और जिसकी मुस्कुराहट पे सब कुछ हार जाता था ।। मैंने हमेशा से बस उसी को चाहा उसकी को मांगा और आज भी वही है मेरे दिल मे ।अगर वो लड़की इस बार हां कह दे बरात लेकर आजाउँगा."


संदली की आंखे नम हो चली थी । मोटे मोटे आंसू बस एकाएक निकलने लगे थे मानो इसी लम्हे का इंतज़ार हो ।"मैं कितनी बड़ी बेवकूफ थी जो मैं तुम्हे जान न सकी । तुम कैसे मुझसे इतना प्यार कर सकते हो जबकि मैंने कभी तुम्हे प्यार के काबिल ही नहीं समझा । और इतना कुछ होने के बाद भी तुम मुझे प्रोपोज़ कर रहे हो ।आज अगर मैंने हां नही किया तो मैं कभी खुश नही रह पाऊंगी ।"

दोनो एक दूसरे के बांहों में खो गए । आस पास लोग जमा हो गए । बिछड़े प्यार को मिलता देख सब तालियां बजाने लगे। "आखिरकार तुम्हारी बनावटी हंसी अब खत्म हो गयी ।" जानकी जी ने कहा ।

"चलो चलो लड़का लड़की वंहा तैयार खड़े हैं ।"

सब वापस मंच पर आए । राजेश और रीमा ने एक दूसरे को रिंग पहनाया और मंगनी की समाहरोह पूरी हुई । सबने लड़के और लड़की को बधाई दिया ।इधर संदली और सुरेन्द्र की दोस्ती अब मोहब्बत में बदल गयी और एक नई कहानी की शुरुवात हो गयी ।

संदली और सुरेन्द्र के चेहरे पर मुस्कान बिखर गई ।


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