एक प्यार ऐसा भी
एक प्यार ऐसा भी


वो पल कितने सुनहरे थे। जब वो पहली बार मुझसे मिला था। फेसबुक पर। समय कब बीत जाता था, पता ही नही चलता था।उससे बातें करना कितना अच्छा लगता था। वो जब भी कुछ लिखता तो मुझे लगता कि मेरे लिए वो लिखा है। मैं उसके लिखे हर शब्दों में खुद को पाती थी। और मैं फिर से दुबारा जी उठती थी और मुझमें जीने की अपार इच्छा जाग गई थी। उसे लिखने का बहुत शौक था और मुझे उसके लिखे हर शब्दों को पढ़ने का शौक हो गया था।
एक लंबी साँस भरती हुई आगे बढ़ी- "सोमेश से शादी तो हुई थी पर उन्हें मुझमें तनिक भी दिलचस्पी नही थी। उन्हें न मेरा चेहरा और न ही मेरा कोई काम पसन्द था। इसलिए मैं खुद को अकेली समझने लगी थी। किन्तु कुछ दिनों बाद अचानक विनीत राठौर से बातचीत शुरू हो गई तो ऐसा लगा कि कोई तो है जो मेरी भावनाओं को समझ सकता है। जो मेरे जैसा सोचता और मुझे समझता है।"
नेहा सिगरेट के धुएँ को आकाश में उड़ाती हुई एक-एक हर्फ़ अपनी डायरी में दर्ज़ करती जा रही थी। और बार-बार वाट्सएप और फेसबुक को चेक भी। मगर विनीत का कुछ पता नही चलता।
"हे गॉड! ये कहाँ चला गया आज दो महीने हो गये है उसका पता नही चल रहा है। क्या करूँ...? मैं तो उसके घर भी नही जा सकती। पर वो तो आ सकता है। हमेशा आता तो था। पर अब क्या हो गया है। जबसे मैंने उससे शादी करने का फोर्स किया तभी से उसका व्यवहार बदला-बदला सा लगने लगा था, अरे उसे नही करनी है शादी तो मत करे पर यूँ बिना बताए चले जाना अच्छी बात नही....।"
नेहा अपने मन में ही सोच रही थी, पर अचानक उसके चेहरे का रंग ही उड़ गया।
*विनीत*
*वेड्स*
*सौम्या*
ये क्या है? उसके मुँह से अवाक ही निकल गया।
नेहा पसीने से सराबोर हो गई।
उसे इस समय कुछ समझ नही आ रहा था।
आँखों से झर-झर आँसुओं की धारा बहने लगी।
उसकी हालत पागलों सी हो गयी।
उसके पास उस समय कोई नही था। जब वह अकेली थी...
पर... वह अब अकेली ही नहीं टूटकर बिखर गई थी।
उसके मायके वाले भी उसके साथ नही थे।
वो कहते है न जब किस्मत साथ देती है तो छप्पर फाड़ कर देती है।
और जब उसे नही देना होता है न तो वह सब कुछ बना हुआ ही बिगाड़ देती है।
उसका पति शराबी और अय्याशीबाज़ था। जिससे नेहा नफरत करने लगी थी और जब दुखी होकर मायके में बताती तो सब दोष देते कि जरूर तुझमें ही कमी है तभी सोमेश बाबू ऐसा कर रहे है।
तब वह हार गई। उसे लगा कि इसे समझने वाला शायद इस धरती पर कोई नही है।
यह सोचकर वह आँसू पोछकर हिम्मत करके खुद का ही सहारा बन आगे बढ़ी।
पर कुछ दिनों बाद विनीत से बातचीत शुरू हुई तो जैसे लगा कि बूढ़ी आँखों को नई रोशनी मिल गई।
किन्तु नियति को कुछ और ही मंजूर था।
नेहा अब अपना मानसिक संतुलन पूरी तरह से खो बैठी थी।
कभी हँसती तो कभी रोती तो कभी दीवारों पर
*विनीत*
*वेड्स*
*नेहा*
लिखती।
और घण्टों तक उन लिखें हुए शब्दों को चूमती, निहारती और न जाने कितनी बातें करती।
और जब मन करता तो बनारस की गलियों में पगली बन दर-बदर फिरती रहती।
बिखरे-बिखरे बाल, झुलसा हुआ चेहरा, जिसे वह खुद सिगरेट से जगह-जगह जलाई थी और अपने हाथ पैर पर भी
विनीत वेड्स नेहा लिख डाली थी।
वह हमेशा गुमसुम रहने लगी थी और जब मुँह खोलती तब उसके मुँह से एक शायरी निकलती थी जो विनीत ने नेहा को पहली दफ़ा देखा था फेसबुक पर तब...
तेरी सादगी का मैं दीवाना हो गया।
जबसे तुम्हें देखा खुद से ही अंजाना हो गया।।
मुस्कुरा कर तू मुझे यूँ देखा न कर पगली।
ये तेरा दीवाना अब बड़ा ही मस्ताना हो गया।।
इतना बोलकर नेहा ताली बजाकर ठहाके मारती हुई हाहा.. हाहा हँसने लगती है।
सच कहाँ गया है कभी किसी के भावनाओं के साथ नही खेलना चाहिए। ख़ास तौर से जब सामनेवाला पहले से एक धोखा खा चुका हो तब।
ऐसे लोग बहुत काँच की तरह नाजुक होते है।
ये बेचारी कितनी दुखयारी लगती है, जैसे किसी के प्यार में ये पागल हो गई है।
देखो न, विमला - "एक प्यार ऐसा भी..."
बोलकर चुप हो गई।
राम जाने बहना। सिब्बू!
सड़क पर से कूड़ा उठाती हुई अपनी सहेली विमला से बोली।
अपनी तो जिंदगी बस ऐसे ही कट रही है।
शुक्र मनाओ कि हम दोनों साथ में है। विमलू।
खा कसम तू कभी नही जाएगी मेरे को छोड़कर ।
अरे नही रे बाबा!
हम दोनों तो साथ जियेंगे साथ मरेंगे।
सिब्बू; विमला का हाथ पकड़ कर बोल ही रही थी कि अचानक एक ट्रकवाला धक्का मारकर बड़े ही तेज़ी से भाग गया ।
यह सब हादसा नेहा के आँखों के सामने हो रहा था।
वह यह सब देखकर खुशी से उछल पड़ी और तेज से बोल उठी-
एक प्यार ऐसा भी होता है..... हाहाहा हाहाहा
मर गई.... मर गई...... का रट लगाने लगी।