Anjali Srivastav

Abstract

4.3  

Anjali Srivastav

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बदलते रिश्ते

बदलते रिश्ते

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"नमस्ते मैडम! कैसी हैं?"


अंशिका के कानों में ये आवाज़ पहुंची तो अंशिका पलट कर पीछे देखने लगी."अरे! सर आप! यहां कैसे?"अंशिका झिझकती हुई सहमी सी बोली.


"बस यूं ही समझ लो तुमसे मिलना लिखा था.जबसे तुम गई जीवन से तो जीवन जीना दुभर हो गया".राकेश बोला.


"मै कहां गई थी. आप ही बेवजह छोड़ कर चले गए थे.शायद मै आपके लायक नही थी. जॉब भी नही करती थी या आपको मेरा यूं टूटकर चाहना रास नही आया.इसलिए मुझे बिलखता हुआ छोड़ चले गये."लंबी सांस भरती हुई - खैर... कोई बात नही.जब कोई ठुकराता है तब व्यक्ति को कुछ नही समझ आता. क्या करे या क्या न करे.छोड़िए मेरी. आप अपनी सुनाइए.सुनी हूं कि जॉब वाली लडकी से आपकी शादी हुई है. और आप बेहद खुश है अपनी मैरिड लाइफ में".


"नहीं जी ऐसा नही है.तुम्हें बहुत ढूंढा तुम मिली नहीं.पर आज संयोग अच्छा था तो तुमसे मुलाकात हो गई".कहते कहते राकेश की आंखे भर आई.आंख पर लगी चश्में को निकाल कर रुमाल से हल्के हाथों से नम आंखों को पोछने लगे.


"राकेश जी! अब छोड़िए पुरानी बातें जो होता है अच्छा होता है."


"नही होता है डियर!किताबों और कहानियों में बस अच्छा होता है असल जिंदगी में नही.हां तुम्हारे लिए तो अच्छा हुआ हैतुम आज एक जानी मानी डॉक्टर हो गई हो.तुम्हें आज अब कौन नही जानता."


"अरे डॉक्टर साहब तो आप हो. सर!लेखक भी बन गए हैं आप तो , आपकी लेखनी पढ़ती हूं हमेशा.शानदार होती है. पर उसमें अपने लिए कभी कुछ महसूस नही किया.और हां कुछ नया बताइए. अब बच्चे - वच्चे कितने हुए आपके?"


"नही एक भी नही अभी. जानती हो अंशिका आज भी तुम मेरे मानस पटल पर राज करती होवो मेरी गलती थी जो तुम्हें समझ न सका."


"गलती नही समझ दारी थी आपकी.सर!"


अंशिका,राकेश को अक्सर संबोधन में सर या गुरु जी ही संबोधित करती थी."मगरबच्चा नही हुआ तो क्या हुआ. अब तो होगा."


"हां! होगा पर वो टेस्ट ट्यूब बेबी के जरिए से.सिजेरियन करके."


"कोई बात नही पिता तो बनेंगे ही,ये सबसे बड़ी खुशी की बात है."


"हां अंशिका! और तुम बड़ी मम्मी!"


ये बात सुनकर अंशिका की आंखे नम हो गई और बोलना चाहती थी कि "मैं तुम्हारे बच्चे की मम्मी बनना चाहती थी बड़ी मम्मी नही."


मगर अपने आपको संभालती हुई हंसती हुई बोली, "बुआ बन रही हूं जी."


"नहीं डियर!मज़ाक मत बनाओ हमारे रिश्ते को.तुम बड़ी मम्मी ही हो और सदा रहोगी."


"नही सर!अब तो आपने हमारे रिश्ते का मज़ाक बना दिए हैं.वरना तो मेरे दिल में आज भी आप ही हैं."


"वो कैसे?"

"क्या तुमने शादी नही की?"राकेश सवालों का ढेर लगा दिया .एक सांस में ही.


"हुई थी शादी।आपसे बिछड़ने के बाद घरवालों ने मेरे न चाहने के बावजूद भी मेरी शादी कर दिए.एक अच्छे लड़के से.जो पेशेवर डॉक्टर थे.

फिर मैं भी अपने मन को समझा कर अपने शादी शुदा जीवन में खुश रहने लगी,लेकिन भगवान को मेरी खुशी दिखी नहीं.दो महीने बाद ही मेरे पति का एक्सीडेंट हो गया.और फिर उनके जगह पर मै हूं.उनकी नौकरी मुझे मिली.उनका सम्मान दिल से करती हूं,क्योंकि उनके जैसा कोई नही मिला.और रूह में आप समाए थे.अब तो रिश्ते ही बदल गये" 


"इतना सब कुछ हुआ तुम्हारे साथ मुझे कुछ पता न लगा.कमोबेश ही जान पाता तो बेहतर होता.बहुत ढूंढा.मगर अब भले ही रिश्ते बदल गये.पर तुमसे प्रेम आज तक है."


"उस दिन कहा गया था आपका प्रेम?आज अचानक उमड़ गया.अब हमारे रिश्ते अलग है."दोस्त बनकर ताउम्र साथ निभायेंगे."

"अब मुझ अपराधी माफ़ कर दो."


"नही सर! आपने मुझे छोड़कर मजबूती दी है,अब प्रेम करके मुझ विधवा औरत को कमजोर मत कीजिए.प्रेम व्यक्ति को कमजोर बना देती है."

इतना कहकर अंशिका चली जाती है अपने चेहरे पर एक अजब ही आत्म विश्वास भर कर.उस पुरुष के प्रेम को पा कर जिस पुरुष के प्रेम के तरसती थी.

ईश्वर से मिन्नत करती थी.उसके लिए.


अंशिका कितनी निष्ठुर हो गई है.सच में हमारे रिश्ते बदल गए हैं.नही तो अंशिका यूं मुझे छोड़ कर नही जाती.जो मेरे बगैर एक पल नही रहती थी."

राकेश एक हाथ में चश्मा लिए सोच में डूबा हुआ अंशिका को जाते हुए देखता रह गया.


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