आवश्यकता
आवश्यकता




रिचा को आए एक साल हो गया था, अपने घर से।
वह अपने पति के साथ एक किराए के घर में रहती थी, यहां गोरखपुर में।
वह अपने मायके या ससुराल कम ही जाती थी।
ससुराल तो चली भी जाती थी पर अपने मायके नहीं जाना चाहती थी।
उसे लगता था कि उसके मायके वाले सिर्फ पैसों और उसके पति के सरकारी नौकरी के वजह से उसे पूछते है और उसका सोचना भी सही ही था, क्योंकि जब तक उसके पति की नौकरी अच्छे से चल रही थी तो उसके मायके वाले रोज हाल चाल पूछने आ जाया करते थे, पर जैसे ही उसके पति रूपेश की नौकरी किसी कारणवश ख़तम हो गई वैसे ही उसके घर वाले उससे बात-चीत करना कम कर दिए।
पर वह ठहरी लड़की जात, जिसे अपने मायके से न चाहते हुए भी मतलब रखना था। क्योंकि वह मां का घर था। मां से लगाव था। वहां की मिट्टी उसे बहुत अच्छी लगती थी, क्योंकि वह वहां जन्म ली थी।
वह मन ही मन उदास रहती पर उससे, उसका हाल पूछने या देखने कोई नहीं आता।
फिर भी वह एक आस में जीती। उसे शायद उसकी अपने हमदर्दी अपने मायके से पाने की लालसा को अपनी आवश्यकता समझ बैठी थी और एक डर भी था कि अगर वह वहां से रिश्ता नहीं रखेगी तो उसके ससुराल वाले उसे वहां कभी नहीं जाने देंगे।
उसे अपनी मां के प्यार और दुलार की वो बचपन की छांव चाहिए, जिसके एक-एक बूंद से वह सींची गई थी। आज उसे उसकी बहुत जरूरत है। जिसके लिए मन ही मन घुट रही है।
पर उसके पिता के न रहने पर मां बेचारी भी अपने और बच्चो की वजह से वह अपनी बेटी से मिल तक नहीं पाती।
इधर मां, बेटी के लिए तड़पती रहती। अपने नकारा बेटो के वजह से। उधर बेटी बेबस थी। अपने ससुराल के वजह से। अब तो उसके पति रूपेश की नौकरी भी जा चुकी थी।
अब बस वह अपनी पुरानी यादें को याद कर रो लेती और खुद को आईने के सामने खड़ी करके अपनी मां की कमी महसूस करती रहती।
उसे अपनी मां की दुलार, ममता और सांत्वना भरी गोद की उस समय सबसे ज्यादा आवश्यकता थी। जिसे वह किसी से नहीं कह पा रही थी। यहां तक कि अपने पति से भी नहीं।
जबसे उसकी नौकरी गई है तब से वह पागलों की तरह व्यवहार करने लग गया था। और खूब शराब के नशे में धुत होकर कर सभी पर हुकुम चलाता और जब कोई नहीं सुनता तो गुस्से में आकर अपनी पत्नी को जानवरों की तरह पीटने लगता।
और उसकी पत्नी मिताली सब कुछ चुपचाप सहती रहती।
दोनों पति-पत्नी की आवश्यकताएं अलग थी, रूपेश को रुपया, दौलत और शराब की आवश्यकता थी और पत्नी को प्यार और अपनेपन, लगाव की।