Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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Bindiya rani Thakur

Classics

4.5  

Bindiya rani Thakur

Classics

दुःख का अंत

दुःख का अंत

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घर में भीड़-भाड़ का माहौल है,नाते-रिश्तेदार,अड़ोस-पड़ोस के लोग और गाँव के लोग भी कतार से बिछाई कुर्सियों पर बैठे हुए हैं और इंतजाम की चर्चा में लगे हुए हैं।सोहम शर्मा जी पूजा में बैठे हुए हैं और पंड़ितजी पितृ तर्पण की विधि आरंभ करने की तैयारी में हैं। आज बाबूजी के बारहवीं का श्राद्ध कर्म किया जा रहा है। 

इस सब से कुछ दूर वैदेही रसोई में मिट्टी के चूल्हे पर तर्पण की विधि में उपयोग में आने वाला भोजन बना रही है। लकड़ियाँ शायद थोड़ी गीली हैं इसीलिए चूल्हे पर से कुछ ज्यादा ही धुआँ निकल रहा है, हालांकि चूल्हे का प्रयोग उसके लिए नया नहीं है लेकिन धुएं के कारण उसे बहुत तकलीफ हो रही है। आँखों से पानी बह रहा है लेकिन इस समय वह चूल्हे के पास से हट भी नहीं सकती, काश कोई आस-पास दिख जाता तो वह दूसरी लकड़ियाँ मंगवा लेती। अभी अगर पंड़ितजी ने यह प्रसाद मंगवा लिया तो फिर शुचि के पापा बहुत गुस्सा हो जाएंगे । उनके गुस्से से बहुत डर लगता है वैदेही को! तभी पानी पीने के लिए उसकी बेटी आई,बेटी से कहकर उसने सूखी लकड़ियाँ मंगवा लीं।

अब प्रसाद बनने की प्रक्रिया तेज हो गई,उसने आँसुओं को साड़ी के कोर से पोंछ लिया और फिर सोच में डूब गई।बाहर से जेठानियों के जोर-जोर से रोने की आवाज आई। वैदेही को क्षोभ हुआ, जीते-जी झांकने तक नहीं आतीं थीं और अब देखो सबसे ज्यादा दुःख जैसे इन्हीं को है, ननदों की भी आवाजें आ रही थीं, जब बाबूजी जिन्दा थे ये लोग नाक सिकोड़ते हुए आतीं और जितनी जल्दी हो सके पलायन कर जातीं थीं। पिछले एक साल का घटनाक्रम और उसके की दिनचर्या वैदेही को याद आ रही थी।

बाबूजी बहुत उम्रदराज थे और सोहम (वैदेही के पति) उनके सबसे छोटे और लाडले बेटे थे। माँजी का साथ जल्दी ही छूट गया था सो बाबूजी सोहम और वैदेही के साथ ही रहते थे ,बड़े और मझले भाई शादी होते ही अपनी पत्नियों को लेकर अलग हो गए थे वैदेही और सोहम दोनों पति-पत्नी पिता से बहुत स्नेह करते थे एवं उनकी बहुत अच्छे से देखभाल करते थे ।दिन अच्छे से बीत रहे थे, मुसीबत की शुरुआत तब हुई जब बाबूजी बाहर घूमने निकले थे और उनको एक साँड़ ने सींग मारकर गिरा दिया और इससे उनकी रीढ़ की हड्डी टूट गई और अब वे बिस्तर से लग कर रह गए!

"वैदेही अपने हद से ज्यादा बढ़कर उनकी देखभाल करती सोहम के ऑफिस और बच्चों के विद्यालय जाने के बाद बाबूजी का कमरा साफ करती जो हरदिन जरूरत से ज्यादा गंदा हो जाता, बाबू जी की याददाश्त कमजोर होती जा रही थी अब वो बिना किसी को आवाज़ दिए,जबतब बिस्तर पर ही मल-मूत्र भी त्याग देते थे,और वैदेही बिना घृणा किए सबकुछ साफ करती, उन्हें नहलाती धुलाती,खिलाती पिलाती किन्तु कभी मजाल है कि शिकायत करती ।गंदगी साफ करने के बाद उसे खाने पीने का भी मन नहीं करता किन्तु यह काम तो उसे ही करना था, पति तो काम पर चले जाते और देर रात लौटते, उसके बच्चे भी छोटे थे उनको भी देखना पड़ता, और किसी से मदद की कोई भी उम्मीद नहीं थी, वैदेही बाबूजी की सेवा पूरी मेहनत से कर रही थी लेकिन इतनी सेवा के बावजूद बाबूजी उसी अवस्था में रहे और फिर आज से ग्यारह दिन पहले उनके दुःखों का अंत हो गया। "

"गाँव भर में वैदेही के सेवाभाव की चर्चा हो रही है। काश सबकी बहू ऐसी होती।"

वैदेही को संतुष्टि है कि अपनी ओर से उसने बाबूजी की बहुत सेवा की ।अभी जेठानियां रो रो कर लोगों के सामने स्वयं को बहुत दुःखी दिखाकर सहानुभूति बटोरने में लगीं हैं और वैदेही अब भी अपना फर्ज निभाने में रही है।

तर्पण का प्रसाद तैयार हो गया, वैदेही उसे लेकर पूजास्थल के पास चल पड़ी।


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