Surjmukhi Singh

Romance Classics

4  

Surjmukhi Singh

Romance Classics

दर्द- ए -इश्क

दर्द- ए -इश्क

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यह कहानी है चार दोस्त और दो बहनों की। युग ध्रुव किशोर अशोक और साधना रागिनी जिनकी जिंदगी अशोक ने अपनी नफरत और बदले के भाव में बेह कर बर्बाद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।

लेकिन कहते हैं ना इसके साथ किस्मत हो उसका कोई बाल बांका नहीं कर सकता । अशोक की एक गलती से इन सभी को बहुत ही संघर्ष भरा जीवन जीना पड़ा। लेकिन आखिर में इन्हीं उनकी मंजिल जरूर मिली जानने के लिए आगे पड़ी है जरूर…

"आप करना क्या चाहती हैं…? क्या जरूरत थी उन लोगों के सामने साधना के बारे में ऐसा कुछ कहने की…? घर पर तो आप साधना को रोज अनाप-शनाप बोलती रहती हैं, बाहर वालों के सामने तो अपनी जुबान पर लगाम रखा कीजिए…!" कृष्णकांत जी बहुत गुस्से में गोमती के सामने आकर बोले।

"अरे आप मुझ पर.. इस तरह क्यों बरस रहे हैं…? मैंने क्या गलत कह दिया…? वह पैदा होते ही अपने मां-बाप को खा गई, मेरी बचपन की सहेली उसकी वजह से मुझसे दूर हो गई… मैं तो उन्हें वही बता रही थी जो सच है …!"गोमती की भी अकड़ कर बोली!

"क्या सच कह रही थी आप…?वह जो सच है ही नहीं! उस वक्त जो भी हुआ, आप अच्छे से जानती हो । मधुसूदन और भाभी जी दुनिया छोड़कर गई ,उसमें उसे बच्ची की कोई गलती नहीं थी ,वह उनकी प्राकृतिक मौत थी। फिर भी आप बचपन से अब तक उस बेचारी को उस गलती की सजा देती आई हो ..जो उसने किया ही नहीं ! और आज जब उसका घर बसाने जा रहा है ,तभी तुम उसके जीवन में आग लगने पर लगी हो …!"कृष्णकांत जी गुस्से में उनका बांह पड़कर उन्हें झिंझोड़ते हुए बोले।

"अभी के लिए तो.. मैं तुम्हें माफ कर रहा हूं..! अगर आइंदा साधना की शादी रुकवाने की कोशिश की, तो तुम्हारे लिए मुझे बुरा कोई नहीं होगा …!"उन्होंने बहुत गुस्से में उन्हें धमकी दी!

"आपको जो करना है कर लीजिए… लेकिन मैं अपनी रागनी और उस साधना की शादी एक ही घर में बिल्कुल नहीं होने दूंगी! उस खन्ना परिवार की आदर्श बहू तो मेरी रागनी ही बनेगी ..साधना को तो मैं वहां की नौकरानी भी बने ना दूं…! मैं भी देखती हूं ..यह शादी कैसे होता है…?!" गोमती जी मन में सोच कर कुटिलता से मुस्कुराई और मुंह फेर कर वहां से चली गई!

"मैं जानता हूं गोमती! तुम्हारे मन में साधना के लिए बहुत कड़वाहट है, जिसकी वजह से आप कभी साधना को खुश नहीं देख पाती और आगे भी आप कुछ ना कुछ जरूर करोगी। लेकिन मैं ऐसा होने नहीं दूंगा… मेरी साधना ने बचपन से बहुत कुछ सहे हैं ..पिता का प्यार तो मैंने चाचा होकर भी दे दिया। लेकिन मां की ममता और अपनों स्नेह में उसे नहीं दे पाया पर, अब उसे वह सब मिलेगा …मिथिलेश जी का पूरा परिवार उसे दिल से अपना आएगा… अब उसकी जिंदगी में आने वाली खुशियों पर मैं किसी की नजर लगे नहीं दूंगा…! उसकी जिंदगी में आने वाले हर तकलीफ को मुझे होकर गुजरना होगा…!" कृष्णकांत जी मन में दृढ़ निश्चय लेते हुए बोले और अपने कमरे की ओर चल पड़े!

"डॉ ! अशोक की हालत ठीक क्यों नहीं हो रही… और कितने ऑपरेशन करेंगे आप उसके…? आपके इतने ऑपरेशन करने के बाद भी उसकी तकलीफ ठीक क्यों नहीं हो रही…? वह अभी तड़प रहा है…!" युग बहुत परेशान होकर डॉक्टर से सवाल कर रहा था!

"प्लीज शांत हो जाइए मिस्टर युग खन्ना! हम अपनी तरफ से उन्हें ठीक करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं…, लेकिन आप तो उनकी हालत के बारे में जानते हैं ना …देख चुके हैं कि वह किस तरह घायल हैं… उनके प्राइवेट पार्ट किस तरह डैमेज हो चुके हैं …? हम अपनी तरफ से उन्हें राहत देने की पूरी कोशिश कर रहे हैं ! मुझे तो हैरानी है कि इतना जख्मी होने के बाद भी वह जिंदा कैसे हैं …मैंने अपनी पूरी करियर में इतना कॉम्प्लिकेटेड कैस नहीं देखा …!"डॉ अशोक के बारे में सोचते हुए बोले! जैसा इस वक्त अशोक की हालत थी, एक डॉक्टर होते हुए भी यह सब देखना और उनका ट्रीटमेंट करना उनके लिए बहुत मुश्किल था।

"प्लीज डॉक्टर कुछ करिए…! दुनिया में भगवान के बाद आपका बहुत ऊंचा दर्जा है... प्लीज कुछ भी करके मेरे दोस्त को ठीक कर दीजिए…! मैं उसे इस तरह तकलीफ में नहीं देख सकता ...,क्या आप उसके जख्मों की सर्जरी करके उसे ठीक नहीं कर सकते …!"युग जिज्ञासा भरी नजरों से उनकी तरफ देखकर बोला!

"सॉरी …मिस्टर युग ! ऐसा करना अगर पॉसिबल होता तो हम कब का कर चुके होते… सर्जरी करने के भी कुछ रूल, कुछ प्रोटोकॉल होते हैं ! लेकिन उनकी हालत ऐसी नहीं की सर्जरी से ठीक हो सके …इन्हें किसी भी तरह कुछ दिन इस दर्द को सहना ही होगा! जब तक इनके जख्म कुछ हद तक भर ना जाए तो उसके बाद ही हम कुछ कर पाएंगे …!"डॉक्टर कुछ सोचते हुए बोले और असमंजस में सिर हिलाते हुए अपने केबिन के अंदर चले गए, उन्हें जाते हुए देख युग बहुत निराश हुआ।

"तुमने बिलकुल भी ठीक नहीं किया… मिस साधना …! एक लड़की होकर इतनी भी इतनी बेरहमी…? लेकिन तुम्हें क्या लगता है …? इतना बड़ा गुनाह करके तुम सुकून की जिंदगी की जीयोगी …, बिल्कुल भी नहीं। बहुत जल्द तुम्हें अशोक के जिस्म पर लगे ,एक-एक जख्म का हिसाब चुकाना होगा… मैं नहीं जानता उस रात क्या हुआ था …? लेकिन अशोक ने मुझे सब कुछ बता दिया है, उसके इस हालत की जिम्मेदार तुम हो…!" युग बहुत गुस्से में अपने जींस के पॉकेट से साधना की तस्वीर निकाल कर उसे देखते हुए बोला ! इस वक्त उसकी आंखें गुस्से और नफरत से पूरी तरह लाल हो चुकी थी।

"मैंने अपनी तरफ से जाल बिछा दिया है… बहुत जल्द तुम मेरी पकड़ के अंदर रहोगी… यहां जितनी तकलीफ अशोक को होगा .. , मैं उससे कहीं ज्यादा दर्द तुम्हें दूंगा! अब देखो तुम्हारी यह शादी तुम्हारी जिंदगी में क्या रंग लाएगी…!" युग ने नफरत भरी नजरों से साधना की मुस्कुराती हुई तस्वीर को दिखा और उसे दो टुकड़ों में फाड़ कर वहीं पास में रखे डस्टबिन के अंदर डाल दिया।

बेचारी साधना को तो अंदाजा ही नहीं था की , जिससे वह जिंदगी की उम्मीद कर रही है ,,वही उसके लिए दिल में हजारों नफरत पाले बैठा है, उसे अपनी दोस्त की हालत का बदला लेने के लिए बेकरार है। दूसरी तरफ उसकी चाची जो उसकी खुशियां देखना नहीं चाहती, अब कैसे करेगी साधना इन दोनों की नफरत दूर और कैसे बचेगी इन दोनों के वार से।


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