दर्द-ए-इश्क -2
दर्द-ए-इश्क -2
आज साधना बेहद उदास छत की खुली हवा में टहल रही थी उसके आंखों के आगे कल कल करती बहती यमुना नदी और उसके उस पार पूरे शहर की शोभा बढ़ाता ताजमहल बेहद खूबसूरत लग रहा था । वह टहलते हुए मुड़ मुड़ कर बस ताजमहल को देख रही थी।
"साधना तू यहां बैठी है …! मैं तुझे कहां-कहां नहीं ढूंढ रही थी…?!" रागनी साधना को ढूंढते हुए छत पर पहुंची, उसने एक नजर साधना के चेहरे को दिखा ..जहां घनी उदासी छाई हुई थी!
"क्या यार साधना! तू भी अब तक उस रात की बात को दिल पर लेकर बैठी है… तू उसी रात को याद कर रही है ना …?!" रागनी ने बॉर्डर पर रखे साधना के हाथ पर हाथ रख कर पूछा! तो साधना ने हां में सिर हिला दिया।
"कितनी बार कहूं तुझे …? भूल जा उस काली रात को ,अब उसे याद करके क्या फायदा …?अब तू पूरी तरह सुरक्षित है… और कुछ दिन बाद तो तेरे कवच युग जी भी आ जाएंगे । और वह दरिंदा अब हॉस्पिटल में अपनी आखिरी सांसें गिन रहा है.. तो तू अब यह फिक्र करना छोड़…!" रागनी मुस्कुराते हुए साधना का चेहरा अपने हाथों में भरकर बोली! साधना ने उसे गौर से देखने लगी।
"ऐसे क्या देख रही है मुझे…? मेरे चेहरे में तुझे युग जी नजर आ रहे हैं क्या…? हम्म…, अब नज़र तो आएंगे ही… तू उन्हीं की दुनिया में तो जाने वाली है मुझे भुलाकर…!" रागनी साधना को छेड़ते हुए बोली! साधना ने अपनी नज़रें झुका ली उसकी बातों को सुनकर!
"यह आखरी महीना है हमारा अपने शहर में… फिर तो हम मुंबई चले जाएंगे.. तेरे मिथिलेश अंकल के घर बहु बनके…! तो चलना यहां से अपनी विदाई से पहले कुछ पल यादगार बना ले …! देख वहां कैसे बच्चे क्रिकेट खेल रहे हैं…? चलना एक मैच हम भी खेल लें …!"रागनी साधना का मन बहलाने के लिए बोली! साधना ने उसकी तरफ खामोशी से देखा उसने कोई जवाब नहीं दिया।
"समझ गई… तू इसी तरह पत्थर की मूरत बनी रहेगी! पर मैं भी देखती हूं …तू कब तक अपना मुंह नहीं खोलती चल मेरे साथ…!" रागनी ने साधना का हाथ पकड़ा और उसे खींचते हुए छत से नीचे ले आई! वह दोनों छत से नीचे सीढ़ियों से होते हुए पूरे घर में नजर दौड़ आ रही थी।
वही हाल में बैठे कृष्णकांत जी ज्वेलर्स किशोर जी के साथ बैठे कुछ गहने पसंद कर रहे थे, उन दोनों ने मुस्कुराते हुए उन्हें देखा और घर से बाहर जाने लगी।
"मेरी यह सीता ..गीता ..की जोड़ी अब कहां चली…?!" कृष्णकांत जी ने मुस्कुराते हुए उन दोनों की तरफ देखकर पूछा।
"कहीं नहीं, पापा! बस एक छोटा सा क्रिकेट मैच खेल कर आते हैं …कुछ दिन बाद तो आप हमें विदा कर देंगे यहां से! फिर हमें यह सब करने का मौका कहां मिलेगा …!"रागनी खुश होकर बोली और उनका जवाब सुनने से पहले ही साधना का हाथ पकड़ कर घर से निकल गई। कृष्णकांत जी कुछ बोलने को हुए लेकिन शब्द उनके होठों तक आने से पहले वह लोग बाहर जा चुके थे।
कृष्णकांत जी ज्वैलर से मुखातिब हुए ,"यह कैसे गहने लेकर आए हैं…? किशोर जी आपने! यह तो सारे एकदम हल्के हैं, मेरी साधना और रागनी पर इनका तो रंग ही नहीं दिखेगा। कुछ महंगे दिखाइए …आखिर लड़के वालों को भी तो पता चलना चाहिए कि उनके घर कृष्णकांत की बेटियां बहू बनकर आ रही है । ऐसे गहने दिखाइए जिन्हें लोग देखते रह जाएं…!" कृष्णकांत जी की बातें सुनकर ज्वेलर्स मुस्कुराए उन्होंने अपने बैग से बहुत ही कीमती और छोटे-छोटे बॉक्स निकाल कर उनके सामने रख दिए!
"लीजिए… यह सबसे महंगे और कीमती गहने …आप इनमें से ही पसंद कर लीजिए..! वैसे मेरे ख्याल से यह जूलरी साधना पर बहुत खूब खिलेगा…, बस ढाई लाख रुपए के हैं…!" किशोर जी ने एक खूबसूरत हार कृष्णकांत जी को दिखाते हुए कहा! कृष्णकांत जी ने एक नजर उस हार को देखा तो उनके होठों पर मुस्कुराहट के साथ चमक आ गई।
"अरे… वाह सच में यह मेरी साधना पर बहुत खिलेंगे …!" उन्होंने किशोर जी के हाथों से उस हार को लेते हुए कहा।
"किशोर जी! इस वक्त आप यहां से जा सकते हैं…! हमारे पास पहले से ही बहुत गहन हैं, हमें और कुछ नहीं खरीदना…!" पल्लू सर पे लेते हुए गोमती जी वहां दाखिल होते हुए बोली! उनके ऐसा कहने से किशोर जी हैरानी से उन्हें देखने लगे।
"यह आप क्या कह रही है गोमती जी! हमारे पास पहले से गहने हैं ,फिर भी हमें कुछ और नये गहने ले लेने चाहिए… आप इन्हें इस तरह यहां से जाने के लिए क्यों कह रही हैं…?!" कृष्णकांत जी ने नाराजगी भरी नजरों से गोमती जी की तरफ देखकर कहा! गोमती जी ने भी नाराज होते हुए उनसे नज़रें फेर ली और उनके पास आकर बैठ गई!
"आप क्यों बेवजह इतना खर्चा कर रहे हैं…? आपने तो हमारी रागनी और उस साधना के लिए गहने पहले ही बनवा लिए थे! फिर और खर्च करने की क्या जरूरत है और उस साधना के लिए इतना कीमती हार क्यों…?!" गोमती जी कृष्णकांत जी के हाथों से वह हार लेते हुए बोली! जिसे देख वह उन्हें गुस्से में घूमने लगे।
"यह हार तो… मेरी रागनी पर कितने खूबसूरत लगेंगे…? आप भी इतनी खूबसूरत हार को उस अभागन के हाथों सौंप कर इसकी शोभा घटा रहे हैं …!"गोमती जी इतराते हुए बोली! उनकी बातें सुनकर किशोर जी कभी उन्हें तो कभी कृष्णकांत जी को हैरानी से देखने लगे।
"आपको कितनी बार बताना होगा…? मेरी साधना अभागन नहीं है ! और आप क्यों हमेशा उस मासूम बच्ची के लिए जहर उगलते रहती हैं? बचपन से आपने उसे अपने कड़वे शब्दों से चोट पहुंचाई है …आज उसका सौभाग्य देखिए… कितनी ऊंचे घराने में उसकी शादी होने जा रही है …और जो ममता और प्यार आप उसे नहीं दे पाई …वह उसके सास- ससुर देंगे…!" कृष्णकांत जी साधना की उज्जवल भविष्य के लिए कामना करते हुए बोले!
"आप सजा लीजिए… जितने सपने सजाना है उस साधना के लिए…, लेकिन मैं कभी उसका घर बसने नहीं दूंगी …!"गोमती जी मन में सोच कर मुस्कुराई!
"हाय …हाय… मैं तो बर्बाद हो गई ! आज फिर मुझे कहीं का नहीं छोड़ा इन लड़कियों ने …कृष्णकांत जी! सुनते भी हैं…!" बाहर से लीला जी की पुकारने की आवाज आई! आवाज से ही पता चल रहा था कि वह कितनी परेशान थी ।
बाकी अगले भाग में…!