दर्द-ए-इश्क -3
दर्द-ए-इश्क -3
"मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है…?चाचा जी! मैंने तो कभी किसी को परेशान नहीं किया ! फिर मेरे साथ ही यह सब क्यों…?!" वह बहुत हताश होकर बोली! उसकी यह उदासी भरी बातें सुनकर उनके साथ रागनी भी बहुत हैरान हुई!
"जानता हूं… बेटा! जो भी तुम्हारे साथ हो रहा है, सही नहीं हो रहा! लेकिन उससे इस तरह हार जाना.. यह भी तो सही नहीं! यह जिंदगी है ,यह इसी तरह हमें परखती है.., कभी पथरीले राहों पर तो कभी आसपास के लोगों के दिए तानों पर बस यह हमारे ऊपर है कि, हमें उनके इशारों पर टूटना है या अपने दम पर सिमटना है …!"कृष्णकांत जी ने उसका चेहरा अपनी और करके उसकी आंखों में देखकर कहा! जहां देखकर उसके मन को एक गहरी शांति मिली उनकी आंखों में हमेशा निश्छल प्रेम अपने लिए उसे हमेशा नजर आया।
"देखा …मैं भी तो तुझे यही समझ रही थी…! लेकिन पापा…! इसे आपकी बातें ज्यादा अच्छे से समझ आती है …मेरी तो यह सुनती ही नहीं …!"रागिनी साधना को नकली नाराजगी दिखाते हुए बोली! जिसे देख उनके साथ साधना भी मुस्कुराने लगी!
"बेटा! तुम इसी तरह मुस्कुराती रहना… बहुत प्यारी लगती हो और तब तो और प्यारी लगोगी… जब मेरी नन्ही सी साधना अब बड़प्पन धारण कर दुल्हन बनेगी…!" उन्होंने बहुत प्यार से साधना का माथा चूमकर कहा! उनकी बातें सुनकर साधना के चेहरे पर शर्म की लाली बिखर गई।
"और …मेरा क्या पापा! मैं दुल्हन बनकर खूबसूरत नहीं लगूंगी…?!" रागिनी ने मासूमियत से उनकी तरफ देखकर पूछा ! वह उसे देखकर पहले मुस्कुराई फिर बोले," मेरी दोनों बेटियां …परियों से काम नहीं है… दुल्हन बनने के बाद तो तुम दोनों की खूबसूरती में चार चांद लग जाएगा …!"उन्होंने दोनों के सर पर प्यार से हाथ फेरा!
"कृष्णकांत जी! यह रहे आपके चुने हुए सरे गहने …और कुछ मैं छोड़ जा रहा हूं …आपको जो पसंद आए रख लीजिएगा…! बाकी बचा बाद में भिजवा दीजिएगा …!"किशोर जी दरवाजे पर दस्तक देते हुए बोले तो उन सब का ध्यान उनकी तरफ गया!
"आप उन गहनों को यहां छोड़ दीजिए …कुछ देर में… मैं बाकी गहनों को आपके घर भिजवा दूंगा…!" कृष्णकांत जी ने उनकी तरफ मुस्कुरा कर देख कर कहा! किशोर जी उन्हें बाकी का कहना सौंप कर वहां से चले गए!
"बेटा! तुम दोनों इसमें से अपने पसंद का नेकलेस ले लो…! देखो … दोनों बिल्कुल भी ना.. मत कहना मुझे बहुत बुरा लगेगा…! बहुत दिल से मैं तुम दोनों के लिए पसंद किया है, अगर तुम दोनों ने इसे लेने से मना किया तो मैं सोचूंगा कि तुम दोनों के लिए मेरी भावनाओं से बढ़कर किसी और की बातें हैं…!" उन्होंने मायूस सा चेहरा बनाकर उन दोनों के सामने वह सारे हार रख दिए… उनकी बातें सुनकर पहले दोनों हैरान हुई फिर उनका चेहरा देखकर मुस्कुराने लगी!
"चाचा जी! आप कहते हैं… सिर्फ हम दोनों बदमाश हैं! लेकिन बदमाशी करने में आप भी कम नहीं हो…, आप जानते थे कि.. हम मना जरूर करेंगे! इसलिए ऐसे हमें गहने दे रहे हैं तो सुन लीजिए… आपकी खुशी से बढ़कर हमारे लिए और कुछ भी नहीं। अगर आप प्यार से कह दे तो आपके लिए हमारी जान भी हाजिर है …!"साधना मुस्कुराते हुए उनकी तरफ देखकर बोली! लेकिन आंसू उसकी आंखों से छलक ही पड़े वह तुरंत उनसे जाकर लिपट गई, उसके लिपटते ही रागनी भी पीछे नहीं रही।
"मुझे पता है कि… तुम दोनों को किस चीज के लिए कैसे मनाना है …चलो अब जल्दी से अपने-अपने पसंद के गहने अपने-अपने पास रख लो …कल शॉपिंग के लिए भी जाना है! हल्दी मेहंदी और शादी के लिए जोड़ भी तो खरीदने होंगे…!" उन्होंने प्यार से उन दोनों का चेहरा छूकर कहा! दोनों ने शर्म से अपनी नज़रें झुका ली!
तभी कृष्णकांत जी का फोन बजा वह दोनों उनसे अलग हुई उन्होंने अपनी जेब से अपना फोन निकाल कर कॉल आंसर किया।
"जी कहिए… मिथिलेश जी…!" उन्होंने कहा!
"माफ कीजिएगा… कृष्णकांत जी! क्योंकि हमारे पंडित जी ने बच्चों की कुंडली देखकर मुहूर्त निकाल दी है …,हमें आज से ही तैयारी शुरू करनी होगी! आज से 10 दिन बाद का मुहूर्त ध्रुव और रागिनी के शादी के लिए उत्तम है …! और उसके 1 महीने बाद साधना और युग की शादी का मुहूर्त सर्वोत्तम है..!" मिथिलेश जी फोन पर बहुत खुश होकर बोले!
"इसमें माफी मांगने वाली कौन सी बात है…? हमें कोई आपत्ति नहीं है , हम अपनी तरफ से पूरी तैयारी रखेंगे… जब आपका मन हो… आप तब बारात लेकर आ जाइए …,, यह ..कृष्णकांत पलकें बिछाकर आपकी स्वागत करेगा…!" कृष्णकांत जी ने भी बहुत खुश होकर कहा! तो मिथिलेश जी उनकी बातें सुनकर खिलखिला कर हंसने लगे।
"आपका यह.. पूर्ण समर्पण हमें आपकी ओर ..और आकर्षित करता है… कृष्णकांत जी! हमें तो अब पल-पल इंतजार करना मुश्किल हो रहा है , दिल कह रहा है… कब यह मंगल कार्य संपन्न हो और आप और हम एक पक्के रिश्ते में बंध जाएं.. साथ में हमारे बच्चे भी ...हमारे घर में तो दोनों बहू की स्वागत के लिए पूरी तैयारी जोरों शोरों पर है …!मीण जी तो एक पैर पर खड़ी सारी तैयारी करवा रही हैं…!"
"जी… यह तो हमारे लिए बहुत सौभाग्य की बात है कि आप सब हमारी बच्चियों को इतना महत्व दे रहे हैं …आपने मेरी बच्चियों को बहू के रूप में चुनकर मेरा तो जीवन धन्य कर दिया …मेरी सारी चिंताएं दूर कर दी …आपका जितना शुक्रिया अदा करूं …उतना कम है…!"
"प्लीज… आप ऐसा मत कहिए… धन्य तो आपने हमें कर दिया …हमारे बेटों का रिश्ता स्वीकार करके …बस अब उस मंगल मुहूर्त का इंतजार है …जब आपकी बेटियों मेरे घर बहू बनकर पहुंचेंगे…! अरे इन सब में मैं एक बात तो कहना ही भूल गया …मीणा जी ने बड़े प्यार से अपनी होने वाली बहू के लिए कुछ तोहफे भिजवाए हैं …! कृपा कर उन्हें स्वीकार कर लीजिएगा …,हमें बहुत खुशी होगी…,, अब हमें आज्ञा दीजिए…!" मिथिलेश जी बहुत विनम्र होकर बोले और फोन रख दिया, कृष्णकांत जी ने कुछ कहने के लिए मुंह खोला ही था , लेकिन उनका शब्द मुंह से बाहर निकलने से पहले ही उसपर विराम लग गया।
तभी बेल बजाने की आवाज सुनाई दी , वह तीनों कमरे से बाहर निकाल कर हाल में आए। गोमती जी दरवाजा खोल चुकी थी, दरवाजे पर 10 -15 लोग अपने हाथों में बहुत सारे सामानों का बैग पकड़ कर खड़े थे ,उन्हें देखते ही अंदर दाखिल हुए!
"कृष्णकांत जी ! मीणा जी ने आपके लिए भिजवाया है…!" आए हुए मेहमान से एक ने कहा तो कृष्णकांत जी आगे जाकर उनका अभिवादन करने लगे और उन्होंने सारा सामान वही हाल में रखने का इशारा किया तो सब ने अपना अपना सामान हाल में रख दिया!
गोमती जी इतना सारा सामान देखकर बहुत हैरान हुई!
बाकी अगले भाग में…!
