Surjmukhi Singh

Drama Romance Classics

4  

Surjmukhi Singh

Drama Romance Classics

क्या तुम सिर्फ मेरे हो

क्या तुम सिर्फ मेरे हो

6 mins
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"जीविका क्या करती है…? आज भी तेरी वजह से मैं लेट हो गई…! अब सुबह-सुबह मैंम मुझ पर गुस्सा करूंगी…!!" स्कूटी रोककर सर से हेलमेट उतारते हुए ज्योति ने जीविका से शिकायत की जो कि पिछली सीट पर बड़ी बेफिक्री सी बैठी थी!

" अब भैंस की तरह बैठी क्यों है…? उतरना…?!" ज्योति को उसकी लापरवाही पर गुस्सा आया ! उसने अपना हेलमेट उसकी सही जगह पर रखा और स्कूटी के मिरर पर अपना चेहरा देखने लगी।बहुत प्यारा सा चेहरा था। बड़ी-बड़ी आंखें गहरे काले रंग की जिसमें अकेलापन और दर्द साफ देखा जा सकता था। होंठ पतले बिल्कुल गुलाब की पंखुड़ी की तरह । कमर तक आने वाले खूबसूरत गुथे हुए बाल कान के आगे पीछे बाल की पतली पतली लटें जो उसकी खूबसूरती पर चांद चांद लगा रहे थे। लंबाई 5 फुट 9 इंच। सलवार कमीज पहने सादगी से भरी हुई। उसने अपने बैग से लब कोट निकाला और पहनने लगी।

जीविका स्कूटी से उतरकर उसके सामने खड़ी उसकी जल्दबाजी को देखकर मंद मंद मुस्कुरा रही थी। ज्योति की नजर उसपर गई। उसे मुस्कुराते हुई अपनी तरफ देखकर उसने आंखें छोटी कर गुस्से में पूछा ,"अब तुम मुस्कुरा क्यों रही है…?!"

" कुछ नहीं यार…! तू इतना गुस्सा क्यों करती है…? बस.. यह देखकर मुस्कुरा रही हूं…कि , मेरी ज्योति तो पहले से ही खूबसूरत थी। अब डॉक्टर बनने के बाद तो उसकी खूबसूरती में चार चांद लग चुके हैं । तूने कभी आईने में खुद को देखा है , इस डॉक्टर के कोट में तू कितनी प्यारी लगती है…!" जीविका ने उसे पूचकारते हुए उसका गाल खींच कर कहा।

" बस.. बस ..ज्यादा चापलूसी करने की जरूरत नहीं है …! सब पता है मुझे.. अभी जो तेरी वजह से मैं डांट सुनने जा रही हूं ना…! उसके बदले अभी से मक्खन लगा रही है तू… पर याद रख.. अगर उन्होंने मुझ पर ज्यादा गुस्सा किया ना …तो शाम को मैं तुझे देख लूंगी…!" ज्योति ने गुस्से में उसका हाथ अपने गाल से हटकर कहा!फिर बोली," अब अंदर चलेगी या दिन भर यही खड़े रहने का इरादा है…? सारे मरिज इंतजार कर रहे होंगे…! चल…!" ज्योति ने उसे जलती हुई नजरों से देखा और अस्पताल के अंदर जाने लगी!"अरे यार …! रुकना आ तो रही हूं …! जानती है ना, मैं थोड़ी हेल्थी हूं …!"जीविका लगभग उसके पीछे भाग पर उसे तक पहुंच पाना उसके लिए मुश्किल था! क्योंकि वह अच्छी खासी मोटी थी दोनों की उम्र लगभग 25 से 27 की है। लेकिन जीविका ज्योति से ज्यादा बड़ी दिखाई देती है।

ज्योति लंबे कॉरिडोर के बीच से लंबे-लंबे कदम रखते हुए आगे बढ़ रही थी। वहां से गुजर रहे नर्स, वार्ड, बॉय और अन्य डॉक्टर उसे गुड मॉर्निंग विश करते हुए गुजर रहे थे।

" अरे …रुक जाना यार…! कितना तेज चलती है तू…?!" जीविका लगभग हांफ्ती हुई उसकी कदमों का पीछा करने की कोशिश कर रही थी पर नाकाम थी ।"अब.. मैं एक सेकंड भी तेरे लिए नहीं रुकने वाली..!" इतना कहकर ज्योति आगे बढ़ गई !पीछे जीविका और चिल्ला रही थी पर उसने कुछ भी नहीं सुना! ज्योति एक केबिन के बाहर पहुंची दरवाजे पर एक नेम प्लेट लगा था! जिसमें लिखा था 'चीफ डॉक्टर शोभा' ज्योति ने नेम प्लेट पढ़कर एक गहरी सांस ली और दरवाजा लॉक किया।अंदर से" कम इन "का आवाज आया! आवाज में बहुत गंभीरता थी जिसे सुनकर उसे थोड़ी घबराहट हुई! वह दरवाजा खोलकर अंदर गई । सामने एक टेबल के उसपर सीट पर डॉक्टर शोभा जी बैठी हुई थी , जिनकी नजर एक फाइल पर घड़ी हुई थी।

ज्योति केबिन के अंदर दाखिल हुई ," सॉरी… मैं वह.. जीविका के वजह से मैं थोड़ी लेट हो गई…!" उसने अटकत हुए कहा। उन्होंने फाइल से नजरे हटाकर सवालिया नजरों से उसकी तरफ देखा, वह बिल्कुल खामोश सीधी खड़ी हो गई।"इसमें नया क्या है…? मैं कितनी बार कह चुकी हूं ..! उस जीविका का साथ छोड़ दो… रोज उसकी वजह से लेट होती हो और मुझे तुम्हें खरी खोटी सुनाना पड़ता है…!" उन्होंने फाइल टेबल के एक साइड रखकर टेबल के ऊपर अपना हाथ रखते हुए कहा । ज्योति ने सिर्फ हां में अपना सिर हिला दिया!" मैं हर बार यह कहा है ..आज भी कहूंगी …! तुम अपने करियर पर ध्यान दो ज्योति…! जीविका का क्या है …? उसकी लाइफ तो एक हवा की तरह है ..जो गुजर ही रहा है ..! बस, उसे और कुछ नहीं करना। लेकिन तुम्हारी लाइफ उससे अलग है। तुम समझ रही हो ना.. मैं क्या कह रही हूं …?!"उन्होंने बहुत गंभीरता भरे स्वर में कहा और उसकी तरफ देखा ज्योति नज़रें झुकाए खड़ी थी ! उसके पास उनका कहने के लिए कुछ नहीं था ।"बैठो .. और मेरी बातों को ध्यान से सुनो …!" उन्होंने ज्योति की तरफ देखकर सामने की कुर्सी की तरफ इशारा किया। ज्योति मुस्कुराती हुई उनके सामने वाली सीट पर बैठ गई।"ज्योति सॉरी… मैंने आज तुमसे बिना पूछे एक फैसला लिया है… ! मैं चाहती हूं…, तुम मेरी बातों को सुनो… समझो …! उसके बाद फैसला लो …! "उन्होंने बेहद गंभीर होकर कहा! उनकी बातें सुनकर ज्योति को थोड़ी घबराहट होने लगी!" क्या.. क्या.. फैसला लिया है आपने मेरे लिए…??!" उसने लड़खड़ाते हुए लफ्जों में पूछा!

"मैं अपनी फैसले के बारे में बताने से पहले तुमसे कुछ पूछना चाहती हूं…?!" उन्होंने ज्योति से नज़रे मिलाकर पूछा ।"जी पूछिए…?!" उसने भी उनकी तरफ देखा!" तुम क्या चाहती हो…!" उन्होंने एकदम से पूछा!

" मतलब…?!" वह चौंक गई !"मतलब यह कि … तुम अपनी जिंदगी में क्या चाहती हो…? क्या तुम्हें इसी तरह बेमकसद जिंदगी जीना है या खुद के लिए कुछ बेहतर करना चाहती हो …!" उनकी बातें सुनकर ज्योति समझ गई कि वह अपनी बातें किस तरफ लेकर जा रही हैं।

"मैंम आप मेरे लिए बहुत जरूरी हो…! मेरी जिंदगी में मुझे कब क्या करना चाहिए और क्या करना मेरे लिए गलत है… इसका सही फैसला मैं हमेशा आप पर छोड़ा है…! और आपके लिए हर फैसले पर मुझे हमेशा गर्व रहा है ..! आप हमेशा से ही मेरी आदर्श थी और हैं। आपके अलावा मैंने यह हक सिर्फ अपनी मम्मी को दिया था, लेकिन मैं उनसे निराश हूं। आगे उम्मीद आपसे है… आपका जो भी फैसला होगा मेरे लिए सही होगा…!" उसने बहुत गर्व से उनकी तरफ देखकर कहा तो उन्होंने मुस्कुरा कर उसके हाथ पर अपना हाथ रख ।"मुझे पता था …तुम्हारा जवाब यही होगा! तो मैं अपना फैसला तुम्हें बताती हूं ...लेकिन तुम्हारे सामने दो चीज रहेगी … उनमें से तुम्हें एक को चुना है । यह फैसला मैंने बहुत सोच समझ कर लिया है । मैंने तुम्हें सिर्फ अपनी बेटी कहा, नहीं माना है । इसलिए इस फैसले को लेने से पहले मैंने इसे हजार बार पर का और इसे जरूरी पाया…!"" तो क्या फैसला लिया है आपने…?!" ज्योति अपना जिज्ञासा रोक नहीं पाई उसने उन्हें बीच में रोकते हुए पूछा !

"यही कि तुम्हें प्रकाश को एक मौका देना चाहिए…! अपनी शादी और रिश्ते को एक बार संभलने का मौका दो …!" उन्होंने बहुत गौर से उसका चेहरा देखकर कहा।

"नहीं..! यह कभी नहीं हो सकता…!" वह उनकी बातें सुनकर परेशान हो गई ! उसकी खूबसूरती से दमकता चेहरा अब पीला पड़ने लगा।

" मैं उस प्रकाश को कोई मौका नहीं दूंगी… मेरी जिंदगी में आने के लिए उसे तो… मैं अपनी आखिरी सांसों तक नहीं अपनाऊंगी…!" ज्योति ने बहुत गुस्से में कहा! उसकी आंखें पूरी तरह लाल हो चुकी थी, जिसमें प्रकाश के लिए नफरत और अपने लिए एक दर्द साफ नजर आ रहा था !


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