Surjmukhi Singh

Romance Classics

4  

Surjmukhi Singh

Romance Classics

दर्द-ए-इश्क -4

दर्द-ए-इश्क -4

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गोमती की आंखें फाड़ फाड़ कर सारी चीज देखने लगी ,बहुत सारे शॉपिंग बैग थे। कई कार्टून थे , जो की काफी भारी थे और दो थालियों में बहुत सारे गहने थे । गोमती जी बहुत लालच भरी नजरों से सारी चीजों को एक-एक कर देखने लगी, फिर वह गहनों की थाली के पास आई तो मेहमानों ने उन्हें बताया की ,"नारंगी रंग वाली थाली के सारे गाने साधना के लिए है और गुलाबी रंग वाली थाली में रखे सारे गहने रागनी के हैं …"उन्होंने और सारी चीजों की जानकारियां दी और वहां से चले गए!साधना और रागिनी के लिए बहुत सारी चीज आई हुई थी गोमती जी खुद एक-एक कर सारी चीजों को देखने लगी! उन्होंने सबसे पहले एक बड़ा सा कार्टून था, जिसको खोल जिसके अंदर बहुत सारी खूबसूरत साड़ियां थी …जिस पर गोमती जी का नाम लिखा हुआ था …उसे देखकर वह बहुत खुश हुई ! उन्होंने दूसरा कार्टुन खोला तो उसपर कृष्णकांत जी का नाम था ,उनके लिए भी बहुत कीमती शेरवानी रखे थे उसमें और जब उन्होंने दो शॉपिंग बैग को झांक कर देखा तो उनकी आंखें फटी की फटी रह गई।लेकिन यह सब देखकर कृष्णकांत जी को अच्छा नहीं लग रहा था, लेकिन वह कुछ बोल भी नहीं पा रहे थे,, क्योंकि मीणा जी ने इन सारी चीजों को उपहार के रूप में भेजा था।

"सारी चीज तो सच में बेहद कीमती है… पर यह मीणा जी ने बिल्कुल अच्छा नहीं किया! उस साधना के लिए इतनी भारी-भारी गहने और मेरी रागिनी के लिए कितनी हल्के-फुल्के गहने भिजवाए हैं उन्होंने …! और यह शादी का जोड़ा ही देख लो… मेरी रागिनी का शादी का जोड़ा गुलाबी रंग का कितना सामान्य है …और उसका कितना चमकीला और कीमती है…!" गोमती जी मीणा जी के भेज तोहफे को उसकी कीमत अनुसार रागिनी और साधना के बीच तुलना कर रही थी, उन्हें रागिनी के लिए आए हर चीज कम नजर आ रहा था और साधना के लिए आया हर चीज ज्यादा।वही खन्ना निवास में पूरी चहल-पहल मची थी ,घर के सारे लोग शादी की तैयारी में जुटे हुए थे ।

पहले पूरे परिवार से परिचय कर लेते हैं…बड़ा आलीशान पैलेस जैसा घर जिसके अंदर रहने वाले लोगों की संख्या अधिक नहीं थी, फिर भी उसकी इसकी शोभा देखने लायक थी ! घर के अंदर दाखिल होते ही मेन गेट को पार करने से पहले बीच में ही बड़ा सा गार्डन, दाएं तरफ स्विमिंग पूल, उसके सामने एक खूबसूरत सा पैलेस।

और आगे बढ़ने पर मुख्य द्वार पर एक प्यारा सा वॉटरफॉल, इसके आगे बढ़ने पर एक प्यारा सा हॉल जिसके अंदर 100 लोग आराम से बैठ सकते हैं। हाॅल पूरी तरह एंटीक चीजों से सजी हुई , सोफे पर बैठे मिथिलेश जी जिनका साड़ी का बहुत बड़ा कारोबार है। वो फोन पर किसी से बात करने में व्यस्त थे।

"यह क्या कर रहे हैं आप लोग… मेरे घर को ऐसा सजाओं की माता लक्ष्मी भी स्वयं प्रकट होकर आने पर विवश हो जाएं… मैं नहीं चाहती! मेरी बहू को मेरे घर में जरा सी कमी नजर आए, हर को ना सजा दो…!" इनसे मिलिए यह इस घर की मालकिन! लेकिन इनके अलावा भी घर में कोई है जिनके इशारे के बगैर यहां कुछ नहीं होता!

बुआ जी जो इस घर में मंथरा का काम करती हैं । इसलिए इन्हें नाम दिया जा रहा है, मंथरा क्योंकि इनका स्वभाव ही ऐसा है । पूरा घर उनके हिसाब से चले तो ही ठीक ,कोई भी अपनी मन का नहीं कर सकता। शिवाय एक के, वह है इस घर का लाडला और सब का सिर चढ़ा घर का सबसे छोटा बेटा युग जिसकी शादी साधना से तय हुई है।

वह भी इसी हाॅल में मौजूद अपने किसी दोस्त से बात करने में व्यस्त बैठा है। उन सबके बीच बेहद शांत और गंभीर अपने काम में मन लगाया हुआ ध्रुव भी बैठा है, जो कि अपने काबिलियत और स्वभाव के लिए जाना जाता है। इस घर में कहने को तो इस घर का सबसे बड़ा बेटा और सबसे ज्यादा जिम्मेदार है, फिर भी घर में उसकी कीमत एक मैनेजर या नौकर से काम नहीं।

रहने को तो मिथिलेश जी के बड़े भाई का बेटा है, लेकिन उनके और उनकी पत्नी का देहांत के बाद मिथिलेश जी ने उसे गोद ले लिया, पर बुआ जी के आगे इस घर में किसी की नहीं चलती। इसलिए उन्होंने जिसे जो पद दिया, उसे उसी के अनुसार जीना पड़ रहा है यहां पर।"सुनिए जी! आपने वह सारे तोहफे कृष्णकांत जी के घर पर भिजवा दिए ना…!" मीणा जी ने मिथिलेश जी के सामने आकर पूछा।"जी हां …भिजवा दिया है, वह वहां पहुंच भी चुका सेवक का फोन आया था वह घर लौट रहे हैं …!"उन्होंने मुस्कुरा कर जवाब दिया!"अरे कब खत्म होगा… तुम लोगों का ताम-झाम कब…? मैं अपनी छोटी बहू को देख पाऊंगी…!अरे यहां मेरी कोई सुनने वाला है…?!" बुआ जी नाराज होते हुए अपने आसपास देखते हुए बोली!

"बुआ जी! आप नाराज क्यों होती हैं…? हम सब आपकी बातें सुन रहे हैं …बस कुछ दिन और इंतजार कर लीजिए… आपकी लाडली साधना बहुत जल्द इस घर में आएगी …तब उसे अपने पलकों पर बिठा कर रखिएगा…!" मीणा जी मुस्कुराते हुए उनके पास आकर बोली।"उसने जो भी किया है अशोक के साथ… उसके लिए उसे न किसी का प्यार पाने का हक है ना …किसी के पलकों पर बैठने का …एक बार इस घर की दहलीज पार करके घर के अंदर आ जाए… फिर वह पल-पल सुकून के लिए तरसेगी …!"युग गुस्से में बड़बड़ाया!"कुछ कहा तुमने…?!" उसके बगल में बैठे ध्रुव ने उसकी तरफ देख कर पूछा तो वह डर गया ,उसने सोचा कहीं उसने उसकी बातें सुना लिया हो।

बाकी अगले भाग में…!


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