Surjmukhi Singh

Romance Others

4  

Surjmukhi Singh

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किसी की अमानत हो तुम-4

किसी की अमानत हो तुम-4

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"इसी बात का डर था मुझे …,आखिर रेंजर ने हमारे बेटे को निशाना बना ही लिया उसे लड़की के वजह से…! बेचारा उसकी वजह से हमारा बेटा इस हाल में पहुंचा है, मैं उसे कभी माफ नहीं करूंगी …!'उन्होंने बहुत गुस्से में पीहू को याद करते हुए कहा!


"एनीवे हमें पहले हॉस्पिटल पहुंचना चाहिए …!'उमेश जी ने बहुत परेशान होकर कहा और वहां से बाहर का रुख किया!


"मैं भी चलती हूं …!"निभा जी भी उनके पीछे-पीछे चल पड़ी ,थोड़ी ही देर में वह लोग दिल्ली के सिटी हॉस्पिटल पहुंचे दोनों बहुत बेचैन होकर रिसेप्शन के पास आए, तो उन्हें पता चला कि ऋषभ को सेकंड फ्लोर आईसीयू रूम 28 में रखा गया है ,वह लोग बिना एक पल गंवाए वहां से उस रूम की ओर भागे, उन्होंने लिफ्ट की तरफ रुख किया।


लिफ्ट के अंदर दाखिल होते ही उन्होंने सेकंड फ्लोर का बटन दबाया ,बटन दबाकर वह काफी बेचैनी से ऊपर पहुंचाने का इंतजार करने लगे , वही निभाजी की आंखें पूरी तरह नाम थी, उमेश जी के माथे पर परेशानी की घनी बदल छाई थी।


वह लिफ्ट से बाहर निकले और 28 नंबर का आईसीयू रूम ढूंढते हुए आगे बढ़ने लगे, तभी आगे बढ़ते हुए अचानक उनके कदम ठहर गए, वह रूम नंबर 28 के आगे बढ़ चुके थे, फिर से पीछे आए।


"जगत कैसे हुआ यह सब …?!"रूम के सामने आते ही निभा जी ने दरवाजे पर खड़े जगत का कॉलर गुस्से में पकड़ कर पूछा!


"माफ करिएगा मैडम जी…! हमें पता नहीं, यह सब कैसे हो गया …!हम तो उन्हें लेने ही जा रहे थे की, पता चला उनका एक्सीडेंट हो चुका है …!"जगत ने नजरे झुका कर डरते हुए कहा!


" तो अब तक कहां मरे हुए थे…? तुम तुम्हें मैंने ऋषभ को लेने के लिए भेजा था ना,, तुम उसके साथ क्यों नहीं थे और यह सब कैसे हो गया…?!" उन्होंने गुस्से में जगत को थप्पड़ मारते हुए कहा! उनके हाथ का जोरदार थप्पड़ खाकर वह खुद को संभाल न सका और पीछे की दीवार से टकरा गया, फिर भी उसने कुछ नहीं कहा! सर झुकाए उनके सामने खड़ा रहा!


जगत उनके वफादार नौकर और ऋषभ का दोस्त भी था ,इसलिए उसकी इतनी सेवा की जा रही थी!🥹



"बस भी करिए निभा जी…! यह सारी बातें हम बाद में भी कर सकते हैं ,पहले हमें ऋषभ को देखना चाहिए…!" उमेश जी ने बहुत बेचैन होकर आईसीयू रूम के अंदर झांकते हुए कहा! तो निभा जी ने हां में सर हिलाया और रूम का दरवाजा खोलकर अंदर दाखिल हुए।


अंदर बेड पर ऋषभ पूरी तरह जख्मी पट्टीयों से लिपटा हुआ ,ऑक्सीजन मास्क के सहारे सांस ले रहा था।

उसे देखते ही उमेश जी और निभा जी की आंखें नम हो गई, अपने बेटे को इस हालत में देखकर उनका दिल फट सा गया।

"किसने की हमारे बच्चे की ऐसी हालत, मैं उसे छोडूंगी नहीं…!" वह बहुत गुस्से में ऋषभ के पास जाते हुए बोली!


"अगर ऋषभ इस हाल में यहां है, तो पीहू कहां है…?!" ऋषभ की ऐसी हालत देखकर उमेश जी को पीहू की फिक्र हुई! वही निभा जी ने उनके मुंह से पीहू का नाम सुनकर उन्हें बहुत गुस्से में घुर कर देखा।


"हमारे ऋषभ की यह हाल है, और आपको अब भी उस लड़की की फिक्र है …?क्यों…?!" उन्होंने बहुत गुस्से में सवाल किया!


"निभा जी ,आप समझ क्यों नहीं रही? जब वह लोग ऋषभ के साथ यह कर सकते हैं, तो आपको समझ क्यों नहीं आता पीहू के साथ क्या करेंगे …?और कहां है वह…? भूलिए मत, हमारा ऋषभ उससे प्यार करता है ,,हमारी होने वाली बहू है वह …!"उमेश जी ने नाराजगी भरी नजरों से उनकी तरफ देखकर कहा! निभा जी का चेहरा गुस्से में लाल हो गया!


"नो वे …वह हमारे घर की बहू कभी नहीं हो सकती… और रही बात ऋषभ की उससे प्यार की, तो यह सिर्फ पागलपन है,, उसकी बातों में बह गया है हमारा बेटा…!" उन्होंने गुस्से में उमेश जी के सामने आकर कहा!


"आपको समझना सच में दीवार पर कर करने के जैसा है ,एनीवे मुझे इस वक्त पीहू की फिक्र है! न जाने वह बच्ची किस हाल में होगी, मैं यकीन से कह सकता हूं… ऋषभ का एक्सीडेंट रेंजर के घर वालों ने ही करवाया होगा…!" उन्होंने गंभीरता से कुछ सोचते हुए कहा!


"एक्जेक्टली… यह सब कुछ उस रेंजर के घर वालों ने ही किया है.. लेकिन वजह है सिर्फ वह लड़की! अब बस बहुत हो गया ,मैं आज ही अपने बेटे को लेकर यह शहर ही छोड़ दूंगी,, ना हम रहेंगे यहां पर ,ना ऋषभ उसके प्रति दीवानगी दिखाएगा…! और ना वह लोग इसके जान के प्यासे बनेंगे…!" निभा जी ने ऋषभ के सर पर हाथ फेरते हुए कहा! उसकी हालत देखकर उनकी आंखों से आंसू छलक आए!



"आप इतनी भी सेल्फिश हो जाएगी मैंने सोचा नहीं था…, आपको सिर्फ ऋषभ की फिक्र है…? लेकिन आप यह भूल रही हैं कि,, पीहू आपके बेटे की जिंदगी है ,अगर उसे एक खरोच भी आई तो ऋषभ पर क्या गुजरेगी और वह क्या कर गुजरेगा …आप सोच भी नहीं सकती …?!"उन्होंने उनके चेहरे को गौर से देखते हुए कहा!


इन दोनों की बहस इसी तरह जारी रही, तभी डॉक्टर दो नर्स के साथ अंदर दाखिल हुए, उन्हें देखते ही उन दोनों ने अपनी बहसबाजी बंद कर दी।


"डॉक्टर, कैसा है हमारा ऋषभ…?!" उमेश जी बहुत बेचैन होकर डॉक्टर के सामने आए!


"हां, कहिए ना डॉक्टर …अब कैसा है हमारा बेटा…?!" निभा जी भी ऋषभ का हाल जानने की जिज्ञासा लिए उनके सामने आई।


"सॉरी… मिस्टर एंड मिसेज राजावत! हमने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की… लेकिन…!" डॉक्टर ने गंभीरता से ऋषभ की तरफ देखकर कहा और बोलते हुए रुक गए!



"लेकिन… क्या डॉक्टर…?!" उमेश जी की बेचैनी अब डर में बदलने लगी!


बाकी अगले भाग में…!


क्रमशः


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