Surjmukhi Singh

Others

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Surjmukhi Singh

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क्या तुम सिर्फ मेरे हो 1-3

क्या तुम सिर्फ मेरे हो 1-3

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नहीं…! यह कभी नहीं हो सकता…!" वह उनकी बातें सुनकर परेशान हो गई! उसकी खूबसूरती से दमकता चेहरा अब पीला पड़ने लगा!


"मैं उस प्रकाश को कोई मौका नहीं दूंगी…! मेरी जिंदगी में उसे तो मैं अपनी आखिरी सांसों तक नहीं अपनाऊंगी …!" ज्योति ने बहुत गुस्से में कहा । उसकी आंखें पूरी तरह लाल हो चुकी थी। जिसमें प्रकाश के लिए नफरत और अपने लिए एक दर्द साफ नजर आ रहा था।


"तुम कब तक अकेली खुद के लिए लड़ती रहोगी …! अब तुम्हें आगे अपने लिए कुछ सोचना चाहिए …!" उन्होंने बहुत गौर से उसका चेहरा देखा और मुस्कुराते हुए उसके हाथ के ऊपर अपना हाथ रख कर कहा। वह पहले ही जानती थी कि उनका पहला फैसला सुनकर वह कुछ ऐसा ही रिएक्ट करेगी।


"अगर आपने यही फैसला लिया है मेरे लिए… तो आज पहली बार मैं इस फैसले को मानने से इंकार करती हूं ..! मैं वह नरक की जिंदगी फिर से नहीं जी सकती …!" उसने खड़े होकर गुस्से में टेबल पर हाथ पटकते हुए कहा ।


"वेरी गुड …! मुझे तुमसे यही उम्मीद थी …!"उन्होंने मुस्कुराते हुए उसकी तरफ देखकर कहा! वह हैरानी से उनकी तरफ देखने लगी!


"तुम सोच रही हो कि … मैं तुम्हें वेरी गुड क्यों कहा ? मुझे खुशी है कि तुम सच में अपनी जिंदगी बदलना चाहती हो…! बीते कल को भूलकर आज में हो..! मैं तो सिर्फ तुम्हारी परीक्षा ले रही थी.. जिसमें तुम पास हुई…!" उन्होंने खुश होकर कहा और उसके पास आई!


"ज्योति! मैं बहुत खुश हूं तुमसे..! मेरी जिंदगी में सिर्फ तुम हो जो मुझ पर आंख मूंद कर भरोसा करती हो..! वरना मेरे अपने भी मेरे नहीं…! जानती हूं ,कहीं ना कहीं हमारी कहानी एक जैसी है..! लेकिन एक बात याद रखना…! दोस्त ,रिश्तेदार एक हद तक ही साथ रहते हैं …! अगर कोई साथ है तो वह हम खुद हैं…! दुख हो या सुख हो.. सबसे पहले उसका सामना हमें करना पड़ता है…! मैंने किताबों से पहले जिंदगी को पढ़ा है... और अब तक जिंदगी ने ऐसे सबक सीखने हैं…! जो हजारों किताबें नहीं सिखा सकते…!" उन्होंने ज्योति को सीट पर बिठाया और उन्होंने उसके आंसुओं को साफ किया।


"इन आंसुओं को अब अलविदा कह दो…! और अपने लिए मुस्कुराहट के दामन थाम लो…! मैं चाहती हूं, तुम अपनी जिंदगी में एक उम्मीद की नई किरण ढूंढ लो …!" ज्योति उनके कहने का मतलब समझ गई।


" बस .., आप आगे कुछ नहीं कहेंगे…!" उसने कसकर उनका हाथ पकड़ते हुए कहा!


"मैं समझ सकती हूं ज्योति…! तुम्हें मेरे इन फैसलों की उम्मीद नहीं होगी…! लेकिन अब यह फैसला लेना बहुत जरूरी है…!" उन्होंने ज्योति का चेहरा अपने हथेलियां के बीच रखते हुए कहा!


"मुझे बिल्कुल भी भरोसा नहीं हो रहा कि… आप मेरे लिए ऐसे फैसले लेंगे…? मैंने कभी नहीं सोचा था की.., इन सब बातों को आपके मुंह से सुनुंगी..! पर शायद आप भूल रही हैं कि मेरा गुजरा कल कैसा था…? आप ऐसा सोच भी कैसे सकती हैं कि मैं वही जिंदगी एक बार फिर जीना चाहूंगी…! क्या आपको मेरा दर्द याद नहीं आता..? उसे इंसान की बेरहम याद नहीं आती…? और वह ममता में आंधी वह मां …? क्या आपको वह भी याद नहीं आती…? अब आगे कुछ भी हो…! मैं वह गलती दोबारा नहीं दोहराऊंगी …! एक फंदे में मुझे जबरदस्ती फसाया गया , दूसरा फंदा मैं अपनी मर्जी से अपने गले में नहीं डालूंगी …!"वो नाराजगी से उनकी तरफ देखते हुए बोली।


"मैं जानती हूं…, तुम्हारे लिए यह सब करना मुश्किल होगा…! लेकिन बेटा..! अब आगे बढ़ाना है तुम्हें…!" उन्होंने फिर एक बार उसे समझाना चाह !


"बस…! अब एक शब्द नहीं कहेंगे आप..! आप पर मुझे हमेशा खुद से ज्यादा भरोसा था है.. और हमेशा रहेगा। आपका हर फैसला भी मुझे मंजूर है…! लेकिन इन दो फैसलों के लिए मैं इनकार करती हूं…! मेरी पहली शादी ने मुझे बहुत बर्बाद किया है…! अब आगे बर्बाद होने की मुझ में ताकत नहीं! ना ही ज़िंदगी से कोई नई उम्मीद बची है…!!" उसने गुस्से में उठकर कहा !


"बेटा.. प्लीज…! एक बार मेरी बात को समझो..! "


"अब ना मुझे कुछ सुनना है…, ना समझना है…! मैंने फैसला कर लिया है…! मैं अकेली हूं.., अकेली ही आगे भी जी लूंगी…! कोई नहीं चाहिए मुझे मेरे लिए …, कोई नहीं बना मेरे लिए …!"उसने बहुत गुस्से में रोते हुए कहा और उनके केबिन से बाहर निकल गई!


" बेटा ..! रुको तो …एक बार ठंडे दिमाग से सोचो…!" शोभा जी पीछे से चिल्लाती रह गई ! लेकिन उसने मुड़ कर नहीं देखा।


जारी…!




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