दो और आधा .. ढाई छाले
दो और आधा .. ढाई छाले


बहुत ध्यान रखने पर भी पता नही कैसे . गर्म तेल की दो बूंदो की छींट कलाई के पीछे पड गयी ' अचानक से हाथ पीछे झटक गया ' तेज जलन से परेशान मैने हाथ नल के बहते पानी के नीचे कर दिया।
मन मे पता नहीं क्या आया कि बड़े बेटे को जाकर बोला "अरे . देखो मेरा हाथ जल गया" कम्प्यूटर पर काम करते वेटे ने बिना ऑख उठाए कहा " कैसे ?" और उत्तर देने से पहले ही बोला " दवाई लगा लीजिए और फिर अपना काम करने लगा।"
हम गृहणियों को पता नहीं क्यों . कभी कभी बच्चों सी ख्वाईश होने लगती है कि कोई हमें भी दुलराए . शायद इसी आशा से मै ने पति के पास जा कर बोला, देखो "मेरा हाथ जल गया है मोबाइल से बिना ऑख ऊपर किए अभि बोले "क्या तुम भी इतने सालों में काम करना नहीं सीख पाई हो " यह सुनते ही मेरी आंखे झलझला उठी ' दर्द ' पहले से बढ़ गया . छोटे बेटे के पास जाने की हिम्मत ही नही हुई . लेकिन उसने शायद सब सुन लिया था। पास आया रुआ सा मुंह बनाया और बोला
"मम्मी "आप पूरी मत बनाया करो" सुनते ही आंखों की सीमा को लांघती दो बूंदों को किसी तरह से रो
का और मुँह झुपाती रसोई में पूरियां तलने लगी।
पूरी तलते समय . कलाई देखी स्वर्ण सी गोरी त्वचा पर दो पन्ना और एक छोटा मोती चमक रहा था . बेसाख्ता . मुंह से निकला ' ओह ' छाला निकल आया ये और आफत . मन रोने को हो आया . अपने आप को समझाया . इतना नकारात्मक नहीं होते , वे सब प्यार करते है बस थोड़ा व्यस्त थे इसलिए ध्यान नहीं दिया। अब वो दो छाले और छोटा एक मुझे अपने दोनो बच्चों सरीखे लगने लगे . मैने दूसरे हाथ की ऊंगली से उन्हें धीरे से सहलाया . ऐसा लगा जैसे तुरन्त पैदा हुए छोटे बेटे की ऊंगली को स्पर्श कर रही हूँ. ' मैं हौले से मुस्करा कर अपने काम में लग गयी परन्तु ये चिन्ता बराबर थी कि ये फटेगे तो जलन होगी और काम में दिक्कत भी ।
रात के दस बज चुके थे। सारे काम निपटा कर . मैं प्रतिलिपि पर अजय सिंह जीं की हनीमून कहानी पढ रही थी अचानक मेरी नजर कलाई पर गयी . अरे ये क्या . छाले तो सपाट बैठ गए थे ' काम करते करते कब ये दब गय पता ही नहीं चला ' ऐसा लग रहा था जैसे . बच्चे थक कर गहरी नींद में सो रहे हो . उसने लंबी सुकून की सांस ली और कमरे की लाइट आफ कर दी।