Pooja Gupta(Preet)

Romance

4.8  

Pooja Gupta(Preet)

Romance

दिल की कलम से

दिल की कलम से

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उसे लिखना पसंद था और मुझे वो। पापा के दोस्त की बेटी थी वो। बचपन से हम एक ही स्कूल में पढ़ते आये।वो हर काम में परफेक्ट थी, चाहे घर के काम हो या बाहर के स्कूल में भी बहुत एक्टिव -क्विज हो या डान्स सबमें आगे। हाई स्कूल से लिखने का शौक भी लग गया। जहाँ बाकि लड़कियाँ अपनी खूबसूरती की तारीफ से खुश हो जाती वहीं उसे कोई फर्क ही नहीं पड़ता था कि वो कैसी दिखती है। हमेशा सिंपल रहती, पर अगर कोई उसके लिखी किसी कहानी या आर्टिकल की तारीफ कर दे तो ख़ुशी से चहक उठती। मैंने भी समझ लिया की अगर इसको इम्प्रेस करना है तो पढ़ना ही पड़ेगा। मैंने भी कह दिया मुझे भी पढ़ने का शौक है। बस उसके बाद से वो जब भी कुछ नया लिखती उसकी एक कॉपी मुझे देती। मुझे तो पढ़ने में ज़रा भी इंट्रेस्ट नहीं था, बस ऐसे ही कह दिया था। अब वो जब भी कुछ लिख कर देती मैं ४ -५ लाइन्स पड़ता और बस अगले दिन बहुत तारीफ करता। वो खुश हो जाती। यही सिलसिला चलता रहा, हमारी बातें मुलाकातें भी बढ़ती गयी। मैं हमेशा अपने बिंदास और मुखर होने का रौब दिखता। उसे कहता की जीवन ऐसे गुमसुम ख़ामोशी से नहीं निकलता।हर बात के लिए बोलना पड़ता है। वो चुपचाप मुस्कुरा देती।

स्कूल के बाद कॉलेज आ गया और पढाई भी पूरी हो गयी। मेरी जॉब लगी तो घर वालों ने शादी की बात छेड़ दी। जब घरवालों ने अपनी पसंद के रूप में उसकी फोटो दिखाई तो दिल ख़ुशी से झूम उठा। उसको बड़े गुरुर के साथ बताया की देखो मैंने अपने घर वालों को सब बता दिया और तुमसे शादी के लिए मना लिया। तुम बस खामोश ही रहो तुमसे कुछ नहीं होगा। वो कुछ नहीं बोली बस मुस्कुरा दी। कुछ दिनों में सगाई और फिर कुछ महीनो में शादी भी हो गयी। उसका लिखना जारी रहा। वो लिख कर भेजती और में २ लाइन पढ़ कर वही रटा-रटाया जवाब दे देता की अच्छा लिखती हो। सगाई के बाद तो और लापरवाह हो गया था .. सोचा अब तो वो मिल ही गयी अब इम्प्रेस करने की ज़रूरत नहीं। कई बार तो बिना पढ़े ही कह देता अच्छा लिखती हो, थोड़ा और सुधार करो। वो हर बार मेरे जवाब पर मुस्कुरा देती और मैं अपनी होशियारी पर।

शादी के बाद उसका एक नया रूप देखा, जैसे स्कूल में हर चीज़ में परफेक्ट थी वैसे ही परफेक्शन के साथ घर संभाल लिया था। अच्छी बीवी बनने के सारे गुण थे उसमें। कभी कोई शिकायत नहीं करती। हर काम की ज़िम्मेदारी खुद पर ले रखी थी..मैं बहुत खुश था उसे हमसफ़र के रूप में पाकर। उसके लिखने का सिलसिला अब ही जारी था। मैं भी वही करता उसके दिये हुए पेपर को थोड़ा ही पढ़ता और अलमारी में रख देता, उसे कहता अच्छा लिखती हो।

ऐसे ही २ साल बीत गए। एक दिन उसने फिर कुछ लिखा और हमेशा की तरह मुझे पढ़ने को दिया। मैंने शुरू की २ लाइन पढ़ी। जीवन पर कुछ लिखा था। मेरा आगे पढ़ने का कोई विचार नहीं था, इसलिए उस पेपर को ऐसै ही रख दिया और अगली सुबह उससे कह दिया की अच्छा लिखती हो। पहली बार उसकी आँखों में आँसू थे। मैं ऑफिस चला गया। दिन भर मन अपराध बोध से भरा रहा। वो इतनी भली थी और मैं हमेशा उससे झूठ बोलता रहा। तय कर लिया की आज उसे सब कुछ सच बता दूँगा और ये भी की ये सब उसके प्यार के लिए ही किया। उस झूठ के कारण ही आज हम साथ हैं। घर जाकर देखा तो फूल सा चेहरा मुरझाया हुआ था। खाने के बाद उसको पास बिठाया और सच बता दिया की मुझे पढ़ने का शौक कभी था ही नहीं। ये सब तो सिर्फ उसे इम्प्रेस करने के लिए किया था और इसी झूठ के कारण हमारी शादी हो पायी थी।

वो सब कुछ ख़ामोशी से सुनती रही।

फिर बोली- मैं जानती हूँ की आपकी पढ़ने में बिलकुल रूचि नहीं थी। और ये भी जानती हूँ की आपने कभी मेरा लिखा हुआ कुछ पढ़ा ही नहीं। पढ़ा होता तो आपको पता होता की हमारी शादी कैसे हुई . . और भी बहुत कुछ।

मुझे लगा था की शायद अब शादी के २ साल बाद, आप एक बार तो मेरा लिखा पढ़ लेंगे। एक बार ही सही मुझसे सच बोलेंगे। पर आपने इतने सालों में मुझसे कभी सच नहीं बोला।

मैंने उस से माफ़ी मांगी पर वो रोते-रोते सो गयी ।मैंने अलमारी से निकाल कर उसकी लिखे पेपर्स पढ़ने शुरू किये मन पछतावे से भर आया। पहली बार जो उसने मुझे लिख कर दिया था वो आर्टिकल नहीं लव लेटर था। उसके बाद तो उसके लिखे हर कागज़ पर बस मेरा ही ज़िक्र था। वो इतने सालों से सिर्फ मेरे लिए ही लिखती रही। मेरी पसंद-नापसंद, मेरे सुख-दुख, हमारी दोस्ती, प्यार , शादी ; उसने सब कुछ लिखा पर मैने कभी पढ़ा ही नहीं।

यहाँ तक की हमारी शादी की बात भी उसने अपने घर में की थी इसलिए उसके पापा ने रिश्ता भेजा था। मैं खुद पर शर्मिंदा था। कैसे वो मेरी ज़िंदगी की हर उलझन में मेरे साथ थी। बिना कहे ही उसने अपना अथाह प्यार मुझे दे दिया और मैं बस बड़ी बड़ी बातें ही करता रहा। कभी उसके एक शौक, उसकी एक ख़ुशी को नहीं समझ पाया। सबसे आखिरी पेपर हाथ में लिया तो पता चला की जीवन की उत्पत्ति हमारे घर आने वाले नन्हे मेहमान की सूचना थी। जिसके अंत में उसने लिखा था की ये आखरी बार है जब वो कुछ लिख रही है। आज अगर मैंने नहीं पढ़ा तो वो कभी नहीं लिखेगी।

वो गहरी नींद में थी,आज उसकी सादगी और मासूमियत पर और भी ज्यादा प्यार आ रहा था। खुद से वादा किया की अपनी इतने सालों की गलती को सुधारना है।

आज १० साल हो गए शादी को उसका लिखने का शौक अब उसका प्रोफेशन बन चुका है। कई किताबें पब्लिश हो गयीं। अब तो एक जानी-मानी लेखिका बन चुकी है वो। अब भी कभी-कभी मेरे लिए लिखती है ..

और मैं तो अब उसकी लिखी किताबों के इंडेक्स भी ४ बार पढ़ता हूँ।


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