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रोज़ की तरह आज भी बस में अपनी सीट पर जा कर बैठी ही थी की सामने खड़े लड़के पर नज़र पड़ी वो लगातार मुझे ही देखे जा रहा था। पिछले ५-६ दिनों से ये रोज़ ही हो रहा था। मेरे ठाणे से मुंबई के सफर में हर वक़्त उसकी नज़रें मुझ पर होतीं। वो अक्सर मेरे सामने की साइड ही बैठता मेरे पास की सीट खाली होती तो भी कभी मेरे पास नहीं बैठा। कुछ अजीब ही लगता जब वो मुझे देखता।आजकल का माहौल देखते हुऐ सतर्क रहना ही अच्छा।मैं बस से उतर कर कई देर तक इधर उधर देखती रही कि कहीं मेरा पीछा तो नहीं कर रहा।इस उम्र के लड़कों क्या भरोसा कब क्या कर बैठै । हर दिन न्यूज़ में एक नई कहानी , अब तो घर से बाहर निकलने में भी डर लगता है।

पिछले कुछ दिन तो इग्नोर किया, पर आज जब ध्यान दिया तो लगा की उसकी नज़र सिर्फ मुझ पर ही रहती है या फिर खिड़की के बाहर। ३५ साल की उम्र और दो बच्चों की माँ बन कर इतना अनुभव तो हो ही चुका था मुझे, की देखने वाली नज़र कैसी है । उम्र में २२ २३ का होगा। चेहरे में मासूमियत थी और नज़रो में शालीनता। फिर भी उसका यूं मुझे ही देखना अजीब लगता था। पर कोई रास्ता नहीं था उसे रोकने का कुछ दिन यही क्रम चलता रहा। फिर उसका आना अचानक बंद हुआ। ५ दिन वो नहीं आया।

 २ दिन की छुट्टी के बाद मंडे वो वापस उसी जगह पर दिखा ,वैसे ही मेरी और घूरता हुआ; पर आज उसकी मासूम आँखे लाल थी चेहरा भी उतरा हुआ, जैसे बहुत बीमार हो। आज उसके पास वाली सीट खाली थी। खुद को रोक नहीं पायी जाकर उस के पास बैठ गयी ।वो पहले तो थोड़ा असहज हुआ, फिर उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गयी ।

मैंने पूछा-"पिछले दिनों दिखे नहीं, बीमार थे? "

उसने कोई जवाब नहीं दिया।

मैंने फिर पूछा-" क्या हुआ तुम ठीक हो?"

सामने से कोई जवाब नहीं ।

अबकी बार मैंने गुस्से से कहा-" रोज़ सामने बैठ कर मुझे घूरते रहते हो तुम्हे शर्म नहीं आती।"

उसने पलट कर मेरी और देखा और अपनी नोट बुक में कुछ लिखा और मेरी और बढ़ा दी ।

लिखा था "मैं बोल-सुन नहीं सकता, आपको जो भी कहना हो लिख दे"।

 मैं मन ही मन अपने व्यवहार पर आहत् हुई। उसकी नोटबुक में लिखा-" बीमार थे"

 उसने भी लिख दिया-" जी वायरल हुआ था अब बेहतर हूँ।"

अगले सवाल के साथ ही लिखने का सिलसिला शुरू हुआ तो अँधेरी पहुँच कर ही रुका। उसने अपनी पूरी ज़िंदगी मेरे साथ साझा कर ली थी। घर में वो और उसके पापा ही थे और कोई नहीं। ४ साल पहले एक एक्सीडेंट में उसने अपनी माँ को खो दिया और अपनी आवाज़ भी। उस हादसे के बाद बोलना सुनना सब बंद।

वो अँधेरी के एक स्पेशल स्कूल में बच्चों को पढ़ाता था। उसकी कहानी सुन कर दिल भर सा गया। सारा दिन ऑफिस में बुझी बुझी रही। रात को भी उसी का ख्याल था। मैंने सोच लिया था अगले दिन उससे पूछूँगी की मुझे ही क्यों देखता था। अगले दिन वो आया तो मैंने इशारे से अपने पास की सीट पर बैठने को कहा । वो मुस्कुरा कर बैठ गया मैंने नोटबुक मांगी तो उसने पेन और नोटबुक दे दी और फिर मुझे देखने लगा। मैंने लिखा-" इतने दिनों से मुझे क्यों देख रहे थे ,बस मैं और भी लोग आते जाते हैं मैं ही क्यों?

 उसने जवाब में कुछ लिखा नहीं। अपनी पॉकेट से वॉलेट निकाला और खोल कर मुझे दिया उसमें एक फोटो थी जिसमें लड़का और उसकी माँ थे।

गौर से देखा तो उसकी माँ का चेहरा मुझ से बहुत मिलता था। बाल बांधने का तरीका , बिंदी, सब कुछ लगभग मेरे जैसा। मैं सोच में पड़ गयी, क्या कहूँ।

उसने अपनी नोटबुक मेरी और बढ़ा दी ।

लिखा था -"माँ तो चली गयीं, उन्हें नहीं देख सकता पर रोज़ कुछ देर आपको देख लेता हूँ तो लगता है माँ को देख लिया ।

फिर नीचे लिखा-" आपको कोई परेशानी हो मेरे ऐसा करने से तो मैं बस चेंज कर लूंगा।" 

मुझे उसकी मासूमियत पर हँसी आ गयी।

"कोई परेशानी नहीं कल से मेरे साथ ही बैठा करो" -लिख कर मैने उसकी नोटबुक वापस कर दी।


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