दर्द का रिश्ता
दर्द का रिश्ता
वो, मैं और दर्द !
बस यही था हमारे बीच, पिछले कुछ दिनों से..
हम दोनों एक ही हॉस्पिटल में थे। उसके पापा और मेरी मम्मी दोनों लगभग एक ही घातक बीमारी से लड़ रहे थे ।
कुछ बिमारियों से मरीज़ के साथ-साथ उनके परिवार को भी लड़ना पड़ता है। हॉस्पिटल की लॉबी में दिन भर बैठे रहना, दवाइयाँ लाना , एक ही कैंटीन में खाना खाना ये सब करते हुए काफी कुछ जान पहचान हो गयी थी हमारी।
कभी वो ब्लड डोनर ढूंढने में मेरी मदद करती और कभी मैं आउट ऑफ़ स्टॉक दवाई लाने में उसकी। अथक प्रयासों के बाद भी उसने अपने पापा को खो दिया। कुछ २० दिन के अंतराल के बाद मेरी माँ भी नहीं रहीं। सहानुभूति जताते, सब ठीक हो जाने का दिलासा देते कब हम दोस्त बन गए पता नहीं चला। अजीब रिश्ता था बस दर्द ही थे बांटने को। हम एक-दूसरे के जीवन के सबसे बुरे समय के साक्षी थे।
सब कहते हैं दर्द के रिश्ते बहुत गहरे होते है। और आज ३ साल बाद हम हमेशा के लिए साथ है। किसने सोचा था एक दूसरे के साथ अपना दर्द अपनी तकलीफे बांटने वाले दो अजनबी एक दिन हमसफ़र बन जायेगें।