दीदी अंग्रेज तो अभी भी हमारी बस्ती में ही रह गए हैं
दीदी अंग्रेज तो अभी भी हमारी बस्ती में ही रह गए हैं
शिवि काफी देर से साड़ी पहनने की कोशिश कर रही थी । रोज़ साड़ी न पहनने के कारण उसे साड़ी पहनने में थोड़ा ज्यादा समय लग जाता है। आज उसे स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर ऑफिस में ध्वजारोहण समारोह में जाना था,इसलिए उसने सोचा था कि आज तो साड़ी पहनकर ही जायेगी । और आज वह खुश भी बहुत थी क्यूंकि उसका बरसों पुराना किसी सरकारी इमारत पर ध्वजारोहण करने का स्वपन जो साकार हो रहा था .आज शिवि को ही अपने ऑफिस में ध्वजारोहण करना था, वह ऑफिस की प्रमुख जो थी।
यूँ तो अब हर भारतीय को अपने घर पर ध्वज संहिता का पालन करते हुए ध्वज फहराने की अनुमति है। लेकिन किसी सरकारी इमारत में ध्वज फहराने का एक अलग ही आनंद है,सुकून है ;आप गर्व से भर जाते हैं कि देश कि उन्नति में आपको प्रत्यक्षतः योगदान करने को मिल रहा है । वह ध्वज को सलामी भी देगी ;जैसे प्रधानमंत्री देते हैं। यह सब सोचते -सोचते शिवि केरल की हैंडलूम कसावु साड़ी पहनकर फाइनली सही समय पर तैयार हो ही गयी थी और ऑफिस के लिए निकल भी गयी ।
शिवि विशेष अवसरों पर साड़ी पहनना पसंद भी करती है . उस को साड़ी भारत की विविधता में एकता का बड़ा ही सुन्दर उदाहरण लगती है। भारत के हर राज्य कि ही तो अपनी एक विशेष प्रकार की साड़ी है और उसे पहनने का निराला तरीका है।जैसे राजस्थान की कोटा डोरिया, उत्तर प्रदेश की बनारसी, मध्य प्रदेश की चंदेरी, आंध्रप्रदेश की इक्कत, कर्नाटक की मैसूर सिल्क, आसाम की मेखला या पश्चिमी बंगाल की बालचुरी और भी बहुत सी साड़ियाँ।
ऑफिस जाते हुए आज तो सुबह -सुबह ही, शिवि को रास्ते में सिग्नल पर बच्चे विभिन्न प्रकार के तिरंगा ध्वज बेचते नज़र आ गए थे। कोई प्लास्टिक का था, कोई कागज़ का, कोई बहुत ही छोटा और कोई थोड़ा बड़ा। लोग तिरंगा खरीदकर अपनी कार में लगा भी रहे थे। शिवि को अक्सर ये बच्चे ऑफिस से लौटते हुए ही कुछ न कुछ बेचते हुए दिख ही जाते थे। तब ही शिवि कि नज़र तिरंगा बेचती हुई मुस्कान पर पड़ी . आज ये मुस्कान स्कूल क्यों नहीं गयी ?अगर बच्चे स्कूल नहीं जाएंगे तो स्वतंत्रता दिवस का मतलब और महत्व कैसे जानेंगे ?
स्वतंत्रता दिवस से आत्ममुग्धा शिवि आपको मुस्कान का परिचय तो देना भूल ही गयी थी .शिवि को ऐसे ही एक दिन कोने में मुस्कान गुब्बारे बेचते हुए दिखी थी। जहाँ और बच्चे सिग्नल पर खड़ी गाड़ियों की और लपक रहे थे ;वह चुपचाप खड़ी थी।
शिवि ने अपनी गाडी एक तरफ खड़ी की थी और मुस्कान के पास गुब्बारा लेने चली गयी थी। तब ही उसे पता चला था कि इनमें से कुछ बच्चे स्कूल भी जाते थे ;स्कूल में उनके लिए सबसे बड़ा आकर्षण वहां मिलने वाला मिड डे मील था .और फिर ये बच्चे स्कूल से आकर छोटी -मोटी चीज़ें कभी गुब्बारे, कभी खिलौने, कभी फूल आदि सिग्नल पर बेचते थे। मुस्कान भी स्कूल जाती थी और स्कूल से लौटकर घर पर रहकर ही पढ़ाई और घर के कामकाज में अपनी माँ की मदद करती थी। अपनी बीमार माँ के इलाज़ के लिए मुस्कान के घर पर अतिरिक्त आमदनी की जरूरत थी ;इसलिए उसे भी सिग्नल पर सामान बेचने भेज दिया गया था । आज उसका पहला दिन ही था ;इसलिए उसे समझ नहीं आ रहा था कि किस तरीके से अपने गुब्बारे बेचे।वह चुपचाप सिग्नल के एक तरफ खड़ी होकर आती जाती गाड़ियों को देख रही थी .डर के मारे वह रेड सिग्नल पर खड़ी गाड़ियों तक अन्य बच्चों कि तरह अपना सामान बेचने नहीं जा रही थी .
शिवि ने उससे एक गुब्बारा खरीदकर दो गुबारों के पैसे देने चाहे थे ;लेकिन उसने एक ही गुब्बारे के पैसे लिए थे।तब से शिवि, उससे कुछ न कुछ ले ही लेती थी .
लेकिन आज तो ये बच्चे सुबह ही आ गए थे। शिवि के पास समय था ;इसलिए उसने गाडी एक तरफ रोक दी और मुस्कान से बात करने लगी।
"आज तुम स्कूल नहीं गयी क्या ?", शिवि ने पूछा।
"दीदी, तिरंगा लेना है तो ले लो। आपसे बात करने का समय नहीं है, देखो कितनी गाड़ियाँ खड़ी हैं ;सबको तिरंगा बेचना है। "मुस्कान ने कहा।
"ऐसा करो तुम अपने सारे तिरंगे मुझे बेच दो। फिर तो बात करोगी न। ",शिवि ने मुस्कान से, जो की अब अपना सामान बेचना सीख ही गयी थी, से बात करने की गरज से कहा।
"चलो फिर ठीक है। अब पूछो ;जो पूछना है। " मुस्कान ने कहा।
"आज तुम स्कूल क्यों नहीं गयी। आज तो हमारे देश का स्वतंत्रता दिवस है। तुम्हे स्कूल जाना चाहिए। " शिवि ने कहा।
"पहले जाती थी तो लड्डू मिलते थे। लेकिन आज सब बच्चों ने कहा सुबह-सुबह तिरंगे बेचने जाते हैं तो बहुत बिकते हैं। आपने भी तो सारे तिरंगे ले लिए। ये स्वतंत्रता दिवस क्या होता है ?",मुस्कान ने मासूमियत से कहा।
"पहले हम अंग्रेजों के गुलाम थे ;मतलब हम अपनी इच्छा से कुछ नहीं कर सकते थे। अँगरेज़ हमसे काम बहुत कराते थे और बदले में कुछ नहीं देते थे। हमें भूखे पेट सोना पड़ता था। जहाँ वे रहते थे, हमें जाने नहीं दिया जाता था। हमें बात -बात पर दुत्कार देते थे। " शिवि ने मुस्कान को समझाने की कोशिश की।
"तो दीदी ;अब अंग्रेज कहाँ गए ?", मुस्कान ने पूछा।
"वो अब हमारा देश छोड़कर चले गए। आज ही के दिन छोड़कर गए थे। इसलिए ही तो हम स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं।" शिवि ने बड़े गर्व से कहा।
"नहीं दीदी, अंग्रेज कहाँ गए ?मेरी मम्मी बीमार होते हुए भी सुबह से शाम तक काम करती है ;मैं भी स्कूल से आते ही यहाँ सिग्नल पर सामान बेचने आ जाती हूँ। मेरे पापा भी रिक्शा चलाते हैं। लेकिन फिर भी मैंने आज तक कभी भी भरपेट खाना नहीं खाया। मैंने ही क्या हमारी बस्ती में कोई भी नहीं खा पाता।गाडी वाले लोग हमें दुत्कारते रहते हैं। बंगले वाली सेठानी मुझे अपने घर के अंदर नहीं आने देती। मुझे लगता है कि अँगरेज़ अभी तक गए नहीं हैं ;हमारी बस्ती में कहीं न कहीं रह ही गए हैं। उन्हें कैसे भेजना होगा ?वो हमारे देश से कैसे जाएंगे ?" मुस्कान ने पूछा।
मुस्कान के सवाल ने शिवि की जुबान पर ताला लगा दिया था। उसे आज भारत और इंडिया का फर्क समझ आ गया था। उसे गांधीजी की बात बार -बार याद आ रही थी कि, "पंक्ति में सबसे अंत में खड़े व्यक्ति को भी यह महसूस होना चाहिए की यह देश उसका अपना है।तब ही सही मायने में स्वतंत्रता प्राप्त होगी। "
आज उसे महसूस हो रहा था कि, "हमें राजनीतिक स्वतंत्रता तो प्राप्त हो गयी है। लेकिन आर्थिक और सामाजिक स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए बहुत कुछ करना बाकी है। ताकि मुस्कान जैसे बच्चे फिर कभी यह न कहे कि अंग्रेज तो अभी भी यहीं रह गए हैं . "
"बेटा ;जल्द ही तुम्हारी बस्ती भी स्वतंत्र हो जायेगी। " इससे ज्यादा कुछ कहने की शिवि की हिम्मत नहीं हो रही थी। वह इतना कहकर मुस्कान की बात सुने बिना ही अपनी गाड़ी की तरफ बढ़ गयी थी।
