Vijaykant Verma

Abstract

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Vijaykant Verma

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डियर डायरी 27/03/2020

डियर डायरी 27/03/2020

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सुबह जब नींद खुली तो मेरे ठीक सामने वाले मकान में टीवी पर एक प्यारा सा भजन आ रहा था~ हे मालिक तेरे बंदे हम, ऐसे हो हमारे करम..! नेकी पर चलें और बदी से टलें, ताकि हंसते हुए निकले दम..!! इस भजन को सुनते ही मेरे जिस्म में एक नई ऊर्जा का संचार हो गया और मुझे लगा कि आज का दिन वास्तव में बहुत ही अच्छा बीतेगा। मैं फ्रेश होकर नाश्ता पानी करने के बाद अखबार पढ़ने को हुआ तो देखा, कि अखबार आया ही नहीं..! मैं घर से बाहर निकल कर अखबार लेने दुकान पर गया, तो मालूम हुआ कि ₹6 का दैनिक जागरण ₹7 में ₹6 का हिंदुस्तान ₹7 में और ₹4 का नवभारत टाइम्स ₹5 में मिल रहा है। मतलब अखबार की बिक्री में भी खुल्लम-खुल्ला लूट। फिर मैंने अखबार नहीं खरीदा और अपने बड़े भाई के यहां अखबार पढ़ने चला गया। यूं तो लॉक डाउन में अपने घर से निकलने पर रोक है, लेकिन अखबार लेने, सब्जी फल आदि लेने या किराना का सामान लेने के लिए घर से निकलने की परमिशन है। सुबह के समय अखबार पढ़ना मेरा रोज का नियम है। क्योंकि देश दुनिया की सही खबर अखबारों से ही मिलती है। टीवी में अक्सर खबरों को चटपटा बनाकर पेश किया जाता है। और कभी-कभी तो राई का पहाड़ और तिल का ताड़ भी बना दिया जाता है। इसलिए समाचार पत्र को आज भी मैं प्रथम वरीयता देता हूं। और समाचार पत्र पढ़ने के बाद ही मुझको ऐसा महसूस होता है, जैसे मैं भी इस देश दुनिया से जुड़ा हुआ हूं। भाई के यहां से नौ बजे अपने वापस घर आकर मैंने एक कविता और एक कहानी लिखा। फिर अपनी पुरानी प्रकाशित कविताओं, कहानियों और लेखों की जो फाइल मैंने बनाई थी, उन रचनाओं को मैंने दोबारा पढ़ा। मुझे आज बड़ा मजा आया उन रचनाओं को पढ़ने में। क्योंकि कुछ रचनाएं तो इनमें बहुत ही अच्छी थी, लेकिन कुछ रचनायें इतनी बचकानी थी, कि मुझे आश्चर्य हुआ, कि इतनी उटपटांग रचनाओं को मैंने लिखा कैसे..? और उस से बढ़कर इस बात पर आश्चर्य हुआ, कि ये रचनाएं अखबार में छप कैसे गई.? लेकिन इसका कारण मुझे बाद में समझ में आया, कि अगर कोई लेखक किसी संपादक की निगाह में चढ़ गया, तो कुछ अच्छी रचनाओं के छपने के बाद उसकी फिसड्डी रचनाएं भी छप जाती है। और यह बात सोलह आने सच है। मैंने कई बड़े अखबारों में बहुत से अच्छे लेखकों की रचनाएं पढ़ी है और उन्हीं अखबारों में उनकी कुछ फिसड्डी रचनाएं भी पढ़ी है। मतलब एक बार लेखक का नाम हो जाए उसके बाद सब चलता है..! फिर मैंने खाना खाया और घर की थोड़ी सफाई की। और रोज की भांति कुछ देर के लिए अपने मोबाइल पर पुराने गाने यूट्यूब में लगा दिए। दरअसल ये पुराने गाने मेरे लिए टॉनिक का काम करते हैं और मेरी जिंदगी को एक नई दिशा भी देते हैं। इसलिए जब भी मुझे खाली समय मिलता है, मैं पुराने गानें जरूर सुनता हूं। आज रविवार का दिन है। और वैसे तो लॉकडाउन होने के कारण आजकल सभी दिन रविवार के जैसे ही हैं, लेकिन फेसबुक में एक ग्रुप ऐसा हैं, जहां रविवार को गीतों की महफिल सजती है। विशेष रुप से पुराने गीतों की। इसके मेसेज में सभी लोग अपनी अपनी पसंद के गीत पोस्ट करते हैं और कभी-कभी गीतों में ही सवाल-जवाब भी होता है। इस मनोरंजन के कार्यक्रम में तीन चार घंटे कब निकल जाते हैं, पता ही नहीं चलता। फिर रात होते होते मैंने स्टोरी मिरर में अपनी रचनाएं पोस्ट की। कुछ नए आइडियाज़ को कॉपी में नोट किया और अपने बेड पर आकर डायरी लिखने में जुट गया। ए जिंदगी, तू इंसान को इंसान बनना सीखा..! प्यार सिखा, मोहब्बत सिखा, किसी के दिल में रहना सिखा..!!


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