Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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Vijaykant Verma

Abstract

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Vijaykant Verma

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अजूबा

अजूबा

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मेरे मित्र को बिजली का नया कनेक्शन लेना था। कोई डेढ़ हजार का खर्चा था। पर बिजली ऑफिस में एक दलाल टाइप आदमी ने कहा, कि आप सिर्फ 2,500 दे दें, तो दो दिन में ही आपका कनेक्शन हो जाएगा। पर जो काम 1,500 में होना है, उसका 2,500 क्यों दे..?ये तो बिल्कुल गलत है..! लिहाज़ा उन्होंने साफ साफ कह दिया, कि वो कोई भी एक्स्ट्रा पैसा नहीं देने वाले। लेकिन अब सिस्टम को तो फॉलो करना ही था। काफी दिनों तक वो दौड़ लगाते रहे, पर हर बार कोई न कोई अड़ंगा लग जाता। उनके समझ में ये नहीं आ रहा था, कि बिजली कनेक्शन लेने में तो सरकार का फायदा ही है। वो सरकार से कुछ ले नहीं रहे, बल्कि कुछ दे रहे हैं, फिर भी इतना हिला-हवाला क्यों..? यही बिजली विभाग प्राइवेट हाथों में होता, तो शायद उनके कर्मचारी खुद चल कर घर आते, कनेक्शन भी देते और शुक्रिया भी अदा करते। क्योंकि मीटर से लेकर तार आदि का पूरा खर्चा तो उन्हें ही देना था और इस पूरे काम में अच्छी खासी बचत भी उन्हें होती।

फिर थक हार कर एक दिन घर में बैठे बैठे उन्होंने गणित लगाया, कि करीब एक महीना होने को है उन्हें दौड़ते दौड़ते, और इस एक महीने में उन्होंने जितना समय बिजली विभाग में दौड़ धूप करने में लगा दिया, इतने समय अगर वो कोई काम करते तो, कम से कम चार पांच हज़ार तो कमा ही लेते..!

ये सोचते ही उनका माथा घूम गया। सिर्फ 1,000 बचाने के चक्कर में 4,000 का उन्होंने नुकसान कर दिया, और न जाने कितने का नुकसान अभी और होना है। उस पर से तुर्रा ये, कि पूरे एक माह बीत चुके थे और कनेक्शन भी उन्हें अब तक न मिला था..!

वो फौरन भागे भागे उस दलाल के पास गये। सारा गिला शिकवा भूल कर उसके हाथों में झट से 1,000 एक्स्ट्रा पकड़ाया और फिर दूसरे ही दिन किसी अजूबे की भांति सारी फार्मेलिटी पूरी हो गई और उनका घर बिजली से रोशन हो गया।


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