Vijaykant Verma

Abstract

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Vijaykant Verma

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डियर डायरी 15/04/2020

डियर डायरी 15/04/2020

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आज सुबह अखबार में दो खबरें मुख्य रहीं। एक यह, कि लॉकडाउन की अवधि तीन मई तक बढ़ाई गई। और दूसरी यह कि मुंबई में लॉक डाउन की धज़्ज़िया उड़ी। लॉकडाउन की अवधि में एक अच्छी खबर यह है, कि 20 अप्रैल से कुछ उद्योग धंधों को शुरू करने की परमिशन है।

कुछ निर्माण कार्य को भी शुरू करने की परमिशन है। और कुछ दुकानें खुलने की भी परमिशन है। दरअसल देश की अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए समानांतर रूप से कुछ न कुछ काम तो करना ही होगा। और दूसरी खबर मुंबई में लॉकडाउन तोड़े जाने की है। इस खबर के अनुसार बांद्रा रेलवे स्टेशन पर हजारों की भीड़ जमा हो गई, जिनमें मुख्य रूप से यूपी और बिहार के मजदूर थे, जिन्हें अपने घर जाना था !

दरअसल यह एक कठोर सच्चाई है, कि इन हजारों मजदूरों को दोनों वक्त रोटी उपलब्ध कराना आसान काम नहीं है। काम धाम बंद है। और जो कुछ जेब में पूंजी है, वो भी खर्च हुई जा रही है। क्या होगा, जब पूरी तरह से ये फक्कड़ हो जाएंगे ! कैसे फिर ये रोटी खाएंगे और कैसे जिंदा रहेंगे?

एक बार फिर हम अपनी इस बात को दोहराना चाहेंगे, कि सरकार से इनको रोटी पानी नहीं चाहिए। सरकार से इनसे पांच सौ, हज़ार रुपये की मदद भी नहीं चाहिए ! अगर इनकी मदद कुछ करना ही है, तो इन्हें एक-एक बस में दस दस पंद्रह पंद्रह करके बैठा दो और इन्हें इनके घर पहुंचा दो !

इन मजदूरों की करुण गाथा पर चंद टूटी-फूटी लाइने मैंने लिखी हैं, उन्हें प्रस्तुत कर रहा हूँ~ अरबों रुपए खर्च हो गए, कोरोना मरीज रोज बढ़ते गए गरीब मजदूर जहां का तहां है, जो पैसे थे वह भी खर्च हो गए हाल बद से बदतर हो गई क्या होगा जब पैसा एक होगा कौन करेगा मदद उसकी जब जेब से वो पूरा फक्कड़ होगा उसकी जरूरतें पूरी करना आसान नहीं उसके बच्चों की परवरिश करना आसान नहीं दूसरों के आसरे कब तक वो जिंदा रहेगा कब तक अकेले इस कोरोना जंग से लड़ता रहेगा डर है, अवसाद में कहीं वो ज़हर न पी ले डर है, कहीं मजबूर होकर वो सुसाइड न कर ले !


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