डिअर डायरी
डिअर डायरी
कहते हैं कि मनुष्य का जन्म बड़े भाग्य से मिलता है। इसलिए इस जन्म में हमें हमेशा अच्छे कर्म करना चाहिए। बुराई से बचना चाहिए और सभी के कल्याण के बारे में सोचना चाहिए। बचपन में हमारा तन और मन बहुत ही निर्मल और पवित्र होता है। लेकिन जैसे जैसे हम बड़े होते हैं, हमारे अंदर दुनिया भर की बुराइयां आ जाती है। कहते हैं कि बचपन नादान होता है। लेकिन हमने तो यह देखा है, कि बड़े बुजुर्ग ही नादान होते हैं।
आज दुनिया में जितनी भी विषमताएं हैं, लड़ाई झगड़ा, खून खराबा है, यह सब बड़ों की ही देन है..! धर्म हमें अच्छाई की राह पर ले जाता है। लेकिन आज धर्म ही हमें बुराई की राह पर ले जा रहा है। हिंसा की राह पर ले जा रहा है। क्योंकि धर्म को हमने गलत तरीके से परिभाषित कर दिया है, जिसके कारण वैमनस्यता बढ़ती बढ़ी है। दूरियां बढ़ी है। जुल्म और अत्याचार बढ़ा है। और आतंक का कारण भी हमारा ये धर्म ही है।
काश हम सभी बच्चे ही होते..! बच्चों जैसी ही हमारी बुद्धि होती, तो ये देश बहुत ही खूबसूरत होता। ये दुनिया बहुत ही खूबसूरत होती। कहीं कोई झगड़ा लड़ाई ना होता। हम सभी प्यार से रहते। मोहब्बत से रहते। एक दूसरे से मिलकर रहते। हम में कोई भेदभाव न होता। और हमारी यह दुनिया स्वर्ग से भी सुंदर होती। कितनी बड़ी सच्चाई है यह,
कि आज एक सूक्ष्म कोरोना वायरस से सारी दुनिया त्रस्त है।
परेशान है। यह जीवन की एक बहुत बड़ी वास्तविकता है कि जब समय विपरीत हो तो एक छोटा सा वायरस भी हमें हरा देता है। इसलिए अपने सारे घमंड को छोड़कर ऊपर वाले की सत्ता को हमें स्वीकार करना चाहिए। और हमेशा दुनिया के भले के बारे में ही सोचना चाहिए।
अपने को जरूरत से ज्यादा ताकतवर मानना खुद को धोखा देना है। परमेश्वर से डर करें उसके बताए मार्ग पर चलें बच्चों की भर्ती निर्मल हो हम तभी हम सब का कल्याण होगा और इस दुनिया का भला होगा। जीवन की सच्चाई को उकेरती यह कविता आज ही लिखी है मैंने।
सूक्ष्म कोरोना वायरस से यह दुनिया है परेशान किस बात का गुरूर है तुझे बोल जरा इंसान मिलजुल कर प्यार से तूने रहना कभी न सीखा खुद को ही इस धरा का तूने समझ लिया भगवान तू कैसा है इंसान..!! दया नहीं है दिल में तेरे जीव जंतु तू खाता क्यूँ है इतना क्रूर तू इन पर रहम न तुझको आता मानुष होकर बना अमानुष यह तेरी पहचान खुद को ही इस धरा का तूने समझ लिया भगवान तू कैसा है इंसान..!
जन्म जन्म के पुण्य से तूने मानव देह ये पाई बचपन गया जवानी बीती अकल न अब भी आई तज कर अपने पुण्य कर्म क्यूं बन गया तू हैवान खुद को ही इस धरा का तूने समझ लिया भगवान तू कैसा है इंसान।