डेली डायरी 29/03/2020
डेली डायरी 29/03/2020
आज की सुबह बहुत प्यारी है दोस्तों, क्योंकि आज सुबह-सुबह एक गौरैया ने मुझे उठाया जो आसमान से उड़ती हुई मेरे बेडरूम में आ गई और अपनी मधुर आवाज में ची ..ची.. ची ..ची ..करती हुई फुदकने और चहकने लगी..! मैंने गौरैया को "गुड मॉर्निंग" कहा और उससे पूछा कि देश दुनिया का क्या हाल है..? उसने अपनी भाषा में ही उत्तर दिया, "ची ..ची ..ची.. ची।" और मैंने उसके उत्तर को समझ लिया। वो मुझसे कह रही थी, कि ये कोरोना तुम लोगों की ही देन है। अगर तुम लोग हम पशु-पक्षियों, जीव जंतुओं की कद्र नहीं करोगे, उन्हें घोर यातनाएं दोगे, उनके आशियानों को उजाड़ोगे और प्रकृति द्वारा बनाए गए नियमों का पालन नहीं करोगे, तो कोई ना कोई बीमारी तो आती ही रहेंगी। लेकिन अगर नियम से रहोगे, सही तरह से रहोगे, किसी को सताओगे नहीं, तो कभी कोई बीमारी तुम्हें परेशान नहीं करेगी और तुम भी हमेशा स्वस्थ और मस्त रहोगे..हमारी तरह..! और इतना कह कर ची..चीं ..ची..ची..करते हुए वो उड़ गई। मैंने उसे धन्यवाद कहा और उससे प्राप्त शिक्षा पर दो लाइनें लिखीं~ बहुत प्यारी है तू मेरी दोस्त गोरिया, हम हमेशा तेरी बात मानेंगे..! औऱ वादा करते हैं हम तुझसे, कभी किसी जीव को नहीं सताएंगे..!! गौरैया के अभिवादन के बाद फ्रेश होकर सबसे पहले अखबार पर नजर डाली, जिसमें प्रमुख खबरें विश्व में कोरोना का बढ़ता प्रकोप और लॉक डाउन को तोड़ कर मजदूरों के पलायन की ही थी। बहुत बड़ी संख्या में मजदूरों के पलायन की खबरों से हमारे देश के प्रधानमंत्री मोदी जी भी बहुत क्षुब्ध दिखे और अपने कार्यक्रम "मन की बात" के ज़रिए उन्होंने पूरे देश की जनता से लॉक डाउन के कारण उनकी तकलीफों के लिए माफी भी मांगी। यहां सबसे बड़ा सवाल यह है, कि सरकारी स्तर पर अक्सर घोषणा हो जाती है, कि हर गरीब को भोजन पानी मिलेगा और उसे कोई भी तकलीफ नहीं होने दी जाएगी। और इस घोषणा के साथ ही यह मान लिया जाता है, कि पूरे देश की जनता सुखी हो गई और सब को भोजन पानी मिलने लगा..! जबकि हकीकत में ऐसा नहीं होता। और इसका सबसे बड़ा कारण है हमारे देश में नैतिकता का अवमूल्यन..! इस संदर्भ में मैं एक उदाहरण आपको देना चाहूंगा अगर सरकार एक लाख रुपये किसी अधिकारी को देकर कहे, कि जाइये, और जहां भी कोई गरीब मिले, उसकी मदद कीजिये। और इसके लिए कोई सबूत या किसी तरह की लिखा पढ़ी की ज़रूरत नहीं है। और अगर पैसा कम पड़े तो और पैसा ले जाइएगा। अब जरा अपने दिल पर हाथ रख कर इस प्रश्न का उत्तर टटोलिये, कि उस एक लाख में से कितने रुपए वो अधिकारी गरीबों में बांटेगा..? मैं दावे के साथ कह सकता हूँ, कि इस प्रश्न का उत्तर बहुत ही निराश करने वाला होगा..! कहां तो ऐसे बुरे समय में उस अधिकारी को उस एक लाख के अलावा कुछ अपनी जेब से भी पैसे निकाल कर गरीबों की मदद करनी चाहिए, लेकिन इस बात की बहुत ही कम संभावना है, कि वो सरकार द्वारा प्राप्त एक लाख रुपये की पूरी रकम गरीबों में बांटेगा..! उसमें से आधी रकम, चौथाई रकम और कुछ अधिकारी तो ऐसे भी होंगे, जो पूरी की पूरी रकम ही हड़प लेंगे..! इसी को कहते हैं नैतिकता का अवमूल्यन..! और इसीलिए हमने इस बात को कहा है, कि सरकार
के खाते में से एक लाख रुपए के निकलते ही उसकी नजर में गरीबी दूर हो गई, लेकिन वो एक लाख रुपये गरीबों को कहां मिला..? मतलब साफ है, कि सरकारी आंकड़ों में तो गरीबों की गरीबी दूर हो जाती है, लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं होता ..! हकीकत यही है, कि गरीब बेचारा और गरीब हो जाता है..! यह तो हमने सिर्फ एक लाख रुपये को आधार मानकर एक उदाहरण दिया है। लेकिन इसके आगे आप स्वतः ही कल्पना कर सकते हैं, कि सरकार द्वारा कोरोना से लड़ने हेतु इस जंग में जो लाखों करोड़ रुपए खर्च किये गए, उनमें से में इन गरीबों पर कितने रुपये खर्च हुए होंगे..? संसार का यह सबसे बड़ा सत्य है, कि अगर किसी देश का विकास रुकता है, तो उसके पीछे सबसे बड़ा कारण होता है उस देश में नैतिकता के अवमूल्यन का होना। और दुर्भाग्य से हमारे देश में भी नैतिकता के मूल्यों का निरंतर अवमूल्यन हो रहा है। क्या कर सकते हैं हम..? यहां बात-बात पर सिर्फ जनता को ही उसके कर्तव्यों का बोध कराया जाता है। लेकिन इस देश के नेताओं को इस सत्य को मानना पड़ेगा, कि देश को दिशा तो दिशा वाहक ही देता है और कोई भी देश तरक्की तभी करता है, जब ऊपर से ईमानदारी हो। क्योंकि जब ऊपर वाले ईमानदार होंगे, तो नीचे वालों के बेईमान होने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। आप जानते हैं कि स्कूल में टीचर नहीं पढ़ा रहे हैं, फिर भी उनकी नौकरी बहाल है! आप जानते हैं कि अधिकारी घूस खा रहे हैं, फिर भी उनकी नौकरी बहाल है! आप जानते हैं कि क्लर्क फाइल को नीचे दबाए बैठा है, फिर भी उसकी नौकरी बहाल है! क्यों..? इसमें गलती सिर्फ ऊपर वालों की है और कानूनी दांवपेच की है! सिस्टम ऐसा होना चाहिए, कि लापरवाही और घूसखोरी का सबूत मिलते ही ऐसे सख्स को उसी समय नौकरी से परमानेंट हटा दिया जाए और अपील करने का भी मौका ना दिया जाए। और अगर इस तरह की सख्ती हुई, तो यह सारी अनियमितताएं खत्म हो जाएंगी और सब के सब सुधर जाएंगे। लेकिन यहां तो यह हाल है, कि अगर विजिलेंस टीम रंगे हाथों पकड़ ले किसी अधिकारी को, तब भी सालों केस चलेगा..! जबकि रंगे हाथों पकड़ने के बाद तुरंत उसी दिन उसकी सेवाएं समाप्त हो जानी चाहिए। अगर केस दायर भी हो, तब भी उसी दिन उसी समय उसका फैसला हो, चाहे इसके लिए किसी जज को "ऑन द स्पॉट" मौके पर पहुंच कर वहीं पर अपना जजमेंट क्यों न देना पड़े..! इस तरह के बहुत सारे विचार मेरे दिमाग में आते रहे और देश की इन तमाम समस्याओं पर मैं मंथन करता रहा। रविवार का दिन होने के कारण आज शाम के समय मैंने आलू भरकर ब्रेड रोल बनाया, जो मुझे बहुत पसंद है। और रात में मेरे पड़ोस में भटूरे छोले बने थे। लॉक डाउन होने के कारण मैं उनके घर तो नहीं जा सका, लेकिन उन्होंने दो गरमागरम भटूरे छोले और चावल मेरे घर भिजवा दिया। नाश्ता पानी भोजन करने के उपरांत मैं अपनी साहित्य की दुनिया में खो गया। कुछ कविताएं लिखी और कुछ अपनी पुरानी रचनाओं की प्रूफ्र रीडिंग की और फिर डायरी लिखने बैठ गया। आज इस डायरी के द्वारा मैं देश के उन सभी अधिकारियों को एक संदेश देना चाहूंगा~ जाना है जब खाली हाथ ही, घूसखोरी क्यूं करो..! किसी गरीब की बद्दुआएं,उसकी आहें क्यूं तुम लो..!!