डायरी सातवाँ दिन
डायरी सातवाँ दिन
![](https://cdn.storymirror.com/static/1pximage.jpeg)
![](https://cdn.storymirror.com/static/1pximage.jpeg)
प्रिय डायरी
आज सुबह उठी तो आज भी वही रोज की दिनचर्या के कार्य करने लगी। बीच बीच में बाहर भी झाँक लेती हूँ वही रोज का सफ़ाई कर्मचारी सफ़ाई कर रहे थे बाकी सब शान्ति थी। मौत का डर या फिर देश की चिंता खैर कुछ भी हो आज कुछ नियम और अनुशासन का पालन हो रहा था। शायद कल पुलिस की सख़्ती भी एक कारण हो सकता है या फिर निज़ामुद्दीन में हज़ारों लोगों के पीड़ित होने की ख़बर का डर। कुछ भी हो आज कुछ हलचल नहीं है। पर सोशल मीडिया पर उथल पुथल मची थी सोशल मीडिया पर लोग अपनी अपनी शेखी बघार रहे थे की वो ये मदद कर रहे हैं। खाना दे रहे हैं। फोटो खिंचवा खिंचवा कर अन्न दान दे रहे हैं। सोचती हूँ कितने बड़े दानी हैं ये लोग ना अपनी जान की परवाह ना दूसरों के जान की परवाह ना ही देश के संकट की ही कोई चिंता। सोशल डिस्टन्स की बात चल रही है और ये लोग दिखावे से बाज़ नहीं आ रहे। मदद करना अच्छी बात है पर यूँ क़तई नहीं। आप घर पर रहकर भी मदद कर सकते हैं बस आपकी फोटो नहीं आ पाएगी। क्या हो गया है हमे इस विपदा में भी दिखावे की होड़ लगी है। राजनीति हो रही है। राजनेता सभी एक हो गए इस कारोना महामारी में पर हम होड़ में लग गए की मैं ज्यादा बड़ा या बड़ी समाज सेवी हूँ। क्या हो गया हमे दान देने और भूखे को खाना खिलाने की प्रथा
वैदिक काल से ही है भारत वर्ष में। खुद भूखे रह द्वार पर आए भिक्षुक को खिलाने की प्रथा है हमारे देश में। फिर इस तरह की शिक्षा कहाँ से आइ होगी या ये आधुनिक युग की सोच है कम में ज़्यादा पाने की सोच। दिखावे की सोच। भेड़ चाल की सोच। बड़ा दिखने की सोच। दुःख होता है ऐसी सोच पर जहाँ गुप्त दान की परम्परा हो वहाँ दो रोटी दान देने के लिए इतना दिखावा वो भी उनको जो हालात के मारे हैं ना की भिखारी। माँ ने तो हमे सिखाया था की दान ऐसा करो की दाहिने हाथ से करो तो बाएँ हाथ को पता ना चले। क्या इन सभी को नहीं सिखाया गया होगा क्या। पता नहीं जो भी हो ऐसे लोगों से मुझे नफ़रत होती है। किसी की मजबूरी को कैद कर सरे बाज़ार नीलाम कर रहे हैं ये मददगार नहीं व्यापारी हैं और इनका कुछ करना ना करना बराबर है। सेवक तो वो हैं जो दिन रात एक कर काम कर रहे हैं सभी सुरक्षाकर्मी, डाक्टर, नर्स, उनका मदद वाला स्टाफ़, सफ़ाई कर्मचारी, बिजली पानी और सभी ज़रूरी सेवाओं को जारी रखने वाले सभी सम्मानित सेवक। इनको मेरा प्रणाम है। इनकी वीरता को प्रणाम है जो बिना दिखावे के अपना फ़र्ज़ अदा कर रहे हैं। प्रिय डायरी आज इन पंक्तियों के साथ विदा लेती हूँ।
सबसे बड़ा दानी ऊपर बैठा लिखता खाते, तू क्यूँ फोटो खींच खींच करता खोखले वादे।