Turn the Page, Turn the Life | A Writer’s Battle for Survival | Help Her Win
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Priyanka Shrivastava "शुभ्र"

Abstract

3.8  

Priyanka Shrivastava "शुभ्र"

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डायरी डे फोर्टीन

डायरी डे फोर्टीन

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हर दिन की भांति आज के दिन की भी शुरुआत झाड़ू-पोछा से हुई।  बुरे से बुरे चीज में भी कुछ अच्छाई छुपी होती है, समझने की जरूरत है। औरों की तो नहीं कह सकती पर इस लॉक अप के फायदे तो मुझे 13 दिन में ही दिखने लगा। 

आप सभी को हँसी आएगी। आनी भी चाहिए, जहाँ लोग इस लॉक अप से होने वाले हानि को देख रहे हैं वहाँ मैं फायदा बता रही हूँ। फायदा तो अनेक दिखा पर जबरदस्त फायदा हुआ कि मेरा कॉन्फिडेंस लेबल हाई हो गया। घुटना और कमर दर्द आजकल आम बात है। मैं इससे अछूता कैसे रहती।

जब दर्द हो तो डॉक्टर के साथ-साथ आपके हर शुभचिंतक भी आपको अपने उदाहरण देकर अनेक सावधानियां बरतने की सलाह दे देते हैं। मुझे भी इस तरह के अनेक सुझाव दिए गए और उनमें से अनेक सुझाव तो आपेआप जीवन में स्थान बना लेते हैं। फलस्वरूप यदि कभी काम वाली बाई नहीं आती तो मैं झट दूसरी किसी बाई को फोन करने लगती कि कम से कम झाड़ू-पोछा कर दे। ये तो मैं बिल्कुल नहीं कर सकती। मेरे कमर और घुटना का तो हालत खस्ता हो जाएगा। यदि कभी गलती से कर लेती तो हालत खस्ता हो भी जाता। अतः घर में सभी कहने लगते कि ऐसा क्या है एक दिन झाड़ू नहीं पड़ेगा तो प्रलय आ जाएगा क्या

?  पर इस बार इक्कीस दिनों का सवाल था। प्रलय तो आना ही था। डे वन से ही मैं चुप-चाप सुबह उठ कर झाड़ू उठाई और झट-पट लगा ली। सोचा एक दिन बीच कर के पोछा किया करूँगी। पतिदेव आए और बोले अरे डंडा वाले मॉप से तो मैं भी मार दूंगा। उस दिन डंडा वाले मॉप से ही मैं पोछा की। दूसरे दिन दूसरे तरह से की, क्योंकि टाइल्स वाले फ्लोर की कठिनाई अब समझ में आ रही थी। देखने में जितना अच्छा लगता है सफाई भी उतने ही अच्छे तरह से करवाता है। फ्लोर की गंदगी पोछा में सट कर इधर-उधर घूमता रहा जाता है। उठता ही नहीं। घर गन्दा पोछने के लिए बाई को कितना बोलती रहती थी , मर्म तो आज समझ में आ रहा है।

पांच दिन पांच तरह से पोछा की फिर समझ में आया पोछा का पुराना तरीका ही ज्यादा सुलभ है। किन्तु ये पुराना तरीका मेरे लिए कष्टदायक था क्योंकि कुछ भी हो घुटने में तकलीफ बढ़ जाने के डर से बैठ कर पोछा करने से बचना चाहती थी। अतः कॉलेज के दिन याद आए। उनदिनों आया दीदी को देखती थी कि झाड़ू में कपड़ा लपेट कर बड़े आराम से पोछा लगा देती थी और पोछा बहुत साफ होता था। छठा दिन मैंने भी वही विधि अपनाई और सफलता मिल गई। 

इस नए प्रयोग ने मेरा हौसलाअफजाई किया। अब तो इस विधि से करीब -करीब चालिस मिनट में झाड़ू पोछा होने लगा। ये काम करते-करते अब तो मुझमें ऐसा कॉन्फिडेंस आया कि आज मुझे लगा कि अब कभी भविष्य में यदि बाई नागा करेगी तो मैं किसी भी दूसरे बाई की खुशामद नहीं करूँगी। ये काम बड़ी सरलता से मैं खुद ही कर सकती हूँ।

इस बंद ने झाड़ू-पोछा में मुझे ऐसी दक्षता दे दी  है कि मैं सोचती हूँ आजकल यू ट्यूब पर ढेरो शिक्षा दी जा रही है, मैं भी अपना एक चैनेल खोल, कम समय में सफाई से झाड़ू-पोछा कैसे की जाती है का शिक्षाप्रद क्लास चलाऊँ।

प्रदूषण कम होने का नजारा तो  आज रात में मैंने देखा। आज चैत पूर्णिमा है। बालकनी में चांदनी पसरी हुई थी। वहाँ जाते ही आकाश की तरफ नजर उठ गई। चाँद साफ नजर आ रहा था। चाँद की इतनी खूबसूरत छटा तो शायद मैंने आज तक नहीं देखी थी।

चाँद से निकलने वाला प्रकाश चारो तरफ बिखर रहा था। इसके बिखरने की किरण इतनी साफ दिख रही थी मानो कोई पेंटिंग कर उसे निखार रहा हो। नहीं रह गया तो मैंने अपने मोबाइल से छटा की तस्वीर उतारी। मेरे मोबाइल का कैमरा कोई बहुत पावर फूल नहीं फिर भी उसकी तस्वीर इतनी साफ आई कि मन मुग्ध हो गया और मैंने उसे सभी से शेयर किया। जिसने भी उस तस्वीर को देखा इसे रात में चाँद न देख पाने का अफसोस हो रहा था।

ये सब बदलाव बंद के सकारात्मक प्रभाव ही तो हैं। तो हुऐ न बंद के कुछ फायदे।

आँखों में चाँद की चांदनी बसा मैं अब निद्रा देवी के घर चली।    


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