Priyanka Gupta

Abstract Tragedy

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Priyanka Gupta

Abstract Tragedy

चोट

चोट

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"तुम्हारी तबियत ख़राब थी तो पहले ही क्यों नहीं बताया?ख़ामख़ा इतनी दूर जंगल में पैसे खर्च करके आया। ",अंजलि के करीब आ रहे पल्लव को जैसे ही उसकी माहवारी के बारे में पता चला, उसने नाराज़ होते हुए कहा।

पल्लव की बात सुनकर अंजलि का खून खौल उठा था। अंजलि अभी राजस्थान के एक सुदूर जिले के जंगल में रह रही थी। वह जनजातियों पर शोध कार्य कर रही थी। उसे सरकार के जनजाति विभाग ने इस कार्य के लिए चुना था। समाजशास्त्र की प्रोफेसर अंजलि को जंगल और उसमें रहने वाले आदिवासी शुरू से ही आकर्षित करते थे। अंजलि के शोध-पत्र समय -समय पर विभिन्न राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय जर्नल्स में छपते रहते थे। इस शोध कार्य के बाद अंजलि को विदेश में जाकर पढ़ने का अवसर मिलने वाला था।

जंगल का शांत और प्राकृतिक वातावरण अंजलि को बहुत ही लुभाता था। जनजातियों के कायदे मुख्य समाज से बड़े ही अलग होते हैं। कई बार अंजलि को लगता था कि इन मासूम लोगों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ा जाएगा तो ये भी हमारे जैसे लालची और मतलबी इंसान हो जाएँगे। विकास की जो परिभाषा हमने पश्चिमी देशों से आयात की है, अगर ये लोग भी सीख गए तो धरती माता अपने सबसे ख़ूबसूरत स्थलों को खो देगी।

आदिवासी लोग इन जंगलों से जड़ी -बूटी, लाख,गोंद आदि चीज़ें एकत्रित करते हैं और जंगल की सीमा से लगते गाँवों में बेच आते हैं। ये जंगल को किसी एक की सम्पदा न मानकर, समुदाय की सम्पदा मानते हैं। यहाँ हम विकसित और सभ्य लोग हर चीज़ पर पाना एकाधिकार कायम करने की ख़्वाहिश रखते हैं। यह पल्लव भी तो उस पर, उसके शरीर पर और उसके वेतन पर एकाधिकार कायम करना चाहता है।

आज जब शरीर पर अधिकार नहीं कर पा रहा तो इसे कितना गुस्सा आ रहा है। यह सोचते ही अंजलि का मुँह कसैला हो गया था। पल्लव तब तक उठकर अपनी सिगरेट जलाकर बाहर चला गया था।

अंजलि का पल्लव से दूसरा विवाह था। पहले विवाह की दुखद स्मृतियों को पीछे छोड़ते हुए अंजलि आज अपने करियर के एक अच्छे मुकाम पर थी। माँ के लाख बार समझाने और बार -बार अपने प्यार का वास्ता देने के कारण ही अंजलि पल्लव से विवाह के लिए तैयार हुई थी।

पल्लव का भी तो दूसरा विवाह था। पल्लव की पहली पत्नी जूही का कैंसर से लड़ते हुए निधन हो गया था। जूही से पल्लव को दो बच्चे थे। बच्चे न तो बहुत ही छोटे थे और न ही बड़े। उन्होंने कभी अंजलि को अपनी माँ स्वीकार नहीं किया था। कुछ उनकी दादी ने उन्हें कभी अंजलि के निकट नहीं आने दिया था।

जंगल में कई तरह के साहचर्य देखने को मिलते हैं जहाँ जानवर, कीड़े, पशु, पक्षी आदि एक दूसरे को वृद्धि करने में सहयोग करते हैं। जैसे मधुमक्खियाँ पुष्पों का रस पीती हैं और परागण की क्रिया में सहयोग करती हैं। कुछ वृक्ष चींटियों को भोजन उपलब्ध करवाते हैं, बदले में चींटियाँ अपने घर बनाते हुए उनकी गुड़ाई भी करती हैं। अंजलि और पल्लव का विवाह भी तो इसी सोच का परिणाम था। अंजलि के माँ नहीं बनने के कारण उसका पहला विवाह टूट गया था। पल्लव को ऐसी लड़की से विवाह कारण था, जिसके बच्चे न हो।

पल्लव एक अच्छा पढ़ा -लिखा व्यक्ति था ;जिसका खुद का कॉलेज था। अंजलि ने सोचा था कि पल्लव और पुरुषों जैसा नहीं होगा। उसे भरपूर प्यार और सम्मान मिलेगा। उसका खालीपन एक परिवार को पाकर भर जाएगा। लेकिन वह पल्लव के लिए स्त्री शरीर से ज़्यादा कुछ नहीं थी। अंजलि का घर के वातावरण में दम घुटने लगा था, इसीलिए जैसे ही रिसर्च का ऑफर मिला, उसने स्वीकार कर लिया था। रिसर्च के कारण उसको कुछ अतिरिक्त भत्ते आदि भी मिलने वाले थे ;इसीलिए पल्लव ने भी ख़ुशी -ख़ुशी उसका समर्थन किया। बच्चे और सासू माँ को तो वैसे ही घर में उसकी उपस्थिति पसंद नहीं थी तो किसी ने उसे रोकने की कोशिश नहीं की।

"मेरे पास तो कंगन ही नहीं हैं। ",ऐसा कई बार अपनी सासू माँ के मुँह से सुनकर अंजलि ने उन्हें सोने के कंगन खरीदकर दिए थे। उसने बच्चों के लिए प्ले स्टेशन खरीदकर दिया था। उसने सोचा था कि शायद इससे उनके रिश्तों पर जमी पिघल जाए। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ, रिश्ते तो नहीं सुधरे ;अलबत्ता अंजलि उनके लिए एक बैंक मात्र बनके रह गयी थी। ऐसा बैंक जिसमें रिश्तों का A T M कार्ड उपयोग करके पैसे निकाले जा सकें।

पल्लव को यह जंगल बिल्कुल पसंद नहीं था। अंजलि ऐसे तो आदिवासियों के बीच ही रहती थी। लेकिन जब पल्लव आता था,तब वह रहने के लिए फॉरेस्ट के रेस्ट हाउस में आ जाती थी। यह रेस्ट हाउस भी पल्लव को ख़ास पसंद नहीं था, क्यूँकि यहाँ समस्त आधुनिक उपकरण और सुविधायें उपलब्ध नहीं थी। लेकिन एक स्त्री शरीर को पाने की खातिर वह हर सप्ताह आ ही जाता था। बाहर जाता तो पैसे भी लगते और साथ ही विभिन्न बीमारियाँ भी गले पड़ सकती थी।

पहले अंजलि को लगता था कि पल्लव उसे मिस करता है ;इसीलिए आ जाता है। लेकिन जब एक बार पल्लव आया था, तब अंजलि को माता निकली हुई थी ;तब भी पल्लव अंजलि के साथ संबंध नहीं बना सका था। पल्लव दो दिन के लिए आया था, लेकिन उसी दिन उलटे पाँव किसी जरूरी काम का बहाना करके लौट गया था। आज जब पल्लव ने फिर से यही दोहराया तो अंजलि को उसकी घटिया सोच पर तरस आ रहा था।

अंजलि इतनी तो परिपक्व थी ही कि बातों के पीछे छुपे असली मंतव्य को समझ ले। पल्लव से तो बेहतर जानवर ही हैं जो शादी के नाम पर किसी का शोषण तो नहीं करते। नर, मादा को रिझाता है और संबंध बनाता है। उसके बाद दोनों ही स्वतंत्र हो जाते हैं।

यहाँ जंगल में रहने वाली जनजातियों ने भी अपने समाज में महिलाओं को पुरुषों के बराबर ही स्वतंत्रता दे रखी है। असली लैंगिक समानता क्या होती है, अंजलि ने यहीं देखी है। यहाँ हर वर्ष भरने वाले मेले में लड़के और लड़कियाँ आते हैं और अपने पसन्द के व्यक्ति के साथ जीवन भर रहने का निर्णय लेते हैं। अगर लड़की चाहे तो बाद में स्वेच्छा से संबंध तोड़ भी सकती है और फिर किसी व्यक्ति सकती है। विवाह -विच्छेद इन लोगों के लिए हमारे सभ्य समाज के जैसे कोई हौव्वा नहीं है। अंजलि ने जब अपने पहले पति से तलाक लिया था तो उसका उठना -बैठना, कहीं पर भी आना -जाना दूभर हो गया था। बड़ी मुश्किल से उसने खुद को कतरा -कतरा जोड़ा था और अपने पैरों पर खड़ी हुई थी।

माँ फिर उसके पीछे ही पड़ गयी थी कि, "बेटा, शादी कर ले। अकेले ज़िन्दगी काटना बड़ा ही मुश्किल है। अकेली लड़की के चरित्र पर तोहमतें लगाते, इस दुनिया को एक मिनट नहीं लगता। "

फिर पल्लव का रिश्ता आ गया था। तब माँ था कि, "बेटा, तेरी किस्मत अच्छी है। नहीं तो बाँझ लड़की से कौन शादी करता है। औरत तो पूर्ण ही माँ बनकर होती है। "

"माँ, आदमी तो रेमंड का सूट पहनकर ही पूरा हो जाता है, फिर औरत को पूर्ण होने के लिए माँ बनना क्यों जरूरी है ?",अंजलि ने माँ से कहा था।

"मज़ाक की बात नहीं है। आदमी हो या औरत कोई भी अकेला नहीं रह सकता है। अगर भरा-पूरा परिवार अपने आसपास दिखे तो इंसान सुकून से मर पाता है। बेटा, हम न जाने कब तक हैं ?अपने जीते जी ही तुझे तेरे परिवार के साथ देख लें तो चैन से मरेंगे। ",माँ ने भावुकतापूर्ण शब्दों में कहा था।

कहने को आत्मनिर्भर अंजलि कई बार खुद को कितना मजबूर पाती थी। "अच्छा है, कल यह इंसान चला जाएगा। ",सोते हुए पल्लव को हिकारत भरी नज़रों से देकते हुए अंजलि ने अपने आप से कहा।

पल्लव अगले दिन, अंजलि को अगले सप्ताह घर आने की हिदायतें देता हुआ चला गया था। पल्लव के जाने बाद अंजलि फिर अपनी जंगल की दुनिया की तरफ चल दी थी।

उसका आदिवासियों ने खूब स्वागत किया। औरतें उसके लिए जंगल की जलेबी लेकर आयी थी। शाम को उनके साथ महुआ का रस पीते हुए अंजलि अपने सारे दुःख भूल गयी थी।

अंजलि का रिसर्च वर्क जारी था। वह आदिवासी समाज के रीति -रिवाजों, परम्पराओं को समझ रही थी। उनका खान-पान, जड़ी -बूटियों का ज्ञान उसे हतप्रभ कर देता था। एक बार उसे जंगल में किसी साँप ने काट लिया था तो साथ चल रही महिला ने तुरंत पता नहीं कौनसे वृक्ष की डाली को चीरकर उसका रस अंजलि के घाव पर डाला और अंजलि को जल्द ही पीड़ा से मुक्ति मिल गयी थी।

अंजलि ने इस हफ्ते जाने की पूरी तैयारी कर ली थी। कुछ जंगली फल आदि एकत्रित कर लिए थे। उसने सोने की चैन भी ऑनलाइन ही आर्डर कर दी थी। जाने से एक दिन पहले एक पेड़ पर चढ़ रही अंजलि धड़ाम से गिर गयी और उसका पैर टूट गया।

प्राथमिक चिकित्सा के बाद उसे हॉस्पिटल ले जाया गया और अंजलि के पैर पर प्लास्टर चढ़ गया। अंजलि ने पल्लव को फ़ोन करके अपनी स्थिति बताकर आने में असमर्थता जाहिर की।

अगले दिन सुबह -सुबह उसके पास रहने वाली सुगना किसी को उसकी झोपडी दिखाते हुए कह रही थी कि, "आप अंदर चलो, मैडम जी अंदर हैं। मैं आपके लिए खजूर का रस लाती हूँ। "

उसने पल्लव को अंदर झाँकते हुए पाया। उसकी चोट के बारे में जानकर पल्लव उससे मिलने आये हैं ;यह सोचकर वह अंदर तक पुलकित हो गयी थी।

"अरे, तुम्हारे तो पैर में सचमुच चोट लग गयी है। मैं तो देखने आया था कि गिफ्ट के पैसे बचाने के चक्कर में कहीं तुम झूठ तो नहीं बोल रही थी। ",पल्लव के यह शब्द अंजलि के कानों में पिघलते हुए शीशे से लगे।

यह इंसान अव्वल दर्जे का घटिया है। इसके साथ रहना दिन प्रतिदिन अपने आत्मसम्मान को खोना है। मुझे इस जंगल से और कुछ नहीं तो ससम्मान जीना तो सीखना ही होगा।

"सिर्फ पैर में ही नहीं, हमारे रिश्ते में भी चोट लगी है। इस चोटिल और पंगु रिश्ते का बोझ लेकर मैं और नहीं चल सकती। तुम्हें अब और यहाँ रुकने की जरूरत नहीं। ",अंजलि ने कहा।

"मैं कौनसा यहाँ तुम्हारी तीमारदारी करने आया था। वैसे भी इस नरक में तुम जैसी औरत ही रह सकती है। मैं तो बस सच्चाई जानने आया था। ",पल्लव ने अंजलि को टोकते हुए कहा।

"बात तो ख़त्म करने दो। तुम्हारा घटिया चेहरा देखना तक नहीं चाहती। तलाक के पेपर भेज दूँगी, हस्ताक्षर कर देना। "अंजलि ने थूकते हुए कहा।


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