चोर

चोर

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हमेशा की तरह आज भी वह चांदनी रात में मेरे पास आई और अपने कोमल हाथों से मेरी दोनों पलकों को बंद करती हुई बोली- "बताओ कौन हूँ मैं ?"


मैंने कहा- "उदिता!"


वह अपने हाथों को हटाती हुई बोली- "ना! चांदनी हूँ मैं तुम्हारी और तुम मेरे चांद।"


मैंने कहा- "चोरनी! चोरी करती हो मेरा डायलॉग!"


वह अपने चिर-परिचित अंदाज में रूठती हुई बोली- "हूँ! आप भी तो मुझसे बड़े चोर हो।"


मैं बनावटी गुस्से में बोला- "बताओ तो जरा क्या चोरी की है मैंने ?"


अपने दोनों पांखों को मेरे गले का हार बनाकर मेरी पलकों में झाँकती हुई वह बोली- "मेरे दिल की।"


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