बस में एक दिन
बस में एक दिन


मैं हल्द्वानी रोडवेज बस स्टैंड पर खड़ा था। मुझे देहरादून जाना था। रात्रि के करीब पौने 8 बजे रहे थे। एक के बाद एक बस आकर विस्थापन प्रकिया को अपना रही थी। सहसा एक बस आई उत्तराखंड परिवहन निगम की एकदम नई बस। मेरी नजर बस के नंबर की ओर गई । मुझे लगा कि यह बस ठीक रहेगी यात्रा के लिए और मैं बस में बत्तीस नंबर की सीट पर बैठ गया। बस के रवाना होने का टाइम 8 बजे का था।
बस स्टार्ट होने में अभी भी सात मिनट बाकी थे। उसी समय एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति आकर मेरी सीट के बगल में बैठ गये। इससे पहले कि बस चलती एक और लड़की गाड़ी में चढ़ गई, लेकिन संयोग से तब तक बस पूरी भर चुकी थी। कंडक्टर ने लड़की से कहा कि बस भर चुकी है। आप दूसरी गाड़ी में आ जाना, लेकिन लड़की नहीं मानी। कहने लगी कल सुबह 10 बजे से इक्जाम है। स
मय पर पहुंचना है। उसका कहना एकदम सही था, क्योंकि मैं स्वयं भी वही इक्जाम देने जा रहा था। खैर कंडक्टर ने बात मान ली। लड़की ने बैग सीट के नीचे रखा और स्टेंड पकड़कर खड़ी हो गई। बस अभी मुश्किल से दस बारह किलोमीटर चली होगी कि मेरे बगल में बैठे वो अधेड़ व्यक्ति उठ खड़े हुए- "बेटी तुम बैठ जाओ यहाँ। मुझे काशीपुर तक ही जाना है। मैं एडजस्ट कर लूंगा।" लड़की पहले तो सकुचाई, लेकिन उनके जिद करने पर वह सीट में बैठ गई। वो अधेड़ उम्र के व्यक्ति कुछ देर तो स्टेंड पकड़कर खड़े रहे फिर कुछ देर सबसे पीछे की सीट पर एक व्यक्ति से उन्होंने एडजस्ट करने के लिए कहा और किसी तरह सिकुड़कर वहीं पर बैठ गये। आज जब भी रोडवेज बस में सफर कर रहा होता हूँ तो उनका चेहरा सामने आ जाता है। सामने आ जाती है वह अपरिचित मुलाकात ....।