मासूम आँखें
मासूम आँखें
सरजी शू पोलिश करवानी है क्या ?
एक 8,9 साल का बच्चा, छोटी छोटी आँखे। मेले कुचैले कपड़े। काला बस्ता बाएं कंधे से लटका हुआ। बैग संभालने के लिए ,कंधा उठाये हुवे।
दायां कंधा स्वत ही झुका हुआ, छोटा अमिताभ हो जैसे। शर्ट के ऊपर वाले दो बटन खुले हुवे, लापरवाह से, या तो उसे लगाने में रुचि ही न थी या बटन लगते ही न हो।
मैं मोहित के साथ दोपहर में चाय पीने आया था। हमारा खाता यहीं चलता था। वैसे मैं पोलिश कम ही करता हूँ, काम चल जाता है।
बच्चे ने दोबारा पूछा -10 रुपये लूंगा साहब।
मैंने हां करदी। मोहित को काल आया ,वो अर्जेंट ईमेल करने आफिस चला गया।
पोलिश के बाद पैसे देने थे तो पता लगा, पर्स आफिस में ही रह गया।
मैंने कहा - दो कदम पर आफिस है, आजा पैसे दे देता हूँ।
एक बार को वो निराश तो हुआ पर साथ आना पड़ा। मेरा ऑफिस दूसरे फ्लोर पर था। लंबी सी सीढ़ी ऊपर की तरफ जा रही थी। थोड़ा अंधेरा था। सूरज की रोशनी सीधी न आती थी और दोपहर की वजह से बल्ब बंद था। या यूं कहें हमें इतने अंधेरे की आदत ही थी।
मैं जल्दी से सीढ़ी चढ़ गया। पीछे मुड़ के देखा तो लड़का नीचे ही खड़ा था। मैंने उसे ऊपर आने का इशारा किया।
ध्यान से देखा तो लड़के की आंखों में डर साफ दिख रहा था, चेहरे पर पसीना आ गया था। पैर जैसे जमीन से जड़ गए हो उसके।
उसकी डरी आंखों ने सब कुछ बयां कर दिया....
मैंने उसे नीचे ही रुकने का इशारा किया। पैसे ले जा कर दिए।
अब कभी वो इधर से गुजरता है तो मैं कभी पॉलिश करवा लेता हूँ या हालचाल पूछ लेता हूं।
अब उसकी आँखों में डर नहीं है, कभी मैं नहीं दिखता हूँ तो पोलिश का पूछने आफिस तक आ जाता है।