चौथा दिन
चौथा दिन


आज चौथा दिन भी पूरा हुआ।
सुना था रोज कुछ करते रहो तो आदत सी बन जाती है, लॉकडाउन में घर में रहने की आदत बन गई क्या? लगता तो नही...............
हाँ डायरी लिखने की आदत जरूर बनती नज़र आ रही है। अपनी भावनाओं को शब्दों की शक्ल देना।
दीदी कहती हैं भावनाओं से ज्यादा घटनाओं के बारे में बताओ, हालात के बारे में बताओ। अरे क्या बताएं ... हालात और हालत , दोनों में ही कोई ज्यादा परिवर्तन तो होता नहीं ।
दोनों ही रोज़ आँकड़ो पर शुरू होकर सवालों पर खत्म हो जाते हैं। रोज़ जब T.V. खोलते हैं तो इसी समाचार का इंतजार रहता है कि ....... ' आज की ब्रेकिंग न्यूज़, कोविड-19 पर डॉक्टरों ने पा लिया है क़ाबू। स्थिति पूरी तरह नियंत्रण में'
पर...लेकिन...किंतु....परन्तु.... अभी भी ये समाचार सिर्फ ख्यालों में है । जाने हकीक़त में आने को कितना समय लगेगा।
समाचार भी क्या...बस दिल दहला देने वाली खबरों से भरा पड़ा है। जिसमें सबसे ज्यादा जो हृदय को द्रवित कर गया वो था दिहाड़ी 'मजदूरों का पलायन'। सभी अपने अपने घरों की तरफ अंधाधुंध भागे जा रहे है...बेसुध... बदहवास ....100 km से 1000 km तक पैदल.....
सिर्फ तस्वीर देखें तो शायद आपको भी गुस्सा आये कि क्यों लोग सैकड़ों की तादात में जा रहे हैं, क्यों नहीं जैसा सरकार ने कहा 'जहाँ हो वहीं रहे' को मानते, पर एक बार उनकी बात सुन ले तो आपकी सोच निश्चित रूप से बदल जाएगी। बाकी जरूरतों की तो बात ही छोड़ दीजिए,चार-चार दिनों तक खाना भी नसीब नहीं हुआ जिसमें छोटे-छोटे बच्चे भी शामिल है...देख के तो मैं अपने आँसू न रोक पायी, काश कुछ कर पाती।
यहाँ तो यही लगता है भूख के आगे सारे हौसले पस्त हो जाते हैं, मौत का डर भी नही।
बहुत दिनों बाद ज़रा बॉलकनी में क्या गई वहाँ भी कुछ ऐसा ही नज़र आया,लगता है पेड़ो ,पत्तों, सड़कों हवाओं पर भी लॉकडाउन है क्या...सब एक तस्वीर की तरह शांत हैं... आवाज़ आ भी रही है तो बस कुछ पक्षियों की....पर ये मेरा वहम है या सच, पतानहीं.. पर उनकी आवाज में भी वो पहले जैसी खनक क्यों नहीं? जैसे वो भी अपनी शांत पड़ी हुई 'प्रकृति माँ' से पूछ रहे हो- बोलो न माँ!चुप चुप सी क्यूँ हो ? क्या हुआ है ?
क्या जवाब दे उन्हें क्योंकि इस जवाब की तलाश में ही तो हम सब लगे हैं।