चॉफ़ी
चॉफ़ी
कहानी लिखने के लिए इस बार का टॉपिक था कॉफी का कप.... टॉपिक पढ़ते ही न जाने कितनी सारी यादें मेरे जेहन में गड्डमगड्ड हो गयी....
कॉलेज के दिनों में हम दोनों शाम को मिलते रहते थे। हम दोनों का शगल था, कॉलेज के पास वाले हॉटेल में बढ़िया सी कॉफी और चाय पीना।
वह और मैं.... साथ ही फर्स्ट फ्लोर वाला फैमिली रूम का वह कोने वाला टेबल....
रोज मिलने के बावजूद हमारी बातें खत्म नही होती थी। मंद प्रकाश में हमारी दोनों की वह मंद हँसी ....
ऐसे में कॉलेज का लास्ट ईयर भी खत्म होने को आया। और रोज की तरह एक दिन हम फिर उसी हॉटेल में गये।दोनों ने अलग अलग आर्डर दिये, उसने चाय और मैंने कॉफ़ी का...आज उसने वेटर को खाली कप लाने को भी कह दिया था।
वेटर आर्डर सर्व करके चला गया। लेकिन आज न जाने क्यों वह मंद संगीत, मंद लाइट्स सब कुछ जैसे अलग ही माहौल लग रहा था।
मैंने अपनी कॉफी का सिप लिया और उसने अपनी चाय का…..
पता नही, उसने अचानक अपनी चाय से थोड़ी चाय उस खाली कप में डालकर मेरी तरफ उस कप को सरका दिया। मेरे प्रश्नवाचक निगाहों को भाँप वह कहने लगा, थोड़ी सी कॉफ़ी तुम भी इसमे डाल लो। मैंने हँसते हुए कहा, जैसे चाय और कॉफी मिलाकर चॉफ़ी बनती है ठीक वैसे ही....
हाँ, हाँ....वही चॉफ़ी...हम दोनों ही हँस पड़े...
धीरे धीरे हम अपनी अपनी चाय और कॉफ़ी पीने लगे। चाय ख़त्म होने पर अचानक वह कहने लगा, "इस चॉफ़ी के रंग को देखो, चाय और कॉफ़ी के रंग दोनो एकदूसरे में कैसे सहजता से मिल गये है। क्या तुम भी मेरे साथ मेरे रंग में मिलना चाहोगी?
मैं अवाक होकर उसे देखने लगी।हम दोनों की निगाहें मिली।उसकी निगाहों के ताब से मेरी निगाहें झुक गयी।अब की बार मेरी चॉफ़ी की तरफ निगाहें दोबारा गयी। अब उस चॉफ़ी की बात और उसका रंग मुझे बेहद गहरा और एकसार लगने लगा...बिल्कुल हम दोनों के प्यार की तरह....
मेरी झुकी निगाहों ने जैसे हामी भर ली....इस बार मैंने वेटर से मेरे लिए चाय और उसके लिए कॉफ़ी लाने का आर्डर दिया...
वहाँ सब कुछ था....चॉफ़ी थी...मंद लाइट्स... मंद संगीत...और मंद मंद धड़कते दो दिल....