Dr Jogender Singh(jogi)

Abstract

4.5  

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चाय/ब्रेड (पार्ट 1)

चाय/ब्रेड (पार्ट 1)

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निर्मला के हाथ से फ़ोटो फ़्रेम फिसल गया । चटाक की आवाज़ हुई , काँच के टुकड़े फ़र्श पर बिखर गये । फ़्रेम में लगी तस्वीर पर कुछ खरोंचे लग गयी । निर्मला ने तस्वीर को सम्भाल कर उठाया , काँच के टुकड़ों को धीरे से झाड़ तस्वीर को साफ़ किया । " गौतम , झाड़ू लगा दे बेटा" निर्मला ने आवाज़ लगाई ।

गौतम कानों में ईयरफ़ोन ठूँस लॉन में पौधों को नहला रहा था । बोला तो पौधों को पानी देने के लिए गया था , पर गौतम वाक़ई उनको नहला रहा था ।

गौतम !! गौतम !! निर्मला को ग़ुस्सा आने लगा ।

तुम्हें बुला रही हैं , रानी ने गौतम से चिल्ला कर बोला ।

अच्छा , आया माँजी !! गौतम पाइप छोड़ कर भागा । " क्या हुआ माँजी ? 

" तुम्हारा सिर , क्या कर रहा था ? सुनता क्यों नहीं ।" देख सम्भाल कर काँच साफ़ कर दे , लग न जाये । और सुन दिन में अशोक के स्टूडियो चले जाना , नया फ़्रेम लगवा लाना ।

निर्मला ने तस्वीर को धीरे से सहलाया , जैसे वीर की तस्वीर नहीं , ख़ुद वीर फ़्रेम से बाहर आ गया हो । मानो वीर पास में खड़ा हो , अपने धूल भरे कपड़े लिये । " माँ मेरे कपड़े बदल दो , प्लीज़ ।" 

हाँ , यही एक काम रह गया मुझे । दिन भर तू कपड़े गन्दे करता रहे और मैं नौकरानी की तरह तेरे कपड़े बदलती रहूँ / धोती रहूँ । 

ला ! झाड़ कर साफ़ कर देती हूँ । फिर शुरू हो जाता वीर का उछलना । " देख , चुपचाप खड़ा रह । नहीं तो मिट्टी झड़ नहीं पायेगी , मैदान में लोट कर आता है क्या ? " निर्मला आख़िर में प्यार से वीर की पीठ पर एक प्यार भरा थप्पड़ लगा देती । 

थैंक यू माँ , यू आर बेस्ट मॉम । वीर भाग जाता । निर्मला उसे प्यार से देखती । 

" चाय माँजी" रानी ने प्याला साइड टेबल पर रख दिया । " क्या हुआ माँजी , वीर बाबा की याद आ रही है ? " वो भी आपको बहुत याद करते होंगे । 

हाँ रानी ! याद तो करता होगा । तुमने तो देखा है कितना प्यार करता था मुझे , हर वक़्त माँ , मॉम , मेरी पूड़ी और न जाने क्या/ क्या नाम रखे थे उसने मेरे । कभी लगा ही नहीं कि मेरा एक ही बच्चा है । निर्मला के होंठों पर ममत्व भरी मुस्कान थी ।

"बाबा हैं ही इतने अच्छे " रानी ड्रेसिंग टेबल पोंछती हुई बोली । " बिस्किट दूँ माँजी ? 

नहीं ! मन नहीं कर रहा । तू चाय भी ले जा , डस्टिंग बाद में कर लेना , मैं थोड़ा आराम करूँगी । दरवाज़ा बंद करती जाना , निर्मला तकिये की टेक लेते हुए बोली ।

रानी के जाते ही निर्मला ने पुरानी ऐल्बम निकाल ली । छोटा सा वीर अपने दोस्तों के साथ स्पाइडरमैन बना खड़ा था ।आँखों में शरारत लिए । कितना खुश हुआ था यह ड्रेस पहन कर । " मॉम ! अब मैं दीवार पर चलने लगूँगा , स्पाइडरमेन की तरह ।

अच्छा , तब तो तू घर के सारे जाले साफ़ कर देगा । 

नहीं , घर के अंदर नहीं , बाहर ऊँची / ऊँची बिल्डिंग पर । ऐसे , वीर ने हवा में अपने दोनो हाथ चलाये ।किराये पर आयी ड्रेस को वीर ने कहाँ वापिस करने दिया था । राजन भी उसकी ज़िद्द के आगे झुक गए । राजन अनुशासन का पाठ तो खूब सिखाते , पर वीर की ज़िद्द के आगे हार ही जाते । " तुम भी मुझे अधर में छोड़ चले गये राजन " निर्मला की आँखों से आंसुओं की धार बह निकली । एल्बम बंद कर , आँख भींच निर्मला हिचकियाँ भरने लगी ।

रोते / रोते न जाने कब आँख लग गयी । मोबाइल की घण्टी से निर्मला की आँख खुली । अरे !! दस बज गये , " हेलो " जम्हाई लेते हुए निर्मला बोली ।  " हेलो , तबियत ठीक है ना आपकी ? दूसरी तरफ़ नारदा की आवाज़ थी । 

हाँ , ठीक है , आँख लग गयी थी । तुम कैसी हो ? , भगवंत और मुन्ना ठीक है ना । 

मौसी जी , सब ठीक हैं । आप अपनी बताओ ? कभी मेरे पास आ जाइए पूना । पहले तो नौकरी की वजह से आप के पास समय नहीं था । अब तो आप आ सकती हो । नारदा ने आग्रह किया ।

हाँ बेटा , बनाती हूँ प्रोग्राम । कभी तुम लोग आ जाओ । 

देखते हैं मौसी । अच्छा अपना ख़्याल रखना आप । बाय ।

" बाय " । निर्मला बाथरूम में घुस हाथ / मुँह धो आयी ।

रानी , चाय और ब्रेड दे दो । निर्मला डाइनिंग टेबल पर बैठते हुए बोली ।

आज वीर की इतनी याद क्यों आ रही है ? क्या फ़ोन कर लूँ । अभी ऑफ़िस में होगा , ठीक से बात नही हो पायेगी । पर शाम को क्या रमना बात करने देगी खुल कर ?? शायद नहीं । मेसेज कर देती हूँ । नहीं सब कुछ मैं ही करूँ , वीर को याद आयेगी तो करेगा न फ़ोन । निर्मला ने गहरी साँस छोड़ी ।

रानी चाय / ब्रेड रख गयी । निर्मला को ब्रेड चाय में डुबो कर खाना कभी पसंद नहीं था । वीर भी उस से डाँट खा जाता ।राजन और वीर मिलकर ब्रेड चाय में डुबो / डुबो कर खाते । पूरी डाइनिंग टेबल गंदी कर देते । " देखो आप इसको समझाने की जगह , इसकी गंदी आदतों को शह देते हो । एक तो ऑफ़िस के लिए देर हो रही है , ऊपर से अब सफ़ाई करो ।

" आप का ग़ुलाम है ना ।" राजन तुरंत मेज़ साफ़ करने लगते । " देखो ब्रेड चाय में नहीं डूबी तो ब्रेड का जीना बेकार , जैसे मैं डूबा हूँ किसी की प्यारी आँखों में । " शर्म तो आती नहीं आपको ।" बच्चा बड़ा हो रहा है , निर्मला वीर की तरफ़ देख कर बोलती । "यह भी तो सीखेगा " राजन आँख दबा कर बोलते ।

पता नहीं क्या सोचकर निर्मला ने ब्रेड के स्लाइस को बीचोंबीच तोड़ कर चाय में डुबो दिया । वापिस निकालते हुए एक टुकड़ा कप में टूट कर गिर गया ।सम्भालते / सम्भालते चाय की कुछ बूँदे प्लेट और डाइनिंग टेबल पर गिर गयी । चाय में डूबी ब्रेड का स्वाद निर्मला को अच्छा लगा । उसे लगा मानो वीर और राजन पास खड़े उस पर हँस रहे हैं । 

रानी नाश्ता पूछने आयी थी । निर्मला को देख मुँह बाए खड़ी रह गयी ।

"साफ़ कर देना " निर्मला लापरवाही से बोली । "अब मैं जब भी चाय / ब्रेड खाऊँगी , ऐसे ही खाऊँगी ।" निर्मला मुस्कुरा रही थी ।



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