बूढ़े भगत का युवा गौरव
बूढ़े भगत का युवा गौरव


"भाई साहब,आपका पसंदीदा कथाकार कौन है? "-अनुज तुल्य मेरे मित्र गौरव ने मुझसे पूछा।
" प्यारे भाई गौरव,मुझे तो 'शोले' के 'जय' की तरह सभी पुलिस वालों की सूरत एक सी ही नजर आती है। जिसके बारे में गौर से सोचता हूं वही अच्छा लगता है। जिस कहानी पर विचार करता हूं वही कहानी एक गहरी प्रेरणा देती है।"- मैंने गौरव से अपने मन की बात कही।
गौरव ने जिद करते हुए कहा-"भाई साहब,आपको 'कौन बनेगा करोड़पति ' के 'अमिताभ बच्चन' की तरह अनिवार्य रूप से एक न एक स्पष्ट विकल्प चुन लेने की मेरी जिद को मानते हुए बताना ही पड़ेगा कि आपका प्रिय कथाकार कौन है? आप ही तो कहते हैं कि छोटों की जिद हमेशा ही माननी पड़ती है।"
"मुंशी प्रेमचंद सरल ग्रामीण परिवेश को दर्शाती उनकी कहानियां मुझे बेहद प्रिय है । यह कहने में मैं संकोच का अनुभव नहीं कर रहा हूं उसका प्रमुख कौन है कि मुंशी प्रेमचंद जी की सरल ,स्पष्ट भाषा और उनकी कहानियों के सीधे सच्चे के पात्र मुझे बहुत ही आकर्षित करते हैं। उनकी कहानियों को पढ़ते समय मैं कहीं अपने आस-पास के गांव में पहुंच जाता हूं।"-मैंने अपने मनोभावों को गौरव को बताते हुए कहा।
"फिर आपके द्वारा उनकी पढ़ी गई कहानियों में किसी एक पात्र को चुनना पड़े तो आप कृपा कर मुझे बताएंगे कि किस कहानी का कौन पात्र आपको बहुत अधिक पसंद है "- गौरव ने लगे हाथों दूसरा प्रश्न मेरे सामने रख दिया ।
कुछ क्षण की चुप्पी के बाद मैंने गौरव से कहा-" ठीक है भाई , इस बार तुम ज़िद करो तो उससे पहले ही मैं तुम्हारी भावनाओं की कद्र करते हुए अपने प्रिय पात्र के बारे में बताता हूं। मैंने माध्यमिक शिक्षा परिषद उत्तर प्रदेश के हाई स्कूल के हिंदी पाठ्यक्रम में शामिल मुंशी प्रेमचंद की कहानी 'मंत्र' एक बार नहीं बल्कि अनेक बार पढ़ी थी और इस कहानी का सीधा सच्चा पात्र 'बूढ़ा भगत' मेरे सबसे प्रिय पात्रों में से एक है। जो सच्ची मानवीय भावनाओं से ओतप्रोत है जो अपने प्रति हुए अन्याय को भूल कर अपनी अंतरात्मा की आवाज पर डॉक्टर चड्ढा के बेटे कैलाश को अपने मंत्र के बल पर नया जीवन देने के लिए अपनी धर्मपत्नी बुढ़िया को बिना बताए अंधेरी रात में निकल पड़ता है। जबकि चुपचाप अपनी झोपड़ी से निकलने से पहले तक डॉक्टर चड्ढा के घर न जाने की बात बार-बार दोहराता है। मंत्र के बल पर सांप के द्वारा काटे हुए डॉक्टर चड्ढा के बेटे कैलाश को नया जीवन दे कर चुपचाप चला जाता है ।यह डॉक्टर चड्ढा वही थे जब अपने अंतिम बेटे पन्ना को बेहद गंभीर अवस्था में डोली में इलाज के लिए डॉक्टर चड्ढा के पास लाया था और डॉक्टर चढ्ढा ने उसके बेटे को देखने तक से इन्कार करते हुए कहा था कि यह उनके गोल्फ खेलने का समय है ।वे इस समय मरीजों को नहीं देखते ।बूढ़ा निराश हुआ उसने अपनी पगड़ी डॉक्टर चड्ढा के पैरों पर रखते हुए गिड़गिड़ाते हुए कहा था कि बस एक नजर देख लीजिए। नहीं तो मेरा बेटा हाथ से चला जाएगा । डॉक्टर का दिल नहीं पसीजा और उसका बेटा काल के गाल में समा गया था ।इन सब बातों को ध्यान में न रखकर उस बूढ़े भगत ने अपना मानव धर्म निभाया और उसन डॉक्टर के बेटे को जीवनदान दिया जिन्होंने उसके बेटे को एक नजर देखा भी नहीं था"
"क्या आज के समय में भी ऐसे लोग मिलते हैं?"- गौरव ने अपने मन की संशय की स्थिति को मेरे समक्ष रखते हुए बेझिझक कहा।
"यह वीर प्रसूता धरती मां हमेशा से ही ऐसी महान विभूतियों को जन्म देती रही है। शायद तुम्हारे मन में यह प्रश्न इसलिए आया क्योंकि समाज के अधिकांश लोगों की भांति तुम्हारे मन में भी यह धारणा होगी कि आज का जमाना बहुत खराब है । यह धरती पर अच्छे लोगों का अकाल पड़ रहा है ।चारों तरफ बुराई ही बुराई नजर आ रही है। मेरा ऐसा मानना है कि आदिकाल से ही यह संसार कमोबेश ऐसा ही रहा है। संसार में अच्छे और बुरे लोग हमेशा ही रहे हैं ।अच्छाई का सूरज कुछ क्षण के लिए बुराई के बादलों के बीच विलीन सा नजर आता है लेकिन समय बदलता है और पुनः भलाई का प्रकाश बुराई के अंधकार को खत्म कर देता है। अगर तुम इसे अपनी झूठी प्रशंसा ना समझो और इस प्रशंसा से मन में कोई अहंकारर न लाओ तो मैं यह कहना चाहूंगा कि मैं इस 'युवा गौरव' में मुंशी प्रेमचंद का 'बूढ़ा भगत' देख रहा हूं। तुम्हारे अंदर संस्कारों की झलक जो आज परिलक्षित हो रही है वह आयु बढ़ने के साथ-साथ और अधिक निखरेगी ।आज के इस निराशा भरे वातावरण और विविध प्रकार की कलुषित भावनाओं से भरे समाज को परिमार्जन की आवश्यकता है। मुझे यह कहने में भी कोई संकोच नहीं है कि तुम्हारे जैसी सोच रखने वाले युवाओं की समाज सुधार में अति महत्वपूर्ण भूमिका रहेगी।"- गौरव के बारे में जो मेरा जो दृष्टिकोण था उस मैंने अपनी भावना व्यक्त करते हुए उन्हें बताया।
"यह तो अतिशयोक्ति वाली बात हो गई।"- गौरव ने अपने संस्कारों के अनुरूप विनम्रता पूर्वक अपनी बात मेरे सामने रखी।
मैंने गौरव से पूछा -"गौरव भाई मुझे बताओ कि अक्षय के पिता जी ने तुम्हारे प्रति दुर्भावनाएं रखे हुए तुम्हारा नुकसान करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। तुम्हारे अच्छे व्यवहार से आसपास के सभी लोग भलीभांति परिचित थे और सभी लोगों ने पूरे मनोयोग के साथ तुम्हारा समर्थन किया। जिसके कारण ही इतनी भयंकर शिकायत के बाद भी तुम्हारा कोई नुकसान नहीं हुआ। जबकि उसने अपनी ओर से तुम्हें नुकसान पहुंचाने में कोई भी कसर नहीं छोड़ी। उसने अपनी ओर से कई हथकंडे अपनाए। कुछ लोगों को भ्रमित कर उनके साथ मिलकर षड्यंत्र भी रचे लेकिन ईश्वर की कृपा रही कि तुम्हारा बाल भीबांका नहीं हुआ।फिर भी जब अक्षय का एक्सीडेंट हुआ तो तुमने पूरी सद्भावना के साथ तन, मन और धन से उनकी जो सहायता की वह कोई साधारण व्यक्ति नहीं कर सकता।उसके पिताजी के द्वारा तुम्हारे प्रति किए गए समस्त दुर्व्यवहार और बुरी भावनाओं को तुमने ध्यान न देकर उसकी जो मदद की वह विरले उदाहरणों में से एक है जो उसके लिए ही नहीं बल्कि दूसरों के लिए एक प्रेरक और अनुकरणीय शिक्षा बनी।"
"भाई साहब,जब हमें प्रभावित होना है तो क्यों न अच्छाई से ही प्रभावित हुआ जाए। आज समाज में बुराई का ज़्यादा बोल-बाला दृष्टिगोचर होता है बुराई से प्रभावित होने से समाज में और बुराई बढ़ेगी ।वैसे भी यह सार्वभौमिक सिद्धांत है कि संसार में नकारात्मकता सकारात्मकता की तुलना में ज्यादा तेजी से फैलती है। परमाणु की संरचना को ही लिया जाए तो परमाणु कुल भाग का अधिकांश भाग नेगेटिव चार्ज वाले इलेक्ट्रॉनों का है। पॉजिटिव चार्ज वाले प्रोटानों को तो बेहद कम स्थान मिला है।"- एक्स अच्छे दार्शनिक की तरह अपने मनोभावों को प्रकट किया ।
"लेकिन परमाणु का सबसे अधिक ठोस और पूरे द्रव्यमान को अपने में समाहित किए हुए उदासीन न्यूट्रानों के साथ परमाणु का नाभिक ही वह भाग है ।इलेक्ट्रानों का बहुत बड़े क्षेत्र पर बादल छाया रहता है लेकिन प्रोटॉनों के बराबर संख्या में होते हुए भी उनका परमाणु के द्रव्यमान में भाग नगण्य ही माना जाता है।हमारा भाई गौरव परमाणु के नाभिक की भांति गुरुतापूर्ण स्थान रखता है इसीलिए मुझे अपने प्रिय अनुज को "बूढ़े भगत का युवा गौरव" कहने में कोई हिचक नहीं है।जो कबीरदास जी के सार -सार को ग्रहण कर थोथा उड़ाने की सद्प्रवृत्ति रखता है।क्या हमारे प्राणप्रिय अनुज को अपने अग्रज के विश्लेषण पर कोई संदेह है?"
अपने दोनों हाथ जोड़कर गौरव ने कहा -" यह आपका स्नेह है जो मेरे हर कार्य में अच्छाई देखता है।"