Sandhya Sugamya

Abstract romance thriller

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Sandhya Sugamya

Abstract romance thriller

"बुरी बात"

"बुरी बात"

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किसी और का खत पढ़ना बुरी बात है,लेकिन अगर खत पाने वाला ही आपको अपना खत पढ़ाना चाहे तो क्या करेंगे आप? सुबह सुबह चाय के साथ लोग अखबार पढ़ते हैं। मैं चाय के साथ वाट्स अप्प मैसेज पढ़ती हूँ। चाय के पहले घूँट के साथ मैंने वाट्स अप्प खोला तो मैं आश्चर्य से भर उठी। मेरी प्रिय सखी वनिता का मैसेज क्या था, खत था,जो उसने कई पेज़ पर लिखकर फिर उनकी फोटो लेकर मुझे भेज रखा था। उत्सुकता से मैंने पढ़ना शुरू किया।

प्रिय शैफाली!

पिछले कुछ घण्टों में ज़िन्दगी में ऐसा कुछ घट गया जिसने मुझे हिलाकर रख दिया। तुझसे बात करने का बहुत मन हो रहा है। लेकिन घड़ी की सुइयाँ 12 बजे का समय दिखा रही हैं। मैं जानती हूँ कि अगर मैं कॉल करूँ तो आधी रात में जागकर भी तू मेरे मन की व्यथा सुन लेगी। पर मैं अपने साथ साथ तेरी रात खराब नहीं करना चाहती। इसलिये सोचा कि मैं सारी बात एक खत में लिखकर तुझे भेज दूँ। तू सुबह सुबह पढ़ ही लेगी।

हमने और हमारी पीढ़ी की ज़्यादातर बहुओं ने अपने जीवन का एक बड़ा भाग बंदिशों, वर्जनाओं और तानों में काटा है। इसीलिये मैंने और तुमने मिलकर यह निश्चय किया था कि जब हमारा सास बनने का वक्त आयेगा तो हम इन बंदिशों को ख़त्म कर देंगे। हम अपने बच्चों के साथ साथ बहू को भी पूरा प्यार देंगे जिससे बहू भी अपनी ज़िंदगी खुलकर जी सके। मुझे ही यह मौका जल्दी मिला क्योंकि गाँव की पैदाइश होने से पढ़ाई पूरी करते करते ही मेरे लिये लड़का भी ढूँढ लिया गया था। फटाफट शादी हुई। साल भर में बड़ा बेटा अग्रज गोदी में आ गया। फिर मेरी छोटी उम्र को देखते हुए लेडी डॉक्टर के बहुत समझाये जाने पर दूसरा बच्चा आठ साल बाद पैदा हुआ, यानि अनुज। तो अनुज के हाई स्कूल करने के साथ ही अग्रज की शादी भी हो गई। और अग्रज की पत्नी यानि हमारी बहू यशी हमारी प्यारी बहू बनकर हमारे साथ रहने लगी। फिर परेशानी क्या हुई? आगे की सुन न।

वर्षों बीत गये। हमारा छोटा बेटा अनुज अपनी पढ़ाई पूरी करके अब एक मल्टीनेशनल कम्पनी में जॉब करने लगा। इससे पहले कि हम उससे उसकी शादी की बात छेड़ते,एक दिन वह फोन पर खुद ही बोला,"मम्मी! मैं आपको और पापा को आयशा से मिलाना चाहता हूँ। मैंने और आयशा ने शादी करने का फैसला किया है।" अचानक ऐसी बात सुनकर हम दोनों पति पत्नी चौंक गये लेकिन एक आधुनिक माता पिता होने के नाते हमने इस बात को सरलता से स्वीकार कर लेना ही उचित समझा। आखिर बच्चों की खुशी में ही हमारी खुशी है। हम आयशा और उसके घरवालों से मिले एक रिसॉर्ट में।बस हमारा और उनका परिवार ही था। हाँ, मेरी नन्द की बेटी सिया एक एग्जाम देने आई थी ,इसलिये वह उस दिन हमारे घर पर ही थी। इस कारण वह भी हमारे साथ रिसॉर्ट गयी। वहाँ सिया ने आयशा को पहचान लिया और हमें बताया कि उन दोनों ने ग्रेजुएशन एक ही कॉलेज से किया है। अभी तक सब कुछ सही सलामत चल रहा था। पर रात में अकेले में सिया ने मुझे जो कुछ बताया उसे सुनकर मेरे पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गई।

सिया ने बताया कि वह और आयशा एक ही हॉस्टल में थे। आयशा का एक बॉयफ्रेंड था जो अक्सर उससे मिलने आता रहता था। दोनों साथ साथ घूमते फिरते थे। यही नहीं,कभी कभी वे होटल में रूम लेकर भी कुछ घण्टे वहाँ बिताते थे। सब कुछ सबके सामने था। किसी से कुछ छुपाने का प्रश्न ही नहीं था।

मैं हतप्रभ थी। मैंने उसी समय अनुज को बुलाया। वह अलसाया हुआ सा आया और बोला,"क्या बात है,क्यों बुलाया मुझे?"

मैंने उसे सारी बात बताई। मुझे लगा था कि वह भी मेरी तरह चौंक जायेगा और इस रिश्ते को तोड़ देने की बात करेगा। पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। वह बड़े आराम से बोला,"हाँ, पता है मुझे। तो?"

" 'तो' मतलब तुझे कोई ऐतराज़ नहीं इस बात से?" मैंने आश्चर्य से पूछा।

"मम्मी! वह उसका पास्ट था। मुझे उससे क्या मतलब!"उसने लापरवाही से कहा।

"तो तू ऐसी लड़की से शादी करेगा जो किसी और लड़के के साथ सब कुछ कर चुकी है?" पता नहीं कब अनुज के पापा आ गए थे। वे भी आश्चर्य से खड़े उससे यह प्रश्न कर रहे थे।

अनुज अपने उसी लापरवाही के अंदाज़ में बोला,

"मेरे समझ में नहीं आ रहा कि आप ज़रा सी बात का बतंगड़ क्यों बना रहे हैं। आयशा अच्छी लडकी है,इंटेलीजेंट है,अच्छे जॉब पर है। मेरी और उसकी केमिस्ट्री अच्छी है। बस और क्या चाहिए।"

"अच्छी लड़की! तो ये परिभाषा है अच्छी लड़की की।" मैं पास रखी कुर्सी खींचकर उसपर बैठ गई।

मेरे मन में अगला प्रश्न कौंधा कि क्या मेरा अनुज इतना बदल चुका है? क्या वह भी किसी लड़की के साथ बिना शादी वह सब कर चुका है? और क्या इसीलिये उसे आयशा के पास्ट से कोई ऐतराज नहीं है? पर मैं अपने प्रश्न को जुबाँ तक लाने की हिम्मत नहीं कर सकी। इसलिये नहीं कि मैं अनुज से डरती हूँ। बल्कि इसलिये कि मैं अभी तक पहले शॉक से उबर नहीं पाई थी। कहीं अनुज का जवाब हाँ हुआ तो मेरे लिये दूसरा शॉक कहीं जानलेवा न हो जाये। जो बात नई पीढ़ी के लिये इतनी छोटी हो गयी है, वह हमारे लिये मानसिक सन्तुलन खोने की वजह भी बन सकती है।

अब तू ही बता शैफाली! क्या दुनिया इतनी बदल गयी है कि हमें इसके साथ तालमेल बिठाना दूभर हो रहा है? क्या हमने अपने बच्चों को ऊँची तालीम दिलाकर कोई गलती की? हमारी पीढ़ी ने लड़कियों को भी पूरी आज़ादी दी, जिससे वे भी खूब पढ़ सकें और आगे बढ़ सकें। पर यह पीढ़ी आधुनिक बनते बनते हमारे संस्कार ही भुला बैठी। यह सब कब और कैसे हो गया! मैं तो अपनेआपको सम्भाल नहीं पा रही हूँ। बता शैफाली! गलती कहाँ हुई? किससे हुई? क्या नई पीढ़ी ने हमारी दी हुई आज़ादी का गलत फायदा नहीं उठा लिया!तेरे फोन का इंतज़ार करूँगी।  

तेरी वनिता


मैं एक साँस में पूरा खत पढ़ गयी। चाय का कप यूँ ही रखा था उपेक्षित सा। चाय तो ठंडी और बदमज़ा हो ही चुकी थी। कोई बात नहीं। पर हमारी ज़िंदगी! हमारे विचार! हमारे संस्कार! इनका क्या करूँ। इन्हें तो एक झटके में छोड़ नहीं सकती न। बरसों से संभालकर रखे गये इनको कैसे पलभर में भुला दूँ! मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं वनिता को क्या जवाब दूँ। इसीलिये पाठकों से कहा अपना खत पढ़ लेने को। क्या आप लोग मेरी मदद कर सकेंगे?




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